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भक्ति और आध्यात्मिकता का संगम गांधीनगर में क्षेत्रीय संत समागम में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

श्रद्धा, सेवा और समर्पण का दिव्य मिलन क्षेत्रीय संत समागम में गूंजे आध्यात्मिक प्रवचन, भजनों की मधुर धुनों पर झूमी संगत, प्रेम और एकता का संदेश गूंजा

काशीपुर। ग्राम गांधीनगर में आयोजित क्षेत्रीय संत समागम में भक्ति और आध्यात्मिकता की अद्भुत झलक देखने को मिली। इस विशाल सत्संग कार्यक्रम में सैकड़ों श्रद्धालु एवं निरंकारी संतों ने भाग लिया और आध्यात्मिक प्रवचनों से लाभान्वित हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ सुबह 10:00 बजे हुआ और दोपहर 1:00 बजे तक श्रद्धालुओं ने सत्संग का आनंद लिया।

सत्संग कार्यक्रम में पठानकोट से पधारे संत प्रचारक महात्मा द्विवेदी जी ने श्रद्धालुओं को जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ने वाले विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के संदेश को सभी के समक्ष रखते हुए बताया कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति ही मनुष्य के भ्रमों को समाप्त करने का एकमात्र मार्ग है।उन्होंने निरंकारी मिशन की विचारधारा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केवल एक धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक आंदोलन है, जो मनुष्य को निष्काम सेवा, समर्पण और प्रेम का मार्ग दिखाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें अपने जीवन में प्रेम, नम्रता और सहयोग की भावना को अपनाना चाहिए, ताकि समाज में आपसी सद्भाव बना रहे।

संत समागम में गीतकार लकी जी ने अपनी मधुर आवाज में गुरु महिमा का गुणगान करते हुए भजन प्रस्तुत किए, जिससे सत्संग का वातावरण अत्यंत भक्तिमय हो गया। उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति ने उपस्थित श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और सभी को आध्यात्मिक शांति एवं भक्ति की गहराई का अनुभव हुआ। उनके भजनों में सिर्फ संगीत की मिठास ही नहीं, बल्कि भक्ति का गहरा भाव भी झलक रहा था, जिसने श्रद्धालुओं को गुरु भक्ति और आध्यात्मिकता से जोड़ने का कार्य किया। उनके द्वारा गाए गए संतवाणी से ओतप्रोत भजनों ने उपस्थित जनसमूह के मन-मस्तिष्क में आध्यात्मिक चेतना जागृत कर दी। श्रद्धालु भावविभोर होकर भजनों की पंक्तियों को दोहराने लगे और पूरा समागम भक्ति के रंग में रंग गया। उनके भजनों से प्रेरित होकर श्रद्धालुओं ने अपने जीवन में गुरु के वचनों को अपनाने का संकल्प लिया। यह संगीतमय प्रस्तुति न केवल मनोरंजन, बल्कि आध्यात्मिक जागृति का भी माध्यम बनी।

काशीपुर ब्रांच के मुखी राजेंद्र अरोड़ा जी ने सत्संग में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सच्ची भक्ति केवल उपदेशों को सुनने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि उसे अपने आचरण और जीवनशैली में उतारना ही वास्तविक साधना है। उन्होंने समझाया कि जब तक हम आध्यात्मिक शिक्षाओं को अपने व्यवहार और कर्मों में शामिल नहीं करेंगे, तब तक भक्ति का असली उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के वचनों का अनुसरण करने पर बल देते हुए कहा कि एक समर्पित, सेवाभावी और निष्काम भावना से किया गया कार्य ही सच्ची आध्यात्मिक उन्नति का आधार होता है। हमें निस्वार्थ सेवा को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए, क्योंकि सेवा और प्रेम से ही समाज में सकारात्मकता और सद्भाव बढ़ता है। उन्होंने श्रद्धालुओं को प्रेरित किया कि वे आध्यात्मिकता के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी अपनाएं और अपने जीवन को परमात्मा की भक्ति और सेवा के मार्ग पर आगे बढ़ाएं।

