spot_img
दुनिया में जो बदलाव आप देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए. - महात्मा गांधी
Homeउत्तराखंडउत्तराखंड की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के बीच खिसकते छोटे दलों...

उत्तराखंड की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के बीच खिसकते छोटे दलों का भविष्य खतरे में

उत्तराखंड के निकाय चुनावों ने साबित किया कि भाजपा और कांग्रेस का दबदबा बढ़ रहा है, जबकि छोटे दलों का राजनीतिक भविष्य अब संकट में है

काशीपुर(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड की राजनीति में आजकल भाजपा और कांग्रेस की ह कवउपदंदबम बनी हुई है, और छोटे दलों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। इस बार के निकाय चुनावों में इसका साफ प्रभाव देखने को मिला, जहां उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे छोटे दल अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। प्रदेश के 100 निकायों में से एक भी सीट हासिल नहीं कर पाना इन दलों के लिए बड़ी निराशा का कारण बना है। राज्य के राजनीतिक माहौल में बदलाव की जरुरत पहले से ज्यादा महसूस की जा रही है, खासकर यूकेडी के लिए जो कभी राज्य के राजनीति में अहम भूमिका निभाता था। प्रदेश के 100 निकायों में हुए चुनावों ने भाजपा और कांग्रेस की ताकत को फिर से साबित कर दिया है, वहीं छोटे दलों के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट गहरा हो गया है। निकाय चुनावों के परिणामों ने दिखा दिया कि अब राज्य की राजनीति पूरी तरह से भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द सिमट चुकी है। चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत की है, वहीं यूकेडी और आप जैसी छोटी पार्टियां ध्वस्त हो गईं। ये परिणाम साफ तौर पर इस बात की ओर इशारा करते हैं कि राज्य में बड़े दलों का दबदबा बढ़ता जा रहा है, जबकि छोटे दल कहीं न कहीं हाशिये पर चले गए हैं।

निकाय चुनावों के नतीजों ने कई सवाल उठाए हैं, खासकर यूकेडी और आम आदमी पार्टी के भविष्य पर। उत्तराखंड क्रांति दल, जो कभी राज्य की राजनीति में एक मजबूत शक्ति मानी जाती थी, अब एक भी सीट नहीं जीत पाया और यहां तक कि अपनी जमानत भी खो बैठा। पार्टी के नेता शांति प्रसाद भट्ट इस स्थिति को बेहद चिंताजनक मानते हैं और मानते हैं कि अब पार्टी को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। उनके मुताबिक, यूकेडी को अपने अंदर सुधार की जरूरत है, ताकि पार्टी फिर से चुनावी मैदान में मजबूती से लौट सके। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि आम जनता को उन दलों से सतर्क रहना चाहिए जिन्होंने उत्तराखंड को हमेशा लूटा है। आम आदमी पार्टी ने भी राज्य में अपने विस्तार की उम्मीद के साथ चुनावी मैदान में कदम रखा था, लेकिन निकाय चुनावों ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पार्टी को न सिर्फ एक भी सीट नहीं मिली, बल्कि अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद उत्तराखंड में पार्टी का प्रचार किया था, लेकिन यहां उनका जादू नहीं चल पाया। उत्तराखंड के मतदाता अब तक भाजपा और कांग्रेस से बाहर किसी भी पार्टी को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं, और यही कारण है कि आप जैसी पार्टियां राज्य में अपनी पहचान बनाने में नाकाम रही हैं।

निकाय चुनावों के परिणामों ने यह साफ कर दिया कि राज्य की राजनीति अब पूरी तरह से भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द सिमट चुकी है। इन दोनों पार्टियों के प्रत्याशी हर चुनाव में जीत हासिल कर रहे हैं, जबकि छोटे दलों की स्थिति दिन-प्रतिदिन और खराब होती जा रही है। कई जगहों पर निर्दलीय प्रत्याशी भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन राज्य में तीसरे विकल्प के तौर पर किसी भी पार्टी का सिर उठाना अब मुश्किल हो गया है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने भी इस बात को महसूस किया है कि राज्य की राजनीति अब केवल इन दोनों दलों के बीच सिमटकर रह गई है। इस बदलते राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में विशेषज्ञों का कहना है कि क्षेत्रीय दलों को अब नए सिरे से अपनी रणनीतियां बनानी होंगी। दि वीर भारत न्यूज़ की सम्पादक संध्या कोठारी का मानना है कि उत्तराखंड में अब भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी के लिए अपनी पहचान बनाना कठिन हो गया है। वह बताते हैं कि जैसे-जैसे इन दोनों दलों की पकड़ मजबूत हो रही है, वैसे-वैसे क्षेत्रीय दलों और आम आदमी पार्टी के लिए यहां राजनीतिक रूप से सर्वाइव करना मुश्किल हो रहा है।

आखिरकार, अब राज्य के छोटे दलों को यह समझने की जरुरत है कि केवल विचारधारा के दम पर सत्ता में वापसी संभव नहीं है। भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले इन दलों को अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा। यदि इन दलों ने जल्दी ही कोई बड़ा कदम नहीं उठाया, तो निकाय चुनावों के परिणामों के समान अगला विधानसभा या लोकसभा चुनाव भी उनके लिए असफलताओं का शिकार हो सकता है। अब वक्त आ गया है कि छोटे दल अपनी खोई हुई ताकत को पुनः अर्जित करने के लिए नए सिरे से योजना बनाएं और भाजपा, कांग्रेस के साथ अपने अस्तित्व की लड़ाई में कदम बढ़ाएं। चुनाव के इस दौर ने उत्तराखंड की राजनीति को नया मोड़ दिया है, जहां भविष्य में भाजपा और कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के लिए मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं। छोटे दलों के लिए यह समय अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एक निर्णायक समय बन चुका है, और अगर उन्होंने इसे ठीक से नहीं संभाला तो उनकी स्थिति और भी नाजुक हो सकती है।

संबंधित ख़बरें
गणतंत्र दिवस की शुभकामना
75वां गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

लेटेस्ट

ख़ास ख़बरें

error: Content is protected !!