रामनगर। नैनीताल जिले का रामनगर अब केवल जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और प्राकृतिक सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि एक खास फल की वजह से देश-विदेश में प्रसिद्ध हो रहा है। जी हां, बात हो रही है यहां की रसीली और मीठी लीची की, जो अब पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर विज्ञान, शोध और नवाचार की मिसाल बन चुकी है। दो साल पहले रामनगर की लीची को ळप् टैग मिला था, जिसने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट पहचान दिलाई। लेकिन अब एक नई तकनीक दृ नॉन वोवन बैग्स दृ ने इस लीची को और भी खास बना दिया है। ये बैग्स न केवल लीची की सुरक्षा में कारगर हैं, बल्कि इससे फलों का स्वाद, रंग और आकार भी बेहतर हो रहा है। इस नवाचार से रामनगर की लीची अब केवल एक फल नहीं रही, बल्कि यह एक ब्रांड, एक मिसाल और उत्तराखंड के किसानों की मेहनत की पहचान बन चुकी है।
रामनगर, कालाढुंगी और चकलुआ जैसे इलाकों में लीची की खेती अब किसी सामान्य कृषि गतिविधि की तरह नहीं देखी जा रही। यह अब तकनीकी शोध और सतत नवाचार का परिणाम है। बागान मालिक दीप बेलवाल ने पंतनगर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर तीन वर्षों तक एक प्रयोग किया और यह जानने की कोशिश की कि लीची को कीटों, चिड़ियों, चमगादड़ों, तेज गर्मी और तूफानों से कैसे बचाया जा सकता है। इसी प्रयोग में सामने आया नॉन वोवन बैग्स का विचार, जिसमें लीची के गुच्छों को बैग्स से ढक दिया गया। इसका परिणाम चौंकाने वाला था दृ लीची न केवल सुरक्षित रही, बल्कि उसका रंग ज्यादा दमकता हुआ, आकार बड़ा और स्वाद ज्यादा मीठा पाया गया। इतना ही नहीं, बैग के कारण कीटनाशक छिड़काव की जरूरत भी नहीं पड़ी, जिससे खेती की लागत घटी और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं हुआ।
यह तकनीक पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है और खेती को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ बाजार में लीची की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाती है। दीप बेलवाल बताते हैं कि जब हमने खुले में उगाई गई लीची और बैग में लिपटी लीची का तुलनात्मक अध्ययन किया, तो अंतर साफ नजर आया। बैग में लिपटी लीची न केवल अधिक रसदार और बड़ी थी, बल्कि उसमें क्रैकिंग की समस्या भी नहीं थी। दूसरी ओर, खुले में उगने वाली लीची पर कीड़ों और चिड़ियों का हमला अधिक देखा गया और स्वाद में भी वह पीछे रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि नॉन वोवन बैग्स किसानों के लिए लीची की सुरक्षा और गुणवत्ता बढ़ाने का एक सफल और किफायती समाधान है।

उद्यान विभाग भी इस तकनीक को लेकर काफी उत्साहित है। अर्जुन सिंह परवाल, जो कि उद्यान अधिकारी हैं, बताते हैं कि नॉन वोवन बैग्स ने लीची की क्रैकिंग की पुरानी समस्या को काफी हद तक खत्म कर दिया है। बैग के कारण फल सीधे धूप, बारिश, ओलों और तेज हवाओं के असर से बचा रहता है। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई है और लीची की गुणवत्ता भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब पहुंच गई है। यही कारण है कि इस बार बाजार में रामनगर की लीची को बेहतर दाम मिले हैं और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार देखा गया है। उद्यान विभाग का मानना है कि यदि इस तकनीक को व्यापक रूप से लागू किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह पूरा क्षेत्र देश का सबसे प्रमुख लीची उत्पादक हब बन सकता है। कोटाबाग, कालाढुंगी और चकलुआ जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इस तकनीक को अपनाने की योजना बनाई जा रही है।
रामनगर की लीची की यह कहानी केवल स्वाद और बाजार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विज्ञान और मेहनत के संगम की प्रेरणादायक गाथा है। वर्ष 2023 में जब इस क्षेत्र की लीची को ळप् टैग मिला था, तभी से किसानों में इसे लेकर एक नई जागरूकता और उत्साह पैदा हुआ। इस क्षेत्र में वर्तमान में लगभग 900 हेक्टेयर में लीची की खेती की जा रही है, जहां 1.40 लाख से अधिक पेड़ हैं और 2000 से ज्यादा किसान इस खेती से जुड़े हुए हैं। अब जबकि नॉन वोवन बैग्स जैसी तकनीक से लीची की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बेहतर हो रहे हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि रामनगर की लीची जल्द ही विदेशों में भी उत्तराखंड की पहचान बन सकती है।

लीची की मिठास अब केवल स्वाद की बात नहीं रही, वह मेहनत, शोध, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और तकनीकी प्रगति का परिणाम है। नॉन वोवन बैग्स को पॉलीप्रोपाइलीन से बनाया जाता है, जो पारंपरिक प्लास्टिक के मुकाबले पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होता है। ये बैग पानी प्रतिरोधी होते हैं और लीची के लिए पूरी तरह सुरक्षित माने जाते हैं। अब जब एक सामान्य से दिखने वाले फल को वैज्ञानिक सोच ने नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है, तो यह स्पष्ट है कि भारत में खेती अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि नवाचार और बदलाव की ओर बढ़ रही है। रामनगर की लीची की यह नई उड़ान न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारेगी, बल्कि देश को वैश्विक फलों के बाजार में एक नई पहचान भी दिलाएगी।