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भक्ति से जीवन में आनंद और शांति का संचार होता है, यही सच्चा सुख

काशीपुर(एस पी न्यूज़)। आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत-प्रोत एक अविस्मरणीय क्षण तब बना, जब निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने हरियाणा के संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा में ‘भक्ति पर्व समागम’ के दौरान विशाल जनसमूह को संबोधित किया। इस पावन अवसर पर, सतगुरु माता जी ने भक्ति की वास्तविक परिभाषा प्रस्तुत करते हुए कहा कि भक्ति वह अवस्था है, जो जीवन को दिव्यता और आनंद से भर देती है। यह न इच्छाओं का सौदा है, न स्वार्थ का माध्यम। सच्ची भक्ति का अर्थ है परमात्मा से गहरा जुड़ाव और निःस्वार्थ प्रेम। उनके इन प्रेरणादायक वचनों ने न केवल उपस्थित भक्तों को बल्कि समूचे धार्मिक समुदाय को भक्ति के वास्तविक अर्थ को समझने का एक अनमोल अवसर प्रदान किया। समागम में दिल्ली, एनसीआर और विदेशों से आए श्रद्धालुओं ने भी सत्संग के माध्यम से आध्यात्मिक आनंद की दिव्य अनुभूति की।

समागम के इस दिव्य आयोजन में संत निरंकारी राजपिता रमित जी की उपस्थिति ने एक और धार्मिक समृद्धि का संकेत दिया। उनके पावन सान्निध्य में श्रद्धा और भक्ति का अनुपम दृश्य देखा गया। इस अवसर पर परम संत सन्तोख सिंह जी के जीवन से जुड़ी प्रेरणाएं भी साझा की गईं। संतों के तप, त्याग और ब्रह्मज्ञान के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान को याद करते हुए श्रद्धालुओं को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं, कवियों और गीतकारों ने भी गुरु महिमा और भक्ति के महत्व को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया, जिससे श्रद्धालुओं के जीवन में आध्यात्मिक दृष्टिकोण का नवचेतना और समृद्धि आई।

सतगुरु माता जी ने भक्ति की महिमा को अपने वचनों में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि भक्ति का आधार ब्रह्मज्ञान है, जो जीवन को उत्सव बना देता है। भक्ति का वास्तविक स्वरूप दिखावे से परे और स्वार्थ व लालच से मुक्त होना चाहिए। जैसे दूध में नींबू डालने से वह फट जाता है, वैसे ही भक्ति में लालच और स्वार्थ हो तो वह अपनी पवित्रता खो देती है।” उनका यह संदेश न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक दिशा-निर्देश था, बल्कि जीवन में सच्ची भक्ति का पालन करने का एक मार्ग भी दिखा रहा था।

सतगुरु माता जी ने उदाहरण के तौर पर भगवान हनुमान, मीराबाई और बुद्ध भगवान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन महापुरुषों का भक्ति स्वरूप अलग-अलग हो सकता है, लेकिन उनका मर्म एक ही था दृ परमात्मा से अटूट जुड़ाव। सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि भक्ति सेवा, सुमिरन, सत्संग और गान जैसे अनेक रूपों में हो सकती है, लेकिन हर रूप में निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण का भाव होना चाहिए। यह बात उन्होंने गृहस्थ जीवन में भी भक्ति की सच्चाई को समझाने के लिए कहा और बताया कि भक्ति किसी विशेष स्थान या अवस्था में नहीं, बल्कि हर कार्य में परमात्मा के आभास में हो सकती है।

इस समागम में उपस्थित स्थानीय श्रद्धालु भी भक्ति के महत्व को महसूस कर रहे थे। जौनपुर से आए गिरिराज ने अपने दिव्यांग पिता को लेकर महाकुंभ स्नान के लिए आने की प्रेरणा दी थी। इस उदाहरण ने उपस्थित सभी को यह समझाया कि भक्ति का सबसे बड़ा रूप है निःस्वार्थ सेवा और सच्चे प्रेम में विश्वास रखना। समागम के दौरान भक्ति की अनुभूति और भक्ति के प्रति श्रद्धा से भरपूर श्रद्धालुओं की तादाद ने इस कार्यक्रम को और भी भव्य और दिव्य बना दिया। स्थानीय काशीपुर ब्रांच में भी भक्ति पर्व के इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। बहन मुन्नी चौधरी ने अपने वचनों में भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि सतगुरु के वचनों को मानना ही भक्ति है। उन्होंने कहा कि भक्ति केवल पूजा करने का नाम नहीं, बल्कि हर कार्य में परमात्मा का आभास करने का नाम है। इसके बाद, स्थानीय मुखी राजेंद्र अरोड़ा ने भक्ति के मार्ग पर मिलजुल कर चलने की प्रेरणा दी और आए हुए सभी संतों का धन्यवाद किया। इस कार्यक्रम ने न केवल भक्तों को एकजुट किया, बल्कि उन्हें एकजुट होकर भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दी।

निरंकारी मिशन का मूल सिद्धांत यही है कि भक्ति परमात्मा के तत्व को जानकर ही सार्थक रूप में संपन्न हो सकती है। सतगुरु माता जी ने यह स्पष्ट किया कि भक्ति का वास्तविक स्वरूप तभी विकसित होता है जब व्यक्ति अपने जीवन में ब्रह्मज्ञान को आत्मसात करता है। इसके बिना भक्ति का अनुभव अधूरा रहता है। इस समागम ने न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण को उजागर किया, बल्कि श्रद्धालुओं के जीवन में एक नई ऊर्जा और उद्देश्य का संचार भी किया। सतगुरु माता जी के अमूल्य प्रवचनों ने भक्तों के जीवन में एक नया दृष्टिकोण स्थापित किया। उनके वचन और दर्शन से श्रद्धालु अपने जीवन को अधिक दिव्य और शांति से भरने के लिए प्रेरित हुए। इस भक्ति पर्व समागम का आयोजन निरंकारी मिशन द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने सभी को भक्ति के वास्तविक रूप को समझने और उसे अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा दी।

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