spot_img
दुनिया में जो बदलाव आप देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए. - महात्मा गांधी
Homeउत्तराखंडखतरे में जैव विविधता, क्या बचा पाएंगे अगली पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक...

खतरे में जैव विविधता, क्या बचा पाएंगे अगली पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक विरासत?

प्रकृति की अनमोल धरोहर तेजी से खत्म हो रही है, अगर अब भी नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ियां सिर्फ तस्वीरों में देख पाएंगी इन्हें।

रामनगर। धरती पर जीवन की विविधता का अस्तित्व किसी चमत्कार से कम नहीं है, लेकिन दुर्भाग्यवश यह चमत्कार आज संकट के दौर से गुजर रहा है। जहां कभी जंगलों में पक्षियों की चहचहाहट और नदियों में जीवों की हलचल जीवन का प्रतीक मानी जाती थी, वहीं अब यह दृश्य धीरे-धीरे दुर्लभ होता जा रहा है। जीव-जंतुओं से लेकर वनस्पतियों तक, हजारों ऐसी प्रजातियां हैं जो अब इतिहास बनने की कगार पर हैं। अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस केवल एक आयोजन भर नहीं, बल्कि वह चेतावनी है जो बार-बार हमें इस खतरे की गंभीरता का एहसास दिलाता है। हर वर्ष इस दिन न केवल जैव विविधता के महत्व को उजागर किया जाता है, बल्कि इसके संरक्षण के लिए योजनाओं पर भी विचार किया जाता है। बावजूद इसके, इंसान की लापरवाहियों ने प्राकृतिक संतुलन को इस हद तक बिगाड़ दिया है कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता का भविष्य अधर में लटकता नजर आ रहा है।

हर प्रजाति का इस पृथ्वी पर एक खास स्थान है और उसकी उपस्थिति किसी न किसी अन्य प्रजाति से जुड़ी होती है। जीव-जंतुओं और पेड़ों-पौधों के बीच एक अदृश्य तंत्र होता है जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलन प्रदान करता है। लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य ने अपने फायदे के लिए जंगलों को काटा, जीवों के आवास छीन लिए और जलवायु को बदतर बनाया, यह तंत्र कमजोर होता गया। नतीजा यह हुआ कि हजारों प्रजातियां संकटग्रस्त हो गईं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। संस्था ने 1 लाख 70 हजार से अधिक प्रजातियों का मूल्यांकन किया है, जिनमें से 47 हजार से अधिक प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर माना गया है। मतलब यह कि कुल मूल्यांकित प्रजातियों में से करीब 28 फीसदी अब संकटग्रस्त हैं। यह आंकड़ा साफ तौर पर बताता है कि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो जैव विविधता का यह ढांचा पूरी तरह ढह सकता है।

खास बात यह है कि संकट सिर्फ कुछ जानवरों या पौधों तक सीमित नहीं है। IUCN की रेड लिस्ट के अनुसार, उभयचरों की 41 फीसदी प्रजातियां, स्तनधारियों की 27 फीसदी, पक्षियों की 12 फीसदी, मछलियों की 37 फीसदी और सरीसृपों की 21 फीसदी प्रजातियां खतरे की जद में हैं। वनस्पतियों की बात करें तो 38 फीसदी पेड़ों की प्रजातियां भी अब विलुप्ति के कगार पर हैं। यह वैश्विक परिदृश्य है, लेकिन भारत और खासकर उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। राज्य में 15 वन्यजीवों को चिन्हित किया गया है जो अब विलुप्ति के बेहद करीब हैं। साथ ही पादप प्रजातियों की श्रेणी में भी 16 नाम ऐसे हैं जिनका अस्तित्व खतरे में है। इन प्रजातियों की घटती संख्या को ध्यान में रखते हुए अधिसूचना जारी की गई है ताकि इनका संरक्षण और संवर्धन समय रहते किया जा सके।

उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड और वन विभाग मिलकर ऐसे जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की सुरक्षा और पुनर्स्थापन पर काम कर रहे हैं। राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार, जैव विविधता केवल प्रकृति की शोभा ही नहीं, बल्कि इंसानों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। विभाग अनुसंधान कार्यों के माध्यम से यह जानने की कोशिश कर रहा है कि किन परिस्थितियों में ये प्रजातियां ज्यादा सुरक्षित रह सकती हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों, शिक्षण संस्थानों और संग्रहालयों को भी इस दिशा में जोड़ने की कवायद चल रही है। प्रचार-प्रसार के माध्यम से आमजन को भी इस दिशा में जागरूक किया जा रहा है ताकि प्रकृति के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित किया जा सके।

दरअसल, जैव विविधता के इस संकट के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि इंसान स्वयं है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, अनियंत्रित कृषि विस्तार और अनियोजित विकास परियोजनाएं लगातार प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर रही हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, जल व वायु प्रदूषण तथा अवैध शिकार जैसी गतिविधियां जैव विविधता पर सीधा हमला करती हैं। कुछ क्षेत्रों में तो स्थिति इतनी खराब हो गई है कि स्थानीय प्रजातियां पूरी तरह लुप्त हो गई हैं। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में यह खतरा और भी ज्यादा है क्योंकि यहां की जैव विविधता अद्वितीय और संवेदनशील दोनों है।

इसी गंभीरता को देखते हुए इस बार अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की थीम ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास’ रखी गई है। इस विषय के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि विकास जरूरी है, लेकिन प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर ही यह संभव है। उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने पिछले छह महीनों में 100 से ज्यादा स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं। छात्रों को जैव विविधता के महत्व और इसके संरक्षण के उपायों के बारे में जानकारी दी गई है। यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन जब तक यह पहल समाज के हर वर्ग तक नहीं पहुंचेगी, तब तक व्यापक बदलाव की उम्मीद करना कठिन है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जैव विविधता के इस संकट को लेकर गंभीर चिंताएं जताई जा रही हैं। कई वैश्विक संस्थाएं जैसे कि UNESCO, IUCN आदि समय-समय पर प्रजातियों के आंकड़े जारी करती हैं और उनके संरक्षण के लिए नीति निर्धारण करती हैं। इन संस्थाओं की नजर न केवल संकटग्रस्त प्रजातियों पर होती है, बल्कि वे आने वाले समय के लिए रोडमैप भी तैयार करती हैं ताकि भावी पीढ़ियों को एक सुरक्षित और समृद्ध जैव विविधता सौंपी जा सके। यह एक ऐसा वैश्विक प्रयास है जिसमें हर देश, हर राज्य और हर व्यक्ति की भागीदारी जरूरी है।

अगर जैव विविधता के इस गंभीर संकट पर अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियां केवल किताबों में चित्रों के माध्यम से हाथी, बाघ, मेंढक, साल और देवदार जैसे जीव-जंतुओं और पेड़ों को देख पाएंगी। वे शायद ही कभी यह समझ पाएंगे कि कैसे एक समय में यह धरती विविध जीवन से भरी हुई थी। यही समय है जब हम सभी को मिलकर न केवल जागरूक होने की जरूरत है, बल्कि ठोस और कारगर कदम भी उठाने होंगे। जैव विविधता की रक्षा करना अब केवल वैज्ञानिकों या सरकारों की जिम्मेदारी नहीं, यह हम सबकी साझा जिम्मेदारी बन चुकी है।

संबंधित ख़बरें
गणतंत्र दिवस की शुभकामना
75वां गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

लेटेस्ट

ख़ास ख़बरें

error: Content is protected !!