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शराब माफियाओं का आतंक, बेखौफ गलियों में बिक रही ज़हर की होम डिलीवरी, आबकारी विभाग की चुप्पी पर उठे सवाल

आबकारी विभाग की लापरवाही ने तस्करों को दी खुली छूट, जंगलों से लेकर मोहल्लों तक फैला जहरीली शराब का खतरनाक और बेधड़क कारोबार, पुलिस पर बढ़ा दबाव।

काशीपुर। इन दिनों कच्ची शराब का कारोबार जिस तेज़ी से पनप रहा है, उसने न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि समाज के हर कोने में इसके घातक असर की गूंज भी सुनाई देने लगी है। चाहे नगर का कोई गली-मोहल्ला हो या ग्रामीण अंचल के घने जंगल, हर स्थान पर इस गैरकानूनी धंधे ने अपनी जड़ें फैला दी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कच्ची शराब के कारोबार में लिप्त लोग किसी भी कानून या व्यवस्था का खौफ नहीं रखते। वो इतनी बेफिक्री से कच्ची शराब तैयार कर रहे हैं कि मानो उन्हें कोई रोकने वाला नहीं। यह बेधड़क गतिविधि केवल जंगलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब शहर के बाज़ारों, प्रतिष्ठानों और रिहायशी इलाकों तक अपनी पैठ बना चुकी है। लोग चर्चा कर रहे हैं कि कहीं न कहीं इस सबके पीछे व्यवस्था की विफलता और जिम्मेदार अधिकारियों की निष्क्रियता ज़िम्मेदार है, जिसने शराब माफियाओं को खुलेआम अपनी करतूतों को अंजाम देने की छूट दे रखी है।

गौरतलब है कि जिस काशीपुर को पौराणिक नगरी होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आज यह शहर शराब तस्करों का अड्डा बनता जा रहा है। स्थानीय लोगों की मानें तो अब यह धंधा इतने व्यापक स्तर पर फैल चुका है कि दुकानों के माध्यम से भी इसकी होम डिलीवरी की जा रही है। यह स्थिति दर्शाती है कि न केवल शराब बेचने वाले बल्कि खरीदने वाले भी निडर होकर इस जहर को अपने घर तक बुला रहे हैं। अब हालत यह है कि आम नागरिकों को भी कच्ची शराब के गंध से दो-चार होना पड़ता है, क्योंकि यह धंधा अब गुप्त नहीं रहा। शहर के कोने-कोने में इसकी चर्चा आम हो गई है। जिम्मेदार विभाग के प्रति लोगों में आक्रोश का माहौल है और वे यह जानना चाहते हैं कि आखिर क्या कारण है कि काशीपुर जैसे धार्मिक नगर में प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है?

आबकारी विभाग का रवैया इस पूरे मामले में सबसे अधिक संदेहास्पद माना जा रहा है। लोगों की जुबान पर यह बात स्पष्ट रूप से तैर रही है कि जब पुलिस विभाग एक के बाद एक कच्ची शराब के बड़े मामले उजागर कर रहा है, तब आबकारी विभाग आखिर क्यों मौन है? यह सवाल हर नागरिक के मन में बार-बार उठ रहा है कि जब आबकारी विभाग का सीधा संबंध शराब नियंत्रण से है, तब उसकी निष्क्रियता को किस रूप में लिया जाए? आमजन की मानें तो यह विभाग अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ चुका है और इसी का नतीजा है कि शराब तस्करों के हौसले बुलंद हैं। लोग यह भी कह रहे हैं कि आबकारी विभाग की लचर व्यवस्था के कारण तस्करों की पौ-बारह हो गई है और यह धंधा अब सामान्य व्यापार की तरह चल रहा है, जिसे कोई चुनौती देने वाला नहीं।

एक और चिंताजनक पहलू यह है कि पुलिस विभाग, जो मुख्य रूप से कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है, अब शराब तस्करों को पकड़ने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इसका सीधा अर्थ है कि आबकारी विभाग, जो कि विशेष रूप से इस काम के लिए बनाया गया था, अब अपने दायित्व से विमुख हो चुका है। यह भी देखने में आ रहा है कि आबकारी विभाग के बजाय पुलिस द्वारा पकड़ी जा रही शराब की मात्रा अधिक हो रही है, जिससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या आबकारी विभाग केवल खानापूर्ति के लिए ही मौजूद है? यह स्थिति उस सरकारी तंत्र के लिए एक आईना है, जिसे जनता ने सुरक्षा और नियंत्रण के लिए चुना था। नागरिक यह जानना चाहते हैं कि कब इस भ्रष्ट और निष्क्रिय तंत्र पर लगाम कसी जाएगी, ताकि काशीपुर को इस शराब के अभिशाप से मुक्ति दिलाई जा सके।

जहां एक ओर काशीपुर को ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उच्च स्थान प्राप्त है, वहीं दूसरी ओर इसकी पहचान अब धीरे-धीरे एक शराब माफिया गढ़ के रूप में होती जा रही है। नगर के प्रमुख मोहल्लों से लेकर स्कूलों, मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों के निकट तक यह जहरीली शराब खुलेआम बिक रही है, जिससे युवाओं पर इसका घातक असर पड़ रहा है। नागरिक समाज, सामाजिक संगठन और बुद्धिजीवी वर्ग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर प्रशासन क्यों आंखें मूंदे बैठा है? लोग पूछते हैं कि क्या आबकारी विभाग केवल कागजों में ही सक्रिय है और ज़मीनी स्तर पर इसकी कोई उपस्थिति नहीं रही? जब शहर में कच्ची शराब की इतनी स्पष्ट मौजूदगी है, तब संबंधित विभागों का चुप्पी साध लेना कहीं न कहीं इस बात की ओर संकेत करता है कि या तो वे इस कारोबार में मौन सहमति दे रहे हैं या फिर अपनी नाकामी को स्वीकार कर चुके हैं।

अंततः जनता का गुस्सा अब धीरे-धीरे उबाल पर है। नगरवासियों की मांग है कि आबकारी विभाग को तत्काल सक्रिय किया जाए और तस्करों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही प्रशासन से यह अपेक्षा है कि पुलिस और आबकारी विभाग के बीच बेहतर तालमेल स्थापित किया जाए ताकि इस बुराई की जड़ें समाप्त की जा सकें। लोगों को यह भी उम्मीद है कि काशीपुर को उसके धार्मिक और ऐतिहासिक गौरव से जोड़ने के लिए इस शराब माफिया संस्कृति का पूर्णतः सफाया करना अब प्रशासन की प्राथमिकता बनेगा। सवाल स्पष्ट हैकृआखिर कब जिम्मेदार विभाग अपनी नींद से जागेगा और कब तक यह नगर इस जहर से जूझता रहेगा?

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