काशीपुर। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जनपद में सरकारी स्वास्थ्य योजना के नाम पर एक और घोटाला सामने आना इस बात का संकेत है कि व्यवस्था किस हद तक बेपरवाह हो चुकी है। इस बार मामला काशीपुर के प्राइम हॉस्पिटल से जुड़ा है, जहां आयुष्मान भारत योजना की आड़ में एक ऐसे मरीज से दोहरी वसूली की गई, जिसके इलाज का खर्च सरकार से भी वसूला गया और उसके परिजनों से नकद में भी भुगतान लिया गया। पीड़ित परिवार को जब यह जानकारी मिली कि उनके नाम से अस्पताल ने सरकारी योजना से पेमेंट उठाया है, जबकि इलाज का पूरा खर्च उनसे पहले ही नकद में ले लिया गया था, तो उनका आक्रोश फूट पड़ा। अस्पताल में जमकर हंगामा हुआ और जब यह हंगामा बढ़ा, तो पुलिस भी मौके पर पहुंची। लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अस्पताल प्रशासन मामले को दबाने में सक्रिय हो चुका था। यह घटना एक बार फिर से उस पूरे सिस्टम की विफलता को उजागर करती है जो गरीबों की मदद के लिए बनी योजनाओं को ठगों के हवाले छोड़ चुका है।
जिस योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों और जरूरतमंदों के लिए एक संजीवनी बताया था, वही योजना अब चंद अस्पतालों की कमाई का जरिया बनती जा रही है। प्राइम हॉस्पिटल का यह मामला कोई अकेला उदाहरण नहीं है। इससे पहले भी उधम सिंह नगर जिले के कई अस्पतालों पर आयुष्मान योजना के दुरुपयोग के आरोप लग चुके हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन आरोपों के बावजूद आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। हाल ही में दर्ज की गई भारत की सबसे लंबी एफआईआर, जिसमें हजारों मामलों का विवरण था, वह भी ठंडी पड़ चुकी है। ऐसा लगता है जैसे इस पूरे सिस्टम को सिर्फ तब ही झकझोरा जा सकता है जब जनता सड़कों पर उतर आए या मीडिया दबाव बनाए। वरना अधिकारी, जांच एजेंसियां और प्रशासन अपनी नींद में ही खोए रहते हैं।
प्राइम हॉस्पिटल के खिलाफ स्थानीय लोगों का गुस्सा अब सड़कों तक पहुंचने लगा है। नागरिकों ने स्पष्ट रूप से यह मांग उठाई है कि न केवल इस अस्पताल पर आपराधिक मामला दर्ज हो, बल्कि इसकी मान्यता भी तत्काल प्रभाव से रद्द की जाए। साथ ही उन्होंने यह भी मांग की है कि राज्य सरकार आयुष्मान योजना का पूर्ण ऑडिट करवाए और यह पता लगाए कि किन-किन अस्पतालों ने अब तक इस योजना का गलत इस्तेमाल कर जनता से दोहरी वसूली की है। स्थानीय जनता का कहना है कि यदि सरकार इस मामले को भी केवल जांच बैठाकर भुला देती है, तो जनता का सरकारी योजनाओं से भरोसा उठ जाएगा। खासकर गरीब तबके के लिए यह योजना एक उम्मीद की किरण थी, लेकिन अगर यह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई, तो उन्हें इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ेगा।
यह सवाल भी अब बेहद गंभीर होता जा रहा है कि आखिरकार कौन लोग हैं जो इन अस्पतालों की हिम्मत बढ़ा रहे हैं? क्या अस्पताल प्रबंधन को सत्ता पक्ष का संरक्षण मिला हुआ है या फिर सरकारी अधिकारियों की चुप्पी इस घोटाले का असली कारण है? क्योंकि यह समझ से परे है कि इतनी बड़ी योजना में बार-बार गड़बड़ी की शिकायतें आने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्यों हर बार एक पीड़ित को सड़क पर आकर चिल्लाना पड़ता है, मीडिया को खबर बनानी पड़ती है, तब जाकर जांच की रफ्तार थोड़ी तेज होती है? क्या सरकारें सिर्फ कागज़ी घोषणाओं और प्रचार तक सीमित रह गई हैं?
अब पूरा उत्तराखंड इस मामले की ओर टकटकी लगाए देख रहा है। लोगों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या इस बार कोई उदाहरण पेश किया जाएगा या हमेशा की तरह इस घोटाले को भी ‘मैनेजमेंट’ के भरोसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। अगर सरकार और प्रशासन इस बार भी चुप्पी साधे रहते हैं, तो यह संदेश जाएगा कि आयुष्मान जैसी योजनाएं अब ईमानदारी से लागू नहीं की जा सकतीं। और इसका सबसे बड़ा खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ेगा जिनके पास इलाज के लिए न पैसा है, न पहचान। इसलिए यह वक्त है जब उत्तराखंड सरकार को अपनी नीयत और नीति दोनों को साफ करना होगा। उसे यह साबित करना होगा कि सरकारी योजनाओं का उद्देश्य सिर्फ आंकड़ों की बाज़ीगरी नहीं बल्कि आम जनता के जीवन को बेहतर बनाना है। अगर वह इस मौके को भी गंवा देती है, तो आने वाले समय में जनता का भरोसा लौटाना बेहद मुश्किल होगा।