कार्यक्रम के समापन पर स्थानीय संत गुरदेव सिंह एवं मस्सा सिंह ने सभी श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त किया और इस आयोजन को सफल बनाने के लिए संगत का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि निरंकारी मिशन केवल भक्ति और आध्यात्म का प्रचार नहीं करता, बल्कि समाज में प्रेम, शांति और भाईचारे की भावना को मजबूत करने का कार्य करता है। ऐसे सत्संग कार्यक्रमों से लोगों को सकारात्मक दिशा मिलती है और वे सेवा, समर्पण और एकता के महत्व को समझते हैं। संतों ने श्रद्धालुओं से निरंकारी मिशन की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने की अपील की, ताकि अधिक से अधिक लोग इस दिव्य ज्ञान से लाभान्वित हो सकें। उन्होंने कहा कि यदि सभी प्रेम, नम्रता और सहयोग की भावना को अपनाएं तो समाज में किसी भी प्रकार का भेदभाव और द्वेष नहीं रहेगा। ऐसे आयोजनों से समाज में सद्भाव और आत्मीयता का वातावरण बनता है, जो सच्ची मानवता की पहचान है।

स्थानीय निरंकारी मीडिया प्रभारी प्रकाश खेड़ा ने कार्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि यह समागम सिर्फ एक धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक सामाजिक एवं आध्यात्मिक जागरूकता का मंच भी था। इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ज्ञान, सेवा और भक्ति का वास्तविक अर्थ समझने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि निरंकारी मिशन का मुख्य उद्देश्य मानवता को एक सूत्र में बांधना, प्रेम और सद्भाव को बढ़ावा देना तथा समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है। इस समागम के माध्यम से श्रद्धालुओं को यह संदेश दिया गया कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होती, बल्कि इसे अपने आचरण और व्यवहार में उतारना भी उतना ही आवश्यक है। उन्होंने बताया कि सेवा और समर्पण का भाव अपनाकर ही व्यक्ति मानवता की सच्ची राह पर चल सकता है। इस सत्संग ने लोगों को न केवल आध्यात्मिक रूप से प्रेरित किया, बल्कि उन्हें सामाजिक जिम्मेदारियों का भी एहसास कराया।

इस भव्य आयोजन ने सद्भावना, प्रेम और एकता का संदेश दिया, जिसमें उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को मानवता के कल्याण के लिए एकजुट होने की प्रेरणा मिली। सत्संग के दौरान भक्ति, सेवा और परोपकार के महत्व को उजागर किया गया, जिससे श्रद्धालुओं में निस्वार्थ प्रेम और सहयोग की भावना जागृत हुई। “मानव हो मानव को प्यारा, इक दूजे का बने सहारा” का नारा इस कार्यक्रम का सार था, जिसने समाज में आपसी सहयोग, समर्पण और परस्पर प्रेम का संदेश दिया। आयोजकों ने बताया कि यदि सभी नफरत और भेदभाव को त्यागकर प्रेम, सेवा और समर्पण के मार्ग पर चलें, तो समाज में सद्भाव और शांति स्थापित हो सकती है। इस आयोजन ने यह भी स्पष्ट किया कि सच्चा आध्यात्मिक विकास तभी संभव है, जब हम अपनी भक्ति को व्यवहार में उतारें और सभी के साथ दया, करुणा और सम्मान का व्यवहार करें।

गांधीनगर में आयोजित इस क्षेत्रीय संत समागम ने यह साबित कर दिया कि आध्यात्मिक सत्संग केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने का माध्यम भी है। श्रद्धालुओं ने इस कार्यक्रम में भाग लेकर भक्ति, सेवा और प्रेम का महत्व समझा और इसे अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लिया। ऐसे आयोजनों से समाज में सकारात्मक बदलाव संभव है, और यही निरंकारी मिशन का मुख्य उद्देश्य भी है।

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