रामनगर। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की घासभूमियों में वन्यजीव संरक्षण को लेकर एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है। उत्तराखण्ड के प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के तहत रिजर्व में पाड़ा यानी हॉग डियर की गणना का कार्य सफलता के साथ पूरा कर लिया गया। यह सर्वेक्षण न सिर्फ वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से अहम था बल्कि इससे रिजर्व की पारिस्थितिक स्थिति की गहराई से जांच भी संभव हो सकी। गणना कार्य को लेकर वन विभाग की टीमों ने अत्यधिक परिश्रम किया और पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप संपन्न की गई। कार्बेट के समूचे 12 रेंजों में बीट स्तर तक इस सर्वेक्षण को विस्तार दिया गया, जिसमें हर बीट पर एक मुख्य प्रगणक के साथ दो सहायक तैनात किए गए। इन लोगों ने तय समय सीमा में पैदल भ्रमण करते हुए प्रत्यक्ष अवलोकन पद्धति के जरिये पाड़ा की संख्या दर्ज की।
उत्तराखण्ड के वन्यजीव प्रबंधन इतिहास में इस गणना को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 22, 23 और 24 मई को सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक लगातार तीन दिनों तक चले इस सर्वे में वन कर्मियों का उत्साह देखते ही बनता था। रिजर्व की घासभूमियों में सुबह की सुनहरी धूप के बीच वनकर्मी बाइनोकुलर, जीपीएस और डाटा फॉर्म्स के साथ पाड़ा की तलाश में निकले। खास बात यह रही कि इस सर्वेक्षण में कार्बेट टाइगर रिजर्व के साथ WWF इंडिया और कॉर्बेट फाउंडेशन का भी सराहनीय सहयोग रहा। सर्वे शुरू करने से पहले सभी टीमों को कार्बेट वन्यजीव प्रशिक्षण केन्द्र, कालागढ़ में गहन प्रशिक्षण दिया गया। यह प्रशिक्षण न सिर्फ तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण था बल्कि इससे टीमों को सही पद्धति से गिनती करने की दिशा में दक्ष बनाया गया।

जैव विविधता के लिहाज से इस सर्वेक्षण के परिणाम उत्साहवर्धक रहे। कुल मिलाकर 189 पाड़ा प्रत्यक्ष रूप से दर्ज किए गए। इनमें से 153 वयस्क और 36 शावक शामिल हैं। गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2021 में हुई पिछली गणना में इनकी संख्या 179 थी, यानी इस बार आंकड़ा बढ़ा है। रिजर्व की ढिकाला रेंज ने एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है जहां अकेले 175 पाड़ा दर्ज किए गए। यह साफ दर्शाता है कि ढिकाला की घासभूमियां न सिर्फ उपयुक्त प्राकृतिक आवास प्रदान करती हैं, बल्कि यहां जैव विविधता भी चरम पर है। पाड़ा की बढ़ती आबादी यह संकेत देती है कि रिजर्व में पारिस्थितिक तंत्र स्वस्थ और संतुलित है।
वन्यजीवों की इस गणना का महत्व सिर्फ संख्या जानने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे पारिस्थितिक तंत्र की सेहत का पैमाना भी है। पाड़ा जैसे घास चरने वाले जानवर वन के शिकारियों के लिए मुख्य भोजन होते हैं। यदि इनकी आबादी स्थिर या बढ़ रही है, तो इसका सीधा अर्थ है कि बाघ जैसे शिकारी प्राणियों के लिए भोजन की उपलब्धता पर्याप्त है। यह न केवल जैविक श्रृंखला के संतुलन का प्रमाण है, बल्कि संरक्षण प्रयासों की सफलता का भी जीवंत उदाहरण है। रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला का मानना है कि इस तरह की गणनाएं भविष्य की संरक्षण नीतियों के लिए बेहद कारगर साबित होती हैं। इनके आधार पर न सिर्फ वन्यजीवों के संरक्षण की रणनीतियां बनाई जाती हैं बल्कि आवास सुधार कार्यक्रमों को भी नई दिशा मिलती है।

रिजर्व प्रशासन की मंशा है कि ऐसी वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित संरक्षण गतिविधियां भविष्य में भी लगातार जारी रहें। यह पहल न सिर्फ पाड़ा जैसी प्रजातियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी बल्कि समूचे कार्बेट क्षेत्र की जैव विविधता को स्थायी रूप से समृद्ध करने में मददगार होगी। बाघ संरक्षण का केंद्र माने जाने वाले कार्बेट टाइगर रिजर्व ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि यदि नियोजित तरीके से काम किया जाए तो वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में असाधारण परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। पाड़ा की संख्या में हुआ इजाफा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कार्बेट के घास के मैदान अभी भी उतने ही उपजाऊ और सुरक्षित हैं जितना कि दशकों पहले थे। यह उपलब्धि वन विभाग, स्थानीय समुदाय और साझेदार संस्थाओं के बीच बेहतर तालमेल का प्रतिफल है।