रामनगर। उत्तराखंड की प्रतिष्ठित चारधाम यात्रा, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र होती है, अब एक गंभीर संकट से गुजर रही है। बीते डेढ़ महीने में यहां हेलीकॉप्टर संचालन से जुड़ी घटनाओं ने राज्य की हवाई यात्रा प्रणाली की पोल खोल दी है। श्रद्धालुओं की सुविधा के नाम पर शुरू की गई ये हवाई सेवाएं अब खतरनाक साबित हो रही हैं। 30 अप्रैल से अब तक की यात्रा अवधि में पांच गंभीर हवाई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें दो हेलीकॉप्टर पूरी तरह क्रैश हो चुके हैं। इन हादसों में 13 लोगों की दर्दनाक मौत हो चुकी है, जिनमें एक मासूम बच्ची भी शामिल थी। हवाई यात्राओं में सुरक्षित सफर की उम्मीद लेकर निकले श्रद्धालुओं के लिए अब हर उड़ान किसी जुए से कम नहीं लग रही। देश की शीर्ष एविएशन नियामक संस्थाएं डीजीसीए और यूकाडा की सख्ती के बावजूद इन घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पाया है, जिससे आमजन में भय और असमंजस का माहौल पैदा हो गया है।
हाल ही में 15 जून को गौरीकुंड के निकट हुई त्रासदी ने फिर से इस मुद्दे को गर्मा दिया है। केदारनाथ से गुप्तकाशी के लिए उड़ान भरते ही जैसे ही हेलीकॉप्टर गौरीकुंड के आसमान में पहुंचा, मौसम की बेरुखी ने अपना कहर बरपाया। खराब विजिबिलिटी और तेज हवाओं के चलते हेलीकॉप्टर नियंत्रण खो बैठा और जमीन से टकरा गया। इस हृदय विदारक हादसे में पायलट समेत सात लोगों की मौके पर मौत हो गई, जिनमें एक 23 महीने की बच्ची भी शामिल थी। इस हादसे की मार ने न सिर्फ पीड़ित परिवारों को झकझोर दिया, बल्कि प्रशासन और हेली कंपनियों की कार्यप्रणाली पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। इस हादसे की भयावहता से पूरा राज्य सिहर उठा और एक बार फिर चारधाम यात्रा की सुरक्षा को लेकर चिंता गहराने लगी।
गौरीकुंड की घटना कोई इकलौती नहीं है, इससे पहले भी 8 मई को उत्तरकाशी जिले के गंगनानी में क्रिस्टल एविएशन का एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। यह हेलीकॉप्टर खरशाली से झाला के लिए उड़ा था, जिसमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश से आए श्रद्धालु सवार थे। गंगोत्री धाम के दर्शन की चाह लिए निकले ये श्रद्धालु मंजिल तक नहीं पहुंच सके। तकनीकी गड़बड़ी के चलते हुई इस दुर्घटना में 6 लोगों की मौके पर मौत हो गई थी, वहीं एक यात्री गंभीर रूप से घायल हो गया। ये हादसा भी दर्शाता है कि ना तो मौसम का सही पूर्वानुमान लिया गया और ना ही तकनीकी निरीक्षण में कोई गंभीरता बरती गई। हैरानी की बात ये है कि इतनी बड़ी दुर्घटना के बावजूद संचालन एजेंसियों और कंपनियों पर प्रभावी कार्यवाही आज तक होती नहीं दिखी है।
