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संस्कृत में गूंजा सचिवालय जब 32 विभागों के अधिकारी बोले एक ही भाषा

देववाणी संस्कृत को जीवन का हिस्सा बनाने की मुहिम में जुटे उत्तराखंड सचिवालय के अधिकारी और कर्मचारी हुए मंत्रमुग्ध।

देहरादुन। उत्तराखंड सचिवालय स्थित देवेंद्र शास्त्री भवन में आयोजित अभूतपूर्व संस्कृत संभाषण शिविर का समापन समारोह एक दिव्य और गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ। इस शिविर का आयोजन उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार के नेतृत्व में किया गया, जिसमें प्रदेश के विभिन्न विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया। समारोह का आरंभ वैदिक मंत्रोच्चार और संस्कृत स्तोत्रों की गूंज के साथ हुआ, जिसने पूरे सभागार को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। मंच पर उपस्थित अतिथियों और वक्ताओं ने संस्कृत के महत्व और उसकी व्यवहारिक उपयोगिता पर प्रभावशाली विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और संस्कृत में दिए गए वक्तव्यों ने वहां मौजूद सभी जनों को प्रेरणा और दिशा प्रदान की।

उत्तराखंड शासन में संस्कृत शिक्षा से जुड़े प्रमुख अधिकारी दीपक कुमार गैरोला ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश सरकार की संस्कृत के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने बताया कि राज्य में संस्कृत को केवल एक विषय के रूप में नहीं, बल्कि जन-जन की भाषा बनाने के लिए योजनाएं धरातल पर लाई जा रही हैं। निकट भविष्य में प्रदेश के 13 गांवों को ष्संस्कृत ग्रामष् के रूप में विकसित करने की तैयारी चल रही है, जहां जनजीवन की भाषा संस्कृत होगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विभिन्न शैक्षणिक और प्रशासनिक संस्थाएं एकजुट होकर संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। उन्होंने उपस्थित जनसमूह से आह्वान किया कि संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रूप में जीवंत बनाने हेतु सबका सक्रिय सहयोग आवश्यक है।

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री ने अपने वक्तव्य में संस्कृत को भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हुए कहा कि यह भाषा केवल ग्रंथों की नहीं, बल्कि आचरण और व्यवहार की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने उपस्थित अधिकारियों को प्रेरित किया कि वे संस्कृत को अपने जीवन में स्थान दें, क्योंकि भारतीय संस्कृति की नींव इसी देववाणी पर टिकी है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि संस्कृत व्यवहार में उतरे, तो शास्त्रों की सार्थकता और प्रासंगिकता और अधिक स्पष्ट रूप से समाज में परिलक्षित होगी। उन्होंने कहा कि संस्कृत को केवल साहित्य या पुरातन ज्ञान का माध्यम न मानकर, इसे आधुनिक संदर्भों में उपयोग में लाना समय की मांग है।

संस्कृत शिक्षा निदेशालय के निदेशक डॉ. आनंद भारद्वाज ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत संस्कृत के स्थान और महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज की वैज्ञानिक खोजें, जो आधुनिक प्रयोगशालाओं में सिद्ध हो रही हैं, उनका उल्लेख हजारों वर्ष पहले संस्कृत ग्रंथों में मिल जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ग्राम स्तर से लेकर राज्य स्तर तक भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस प्रयास कर रही है। प्रशिक्षण के माध्यम से कर्मियों को इस अमूल्य भाषा की व्यवहारिकता से जोड़ना एक अभिनव प्रयोग है, जिससे प्रशासनिक कार्यों में भी संस्कृत का समावेश हो सके।

इस विशेष शिविर में कुल 58 अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया, जो प्रदेश के 32 विभिन्न विभागों से जुड़े हुए थे। इनमें सूचना प्रौद्योगिकी, समाज कल्याण, सचिवालय प्रशासन, ग्राम्य विकास, शिक्षा, चिकित्सा, मत्स्य, सहकारिता, पशुपालन, वित्त, उद्योग, पुस्तकालय, उच्च शिक्षा, नियमावली प्रकोष्ठ, विकास निगम आदि शामिल रहे। सभी प्रतिभागियों को शुद्ध उच्चारण, व्याकरण और संवाद कौशल का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया, जिससे वे अपने कार्यक्षेत्र में संस्कृत का प्रयोग प्रारंभ कर सकें। इस अनूठे आयोजन को सभी प्रतिभागियों ने अत्यंत लाभकारी और ज्ञानवर्धक बताया।

कार्यक्रम में स्वागत और संचालन की जिम्मेदारी विशिष्ट अधिकारियों द्वारा कुशलता से निभाई गई। अकादमी के वित्त अधिकारी, संयोजिका अनुभाग अधिकारी, शोध अधिकारी और प्रकाशन प्रभारी ने कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। शिविर के दो प्रशिक्षकों डॉ. महेश चंद्र मासिवाल और धीरज मैठाणी को उनके योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र और अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अनेक विभागों के अधिकारी, कर्मचारी और विद्वजन बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि संस्कृत केवल परंपरा नहीं, बल्कि भविष्य की भाषा बनने की क्षमता रखती है।

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