हरिद्वार। जमीन घोटाले की जांच के तहत कई अधिकारियों पर कार्रवाई की गई, जिसमें दो आईएएस और पीसीएस अधिकारी समेत कुल बारह कर्मचारी शामिल थे। इस सूची में हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह का नाम भी शामिल था, जिन्हें सस्पेंड कर दिया गया। इस बड़ी कार्रवाई के बाद शासन ने नया जिला प्रमुख नियुक्त किया, और इस जिम्मेदारी की कमान मयूर दीक्षित के हाथों में सौंपी गई। वर्तमान में टिहरी के जिलाधिकारी पद पर कार्यरत मयूर दीक्षित को हरिद्वार की जटिल प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करना होगा, जो अपने आप में एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है।
मयूर दीक्षित की नियुक्ति ने प्रशासनिक गलियारों में नई उम्मीदें जगाई हैं। ये अधिकारी 2013 बैच के आईएएस अफसर हैं और अपने बेहतरीन रिकॉर्ड के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, हरिद्वार की राजनीतिक और प्रशासनिक परिस्थितियां उतनी सहज नहीं हैं जितनी वे दिखती हैं। इस जिले में खनन जैसे विवादास्पद मुद्दे दशकों से चर्चा में बने हुए हैं। हरिद्वार में खनन को लेकर कई प्रभावशाली लॉबियां सक्रिय हैं, जो अपने हितों की रक्षा के लिए हर संभव कोशिश करती हैं। ऐसे में नए जिलाधिकारी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे इन लॉबियों के बीच संतुलन बनाएं और अवैध खनन की गतिविधियों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं। यह मामला न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है, बल्कि इसे लेकर जनता में भी असंतोष व्याप्त है।
आगे बढ़ते हुए यह भी महत्वपूर्ण है कि मयूर दीक्षित को हरिद्वार के सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ तालमेल बनाए रखना होगा। पिछले कुछ महीनों में सांसद ने प्रशासन की कई नीतियों, विशेषकर खनन और कानून व्यवस्था को लेकर मुखर होकर अपनी बात रखी है। इसलिए, नया जिलाधिकारी न केवल प्रशासन के अंदरूनी कार्यों को संभालने में माहिर होना चाहिए, बल्कि उसे राजनीतिक और सामाजिक दबावों के बीच भी संतुलन बनाकर चलना होगा। इस काम के लिए उन्हें सांसद और राज्य सरकार के बीच बेहतर संवाद स्थापित करना होगा ताकि प्रशासनिक निर्णय प्रभावी ढंग से लागू हो सकें। मयूर दीक्षित का अनुभव और शांति से काम करने का रवैया इस चुनौती का सामना करने में सहायक सिद्ध होगा।
हरिद्वार में वर्ष 2027 में होने वाला महाकुंभ मेला प्रशासनिक दृष्टि से एक बड़ी परीक्षा होने जा रहा है। यह धार्मिक आयोजन अपने आप में विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण इवेंट है, जिसमें लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। इस बार के कुंभ मेले में साधु-संतों की भूमिका भी अहम मानी जा रही है, जिन्हें प्रशासन के साथ तालमेल बैठाना बेहद जरूरी होगा। हालाँकि इस विशाल आयोजन के लिए वरिष्ठ अधिकारी सोनिका सिंह को मेले की जिम्मेदारी सौंपी गई है, फिर भी जिलाधिकारी की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होगी क्योंकि वे पूरे जिले के प्रशासनिक प्रबंधन के मुखिया होते हैं। कुंभ मेले का सफल आयोजन हरिद्वार के प्रशासन की छवि के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। इसलिए इस चुनौती का सामना करते हुए मयूर दीक्षित को सावधानीपूर्वक और संगठित ढंग से कार्य करना होगा।
जनता के बीच प्रशासन के प्रति विश्वास बनाना भी एक बड़ी चुनौती होगी। हाल के वर्षों में हरिद्वार में जमीन घोटाले और रिश्वतखोरी के कई मामले सार्वजनिक हुए हैं, जिनमें बड़े अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं। ऐसे मामलों ने प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता को काफी क्षति पहुंचाई है। ऐसे में नए जिलाधिकारी के लिए यह आवश्यक होगा कि वे पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी के साथ प्रशासन चलाएं ताकि आम जनमानस का प्रशासन में विश्वास फिर से स्थापित हो सके। जहां एक ओर भ्रष्टाचार के मामलों ने जनता में निराशा फैलाई है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन को इस स्थिति से उभरकर नए सिरे से कार्य करने की जरूरत है, ताकि शासन-प्रशासन में सुधार आए और जनता को न्याय मिल सके।
इस प्रकार, हरिद्वार में नई चुनौतियों का सामना करते हुए मयूर दीक्षित के सामने कई महत्वपूर्ण कार्य हैं। खनन के जटिल मसलों का समाधान, राजनीतिक दबावों के बीच संतुलन, बड़े धार्मिक आयोजन का सफल आयोजन, और प्रशासनिक विश्वसनीयता की बहालीकृइन सबको मिलाकर एक व्यापक और गंभीर जिम्मेदारी है। उनके अनुभव और कार्यशैली पर अब नजरें टिकी हैं कि वे इस चुनौतीपूर्ण दौर में हरिद्वार की किस तरह सेवा करते हैं। जहां एक ओर उनके लिए यह मौका है अपनी प्रशासनिक क्षमता दिखाने का, वहीं दूसरी ओर यह एक कठिन परीक्षा भी है कि वे जनता और सरकार दोनों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं। आने वाले समय में उनके फैसलों और कार्यों से हरिद्वार की तस्वीर में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।