रामनगर। पर्यटन नगरी में रविवार को ऐसा नज़ारा देखने को मिला जिसने न सिर्फ सैलानियों के उत्साह पर पानी फेर दिया, बल्कि प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए। भीषण ट्रैफिक जाम की वजह से कॉर्बेट नेशनल पार्क और मोहान की ओर जाने वाला नेशनल हाईवे 309 लगभग एक स्थिर धारा में तब्दील हो गया, जिसमें वाहनों की लंबी कतारें किसी सर्प की तरह रेंगती नजर आईं। तकरीबन 12 किलोमीटर की दूरी को तय करने में गाड़ियों को पांच घंटे से अधिक समय लगा, जिससे हालात बद से बदतर हो गए। सैकड़ों की संख्या में पहुंचे सैलानी, जिनकी योजनाएं जंगल सफारी और प्राकृतिक नजारों का आनंद लेने की थीं, जाम के चलते मायूस हो गए। कई बुजुर्ग और बीमार यात्री कारों में फंसे तड़पते रहे, जबकि छोटे बच्चे भूख और गर्मी से बेहाल होते रहे। यह सब होते हुए भी स्थानीय प्रशासन कहीं दिखाई नहीं दिया, जिससे लोगों का आक्रोश और बढ़ गया।
रविवार को रामनगर की सड़कों पर जो दृश्य बना, उसने यह साबित कर दिया कि प्रशासन केवल मौसम की स्थिति या पर्यटकों की भीड़ को देखता भर है, मगर उससे निपटने की कोई ठोस रणनीति नहीं बनाता। हर साल गर्मी के सीजन और सप्ताहांत पर उत्तर भारत के विभिन्न इलाकों जैसे दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और लखनऊ से भारी संख्या में पर्यटक रामनगर का रुख करते हैं, इसके बावजूद ट्रैफिक नियंत्रण के इंतजाम पुराने ढर्रे पर ही चलते रहते हैं। जब कॉर्बेट जैसे पर्यटन स्थलों पर भी प्रशासनिक चूक नजर आए, तो ये सोचने पर मजबूर करता है कि बाकी क्षेत्रों की स्थिति क्या होगी। वैकल्पिक मार्गों की पहले से पहचान कर व्यवस्था नहीं बनाना, सीमित संख्या में पुलिस बल तैनात करना और ट्रैफिक को डायवर्ट करने के लिए पर्याप्त सूचनाएं न देना, ये सभी कमियां साफ तौर पर सामने आईं।
जाम में फंसे पर्यटकों की हालत ऐसी हो गई कि कई लोगों को सफारी का निर्धारित समय दोपहर 2रू00 बजे का होने के बावजूद देर शाम तक कॉर्बेट के द्वार तक भी पहुंचना नसीब नहीं हुआ। कई यात्री अपने वाहनों को किनारे खड़ा कर घंटों पैदल चलते नजर आए। सफारी की बुकिंग के पैसे डूबे और समय की बर्बादी ने लोगों की छुट्टियों की योजना को बर्बाद कर दिया। सैलानियों में से कुछ ने अपने अनुभव को सोशल मीडिया पर लाइव स्ट्रीम कर प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि इतनी बड़ी संख्या में वाहनों के प्रवेश की संभावना पहले से होते हुए भी ट्रैफिक मैनेजमेंट पर कोई गंभीर पहल क्यों नहीं की गई। स्थिति यह रही कि जंगल देखने के लिए आए लोग खुद शहर के कंक्रीट जंगल में फंसकर रह गए।
स्थानीय नागरिकों की भी प्रतिक्रिया तीखी रही। उनका कहना था कि यह पहली बार नहीं हुआ है जब रामनगर की सड़कें जाम से लबालब हुई हों। हर सप्ताहांत ऐसी स्थिति बनती है, लेकिन फिर भी प्रशासन की तरफ से न तो अतिरिक्त पुलिस बल की व्यवस्था की जाती है और न ही कोई यातायात नियंत्रण योजना लागू होती है। स्थानीय दुकानदारों और होटलों के मालिकों का कहना था कि इस तरह की अनियोजित व्यवस्था से पर्यटन पर बुरा असर पड़ता है और व्यापार को भी नुकसान उठाना पड़ता है। शहर के चौराहों से लेकर जंगल की सीमा तक पूरा इलाका एक यातायात त्रासदी में तब्दील हो गया, जिसे बेहतर योजना से आसानी से रोका जा सकता था। ट्रैफिक पुलिस की निष्क्रियता और समन्वय की कमी ने रामनगर की छवि को पर्यटकों की नजर में धूमिल कर दिया है।
यह जाम सिर्फ ट्रैफिक की समस्या नहीं, बल्कि एक गहरी प्रशासनिक विफलता का प्रतीक बन गया है। जहां एक ओर राज्य सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर बुनियादी व्यवस्थाओं की इस तरह की लापरवाही उन प्रयासों को कमजोर कर रही है। अगर रामनगर जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों पर आने वाले समय में भी ऐसे ही हालात बने रहे, तो इसका असर न केवल पर्यटन उद्योग पर पड़ेगा, बल्कि उत्तराखंड की छवि भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित होगी। पर्यटकों ने तो यहां तक कह दिया कि अगली बार वे इस स्थान को अवॉइड करना चाहेंगे, क्योंकि सफारी का रोमांच अगर जाम में ही दम तोड़ दे तो वहां जाने का कोई औचित्य नहीं बचता। प्रशासन के लिए यह एक चेतावनी है कि यदि अब भी समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो पर्यटन से जुड़ी तमाम योजनाएं और सपने केवल फाइलों तक ही सीमित रह जाएंगे।