7 जून को एक बार फिर क्रिस्टल एविएशन का नाम सामने आया, जब उसके एक हेलीकॉप्टर ने उड़ान के तुरंत बाद हाईवे पर क्रैश लैंडिंग की। बड़ासू हेलीपैड से केदारनाथ के लिए रवाना हुआ यह हेलीकॉप्टर उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद नियंत्रण खो बैठा और हाईवे पर अचानक लैंडिंग करनी पड़ी। हालांकि इस हादसे में किसी को शारीरिक चोट नहीं पहुंची, लेकिन हेलीकॉप्टर का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया और एक खड़ी कार भी टकराव में क्षतिग्रस्त हुई। हेलीकॉप्टर में पायलट समेत कुल 7 लोग सवार थे। इस घटना के बाद डीजीसीए ने क्रिस्टल एविएशन के संचालन पर तत्काल रोक लगा दी थी, जो फिलहाल भी जारी है। इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि उत्तराखंड के कठिन भूगोल और अस्थिर मौसम में उड़ानें बिना पर्याप्त सावधानी के जोखिमभरी हैं।
इससे पहले 13 मई को ऊखीमठ में एक और हेलीकॉप्टर हादसे को बाल-बाल टाला गया। यह हेलीकॉप्टर बदरीनाथ से श्रद्धालुओं को लेकर लौट रहा था, लेकिन बीच आसमान में तकनीकी गड़बड़ी के कारण यह डगमगाने लगा। पायलट की समझदारी ने स्थिति को काबू में लाया और उन्होंने ऊखीमठ में इमरजेंसी लैंडिंग कर दी। बताया गया कि मौसम की खराबी और विजिबिलिटी कम होने के कारण पायलट को यह बड़ा निर्णय लेना पड़ा। भले ही यह हादसा गंभीर रूप नहीं ले सका, लेकिन यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि चारधाम यात्रा के दौरान हेलीकॉप्टर संचालन में पर्याप्त सतर्कता और तकनीकी तैयारी नहीं बरती जा रही है। बार-बार की घटनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि न तो मशीनों की हालत संतोषजनक है और न ही ऑपरेटरों की तैयारी।
यात्रा के दौरान 17 मई को एक और दुर्घटना केदारनाथ में हुई, जब एक हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरते ही कुछ ही दूरी पर क्रैश लैंडिंग कर दी। यह हेलीकॉप्टर एम्स ऋषिकेश के लिए रवाना हुआ था। गनीमत रही कि इस हादसे में किसी यात्री को गंभीर चोट नहीं आई। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर एक के बाद एक हो रही इन घटनाओं से कब सबक लिया जाएगा? महज डेढ़ महीने के भीतर दो जानलेवा क्रैश, दो क्रैश लैंडिंग और एक इमरजेंसी लैंडिंग ने यह बता दिया है कि इस पवित्र यात्रा में अब श्रद्धा के साथ-साथ डर भी शामिल हो गया है। यूकाडा और डीजीसीए जैसी संस्थाएं कड़ी निगरानी और नियमों का हवाला देती रही हैं, लेकिन जमीन पर हालात बिल्कुल अलग तस्वीर दिखाते हैं।
जब श्रद्धालु अपने दिल में आस्था लेकर चारधाम यात्रा पर निकलते हैं, तो उन्हें इस बात पर पूरा विश्वास होता है कि राज्य सरकार, प्रशासन और हवाई सेवा प्रदाता उनकी सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे। लेकिन बीते डेढ़ महीने में हुए लगातार हेलीकॉप्टर हादसों ने इस विश्वास को गहरा आघात पहुंचाया है। श्रद्धालुओं के लिए यह यात्रा अब केवल आध्यात्मिक नहीं रही, बल्कि उनके जीवन के लिए एक गंभीर जोखिम बनती जा रही है। इन दुर्घटनाओं ने यह भी उजागर कर दिया है कि वर्तमान व्यवस्थाएं नाकाफी हैं और केवल नियम-कायदे बनाना ही काफी नहीं है। अब उत्तराखंड सरकार और एविएशन नियामकों को समय गंवाए बिना ज़मीनी स्तर पर सख्त कार्रवाई करनी होगी। कागजी कार्रवाई और जांच बैठकों से आगे बढ़ते हुए तकनीकी मानकों, मौसम निरीक्षण और पायलट ट्रेनिंग जैसी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना बेहद जरूरी है, ताकि श्रद्धालुओं का विश्वास फिर से बहाल हो सके।