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सावन में हरिद्वार फिर बना शिव भक्ति का केंद्र, गूंजे ‘हर हर महादेव’ के जयघोष

हरिद्वार की फिजाओं में गूंजे शिव नाम, गंगा तट पर उमड़ा आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने भक्ति और सेवा से रचा अनुपम दृश्य।

हरिद्वार। भारत की आध्यात्मिक राजधानी हरिद्वार एक बार फिर सावन के महीने में शिवमय हो उठी है। जैसे ही पवित्र श्रावण मास ने दस्तक दी, तीर्थनगरी की फिजाओं में शिव भक्ति का ऐसा रंग घुला कि हर दिशा “हर हर महादेव” के घोष से मुखरित हो गई। देश के कोने-कोने से करोड़ों शिवभक्त गंगाजल लेने हरिद्वार पहुंचने लगे हैं। नंगे पांव, कंधे पर कांवड़ उठाए ये श्रद्धालु मां गंगा के पावन घाटों से जल भरकर अपने-अपने गांव, नगर और शहर के शिवालयों की ओर निकलते हैं। उनकी आस्था, तपस्या और सेवा भावना से पूरा हरिद्वार क्षेत्र एक आध्यात्मिक चेतना में डूबा दिखाई देता है। हर की पैड़ी, मालवीय घाट, सुभाष घाट, रोड़ीबेलवाला, पंतदीप घाट जैसे प्रमुख स्थलों पर जनसैलाब उमड़ रहा है, जहां शिवभक्त आस्था के साथ जल भरने पहुंच रहे हैं। पूरा शहर केसरिया रंग में डूबा नजर आ रहा है, हर गली में शिव भजनों की गूंज और हर रास्ते पर घंटियों, घुंघरुओं और डमरुओं की मधुर ध्वनि वातावरण को भक्तिमय बना रही है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है। इसी महीने में भगवान शंकर का पूजन करने से मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं। श्रद्धालु विशेषकर इस माह में कनखल स्थित दक्ष प्रजापति मंदिर, तिल भांडेश्वर, दरिद्र भंजन, नीलेश्वर महादेव और बिल्वेश्वर महादेव जैसे प्राचीन मंदिरों में जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ते हैं। मान्यता है कि इस समय भगवान शिव हरिद्वार में ही निवास करते हैं और इसी कारण कांवड़ियों के लिए यह यात्रा विशेष फलदायक मानी जाती है। सुबह से लेकर देर रात तक इन मंदिरों में घंटों लंबी कतारें लगी रहती हैं, पर कोई भक्त थकता नहीं, उल्टा हर दर्शन, हर जल अर्पण के साथ उसका मन आनंद से भर उठता है।

हरिद्वार की फिजा इस समय सिर्फ भक्ति तक सीमित नहीं है, यह दृश्य देश की एकता, श्रद्धा और संस्कृति का भी एक अनूठा उदाहरण बन चुका है। तिरंगों से सजी कांवड़ें, भारत माता के जयकारों से गूंजता आकाश और हजारों शिवभक्तों की एक साथ हर घाट पर उपस्थिति — यह सब मिलकर उस अद्भुत चित्र की रचना कर रहे हैं जो देश की आत्मा को छू जाता है। शिवभक्तों के दल जब शाम के समय रोशनी से जगमगाते हुए सड़कों से गुजरते हैं, तो वह मंजर देखने वालों की आंखों में एक अमिट छवि छोड़ देता है। कोई ढोल बजा रहा होता है, तो कोई नाचते-गाते अपने आराध्य की स्तुति कर रहा होता है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि संस्कृति, श्रद्धा और भारतीयता का चलायमान उत्सव बन चुका है।

मां गंगा भी इस समय अपने रौद्र और शीतल दोनों रूपों में दर्शन देती हैं। एक ओर उनकी धारा तेज़ होकर घाटों को लहरों से भर रही है, वहीं दूसरी ओर वही जल भक्तों के लिए भगवान शिव के अभिषेक हेतु शीतल अमृत बन जाता है। मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था और हलाहल विष निकला था, तब शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया था। उस समय से यह विश्वास है कि गंगाजल से उनका अभिषेक करना विष की अग्नि को शांति देता है। यही कारण है कि सावन में गंगाजल का महत्व और भी बढ़ जाता है, और श्रद्धालु इसे भरने के लिए हरिद्वार तक की यात्रा करने में तन-मन से जुट जाते हैं।

कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार प्रशासन भी पूरी तरह सक्रिय है। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल, होम गार्ड और पीएसी तैनात की गई है। मेडिकल स्टाफ, एंबुलेंस, फर्स्ट एड शिविर, मुफ्त दवाएं, जल वितरण केंद्र, शौचालय, साफ-सफाई — हर सुविधा को सुनिश्चित किया गया है ताकि किसी भी श्रद्धालु को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। नगर निगम, पुलिस प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों की साझा भागीदारी से व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने की हरसंभव कोशिश हो रही है। इन सबके बीच श्रद्धालुओं को यह एहसास कराया जा रहा है कि वे तीर्थ यात्रा पर नहीं, अपने ही घर आए हैं।

स्थानीय लोगों ने भी इस आयोजन को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जगह-जगह भंडारे, जल सेवा केंद्र, छायादार विश्राम स्थल और औषधि वितरण केंद्र बनाए गए हैं। गर्मी से परेशान कांवड़ियों के लिए शरबत और ठंडे पानी का भी भरपूर इंतजाम है। श्रद्धालुओं के चेहरे पर मुस्कान और सेवकों के हावभाव में समर्पण की भावना देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि हरिद्वार केवल एक तीर्थ नहीं, अपितु श्रद्धा का जीवंत स्वरूप है। यहां सेवा भी है, समर्पण भी है और भारतीय संस्कृति की गहराई भी है।

हरिद्वार में सावन का यह आयोजन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अतुलनीय है। यह वह समय होता है जब संपूर्ण भारतवर्ष से श्रद्धालु एक स्थान पर आकर एकात्मता और आस्था का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करते हैं। यह यात्रा यह भी सिखाती है कि धर्म केवल पूजा नहीं, सेवा भी है; केवल भक्ति नहीं, सहअस्तित्व भी है। हरिद्वार का सावन अब एक पर्व से कहीं बढ़कर भारत की जीवंत आत्मा का उत्सव बन गया है — जहां शिव के चरणों में सारा देश समर्पित भाव से उपस्थित होता है। यही भारत की असली पहचान है — एकता, भक्ति और संस्कृति का अविरल प्रवाह, जिसकी स्रोतभूमि हरिद्वार की दिव्यता में समाहित है।

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