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24 साल साथ निभाने की कहानी दीपक बाली ने उर्वशी बाली को बताया जीवन का आधार

वैवाहिक रिश्ते की गहराई में छिपी है जनसेवा की असली शक्ति, दीपक बाली ने हर सफलता का श्रेय धर्मपत्नी उर्वशी बाली को देकर पेश की मिसाल।

काशीपुर। सामाजिक और राजनीतिक धरती पर एक बेहद भावुक और प्रेरणादायक क्षण उस समय उभरा, जब नगर निगम के महापौर दीपक बाली और उनकी जीवनसंगिनी श्रीमती उर्वशी दत्त बाली ने अपने वैवाहिक जीवन की 24वीं वर्षगांठ बड़े आत्मीय अंदाज़ में मनाई। जीवन के उतार-चढ़ाव से भरे इस दो दशकों से अधिक लंबे सफर में जहां राजनीति, समाजसेवा और प्रशासनिक व्यस्तताओं की तेज़ रफ्तार रही, वहीं इस रिश्ते की स्थिरता, समझदारी और स्नेह ने सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सफल सार्वजनिक जीवन के पीछे एक सशक्त पारिवारिक समर्थन कितना ज़रूरी होता है। इस विशेष दिन पर जब एस.पी. न्यूज चौनल ने उनसे संवाद किया, तो दीपक बाली ने न केवल अपना दिल खोला, बल्कि सार्वजनिक रूप से अपनी पत्नी के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर एक मिसाल कायम कर दी। उन्होंने बताया कि यह केवल एक साल और जुड़ने की बात नहीं है, बल्कि यह दो आत्माओं के उस निरंतर समर्पण का उत्सव है जो हर चुनौती को एक साथ झेलते रहे।

भावनाओं की गहराई में उतरते हुए दीपक बाली ने यह स्पष्ट किया कि चाहे प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ हों, चुनावी संघर्ष हो या सामाजिक दायित्व, हर मोर्चे पर उनकी पत्नी उर्वशी दत्त बाली ने न केवल एक स्त्री धर्म निभाया, बल्कि एक सच्ची सहचरी, प्रेरक शक्ति और दृढ़ संबल की भूमिका में सदैव उनके साथ खड़ी रहीं। उन्होंने बताया कि हर बार जब वे किसी असमंजस में फंसे, तो उर्वशी जी की सोच और उनके द्वारा दिया गया आत्मबल उन्हें अंधेरे में रौशनी की तरह दिशा देता रहा। चुनावी अभियानों के दौरान, जहां राजनीतिक खेमेबंदी, थकावट और मानसिक दबाव चरम पर होता है, वहीं उर्वशी बाली ने दिन-रात की परवाह किए बिना, एक सच्चे साथी की तरह कंधे से कंधा मिलाकर कदम से कदम मिलाया। दीपक बाली ने विशेष रूप से यह कहा कि जब वे चुनाव प्रचार में उतरते थे, तो उनकी धर्मपत्नी हर उस गली, हर उस मोहल्ले में उनके साथ पहुंचतीं, जहां आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व होता है, और यह बात आज भी उन्हें गर्व से भर देती है।

दांपत्य जीवन की इस पवित्र साझेदारी को लेकर महापौर दीपक बाली ने कहा कि यह केवल भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि एक गहरा मनोवैज्ञानिक जुड़ाव भी है, जो न केवल परिवार को एकजुट रखता है, बल्कि सामाजिक ज़िम्मेदारियों के निर्वहन में भी सहायक बनता है। उन्होंने कहा कि जब किसी सार्वजनिक पद पर बैठा व्यक्ति अपने पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों को लेकर सजग होता है, तो उसका नेतृत्व भी संवेदनशील और मानवीय बनता है। यही कारण है कि आज जब वे जनसेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, तो उन्हें आत्मविश्वास से भरपूर निर्णय लेने में कोई हिचक नहीं होती, क्योंकि उन्हें पता है कि उनके पीछे एक ऐसी स्त्री खड़ी है जो हर हाल में उनका संबल बनेगी। उन्होंने यह भी जोड़ते हुए कहा कि उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यही है कि उन्होंने ऐसी जीवनसाथी पाई, जो हर भूमिका में खुद को साबित करती रही हैंकृचाहे वह एक पत्नी की हो, एक मां की हो या एक सामाजिक स्त्री की।

इस विशेष दिन ने सिर्फ बाली दंपत्ति के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे शहर के लिए एक संदेश दिया है कि रिश्तों में पारदर्शिता, समर्पण और आपसी समझ का कोई विकल्प नहीं होता। नगर के कई पार्षदों, समाजसेवियों, अधिकारियों और आम नागरिकों ने बाली परिवार को इस मौके पर ढेरों शुभकामनाएँ भेजीं और उनके रिश्ते को ‘मजबूत और अनुकरणीय’ बताया। शहर की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर कोने में इस दंपत्ति के रिश्ते की मिसाल दी गई। कई स्थानीय संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने भी इस अवसर को विशेष मानते हुए अपने बधाई संदेश भेजे। नगर निगम के अधिकारियों से लेकर सामान्य नागरिक तक, हर किसी ने यह स्वीकार किया कि दीपक बाली जिस सादगी, ईमानदारी और संवेदनशीलता से जनसेवा करते हैं, उसका श्रेय उनके मजबूत पारिवारिक ताने-बाने को भी दिया जाना चाहिए, खासकर श्रीमती उर्वशी दत्त बाली को, जिनका संयम, समझ और सहारा इस समूचे सफर की नींव रहा है।

काशीपुर की राजनीति में अक्सर नेता अपने सार्वजनिक जीवन में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उनके व्यक्तिगत रिश्तों की झलक दुर्लभ हो जाती है। मगर दीपक बाली ने इस आम धारणा को पूरी तरह तोड़ते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि एक सच्चा जनप्रतिनिधि सिर्फ जनता के प्रति ही जवाबदेह नहीं होता, बल्कि अपने परिवार के प्रति भी उतना ही समर्पित और भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। उनकी वैवाहिक वर्षगांठ महज़ एक पारिवारिक आयोजन नहीं रही, बल्कि यह उन सभी के लिए प्रेरणा बन गई जो जनसेवा, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों और निजी रिश्तों में संतुलन स्थापित करना चाहते हैं। इस अवसर पर दीपक बाली ने जिस आत्मीयता से अपनी पत्नी श्रीमती उर्वशी दत्त बाली के योगदान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा और सराहा, वह यह दर्शाता है कि अगर संबंधों में पारदर्शिता, परस्पर विश्वास और बिना किसी शर्त के समर्पण हो, तो सामाजिक सम्मान, राजनीतिक प्रतिबद्धता और वैवाहिक जीवन—तीनों को एक साथ निभाना न केवल संभव है, बल्कि जीवन को संतुलित और सशक्त बनाने वाला भी साबित होता है।

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