रामनगर। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की रहस्यमयी वादियों में अब हाथियों की पहचान और उनके विचरण के रहस्यों से परदा हटाने के लिए एक ऐसी क्रांतिकारी शुरुआत की गई है, जो न सिर्फ वन विभाग की सीमाओं को तोड़ती है बल्कि आम नागरिकों को भी इस रोमांचक शोध यात्रा का सशक्त हिस्सा बना देती है। जंगलों की सिहरन भरी चुप्पी में अब कैमरों की क्लिक और आम लोगों की उत्सुक आंखें भी जुड़ने जा रही हैं, क्योंकि ‘पब्लिक साइंस प्रोजेक्ट’ नाम से शुरू हुई यह अनूठी पहल हर उस शख्स को मंच दे रही है जिसने कभी कॉर्बेट की धरती पर टस्कर हाथी की झलक देखी हो। अब फोटो खींचने का जुनून सिर्फ यादों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वह वन्यजीवों के संरक्षण की विशाल पहेली का एक अहम टुकड़ा बन जाएगा। जब लोग अपनी खींची तस्वीरों के साथ स्थान, समय और तारीख की जानकारी भेजेंगे, तो वह डाटा जंगल के इन राजसी दिग्गजों की चाल और उनके ठिकानों का राज खोलने में मददगार बनेगा।
इस नायाब अभियान की जानकारी जब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर डॉ. साकेत बडोला ने साझा की, तो हर वाइल्डलाइफ प्रेमी की आंखों में उत्साह की चिंगारी दिखने लगी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह एक रिसर्च प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि जनभागीदारी का नया प्रयोग है, जिसमें जंगल के भीतर घूमते हर यात्री, फोटोग्राफर और शोधकर्ता से लेकर वहाँ के स्थायी ग्रामीणों तक को आमंत्रित किया गया है कि यदि उन्होंने कभी टस्कर यानी दांत वाले नर हाथी की कोई तस्वीर खींची हो, तो उसे निश्चित विवरणों के साथ वन विभाग को भेजें। विभाग एक विस्तृत टस्कर आईडेंटिफिकेशन मैन्युअल तैयार कर रहा है, जो इन विशाल जीवों की पहचान से लेकर उनकी पूरी प्रोफाइलिंग को सुगम बना देगा। यह दस्तावेज़ न सिर्फ हाथियों की मूवमेंट श्रृंखला को उजागर करेगा, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावनाओं को भांपकर पहले से तैयारी करने में भी मददगार साबित होगा।
जब जंगल की खामोशी में एक टस्कर की पदचाप गूंजती है, तब उसकी उपस्थिति वन विभाग के लिए एक रहस्य की तरह होती है। लेकिन अब इस रहस्य से पर्दा हटाने के लिए डॉ. बडोला की टीम ने तकनीक और जनसहयोग की शक्तियों को मिलाने का संकल्प लिया है। इस मिशन को संचालित करने के लिए विशेष ईमेल आईडी tigercellctr@gmail.com तैयार की गई है, जिसे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की वेबसाइट पर भी आसानी से देखा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जो जंगल में हाथियों की तस्वीर खींचता है, वह इस ईमेल पर तस्वीर के साथ कब, कहां और कितने बजे वह क्लिक की गई, इसकी जानकारी भी साझा कर सकता है। यह साधारण दिखने वाली प्रक्रिया, वन विभाग को ऐसे अद्वितीय और विस्तृत डेटा तक पहुंच प्रदान करेगी, जिसकी कल्पना भी विभाग अकेले नहीं कर सकता था। हाथियों की आदतें, उनका आवागमन और उनकी प्रतिक्रिया को समझने के लिए यह डेटा किसी खजाने से कम नहीं होगा।
जब वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार ने इस प्रयास पर अपनी प्रतिक्रिया दी, तो उनके शब्दों में ना सिर्फ सराहना थी, बल्कि एक उम्मीद की नई चमक भी थी। उन्होंने कहा कि यह पहल न सिर्फ जंगल के प्रबंधन को नया दृष्टिकोण देगी, बल्कि फोटोग्राफरों को एक रचनात्मक सामाजिक भूमिका भी प्रदान करेगी। उनके अनुसार, जब ढिकाला क्षेत्र में किसी फोटोग्राफर ने एक टस्कर की तस्वीर ली हो और वही हाथी कुछ दिनों बाद ढेला क्षेत्र में दिखाई दे, तो यह सूचना विभाग को हाथियों के नियमित और अनियमित मूवमेंट के बारे में जानकारी दे सकती है। यह ट्रैकिंग प्रणाली न केवल डेटा इकट्ठा करने का काम करेगी, बल्कि उन हाथियों की विशेष पहचान भी बनेगी, जो भविष्य में मानव बस्तियों के नज़दीक आ सकते हैं। इससे पहले ही सचेत होकर नीतियां बनाई जा सकेंगी।
अब तक वन्यजीव संरक्षण की दिशा में जितने भी प्रयास हुए, वे अधिकतर विभागीय कार्यशैली पर आधारित थे। लेकिन ‘पब्लिक साइंस प्रोजेक्ट’ नामक यह नई पहल एक ऐसा रास्ता खोल रही है, जिसमें आमजन से लेकर विशेषज्ञ तक, सभी की भूमिका बराबरी की होगी। इस प्रोजेक्ट के तहत हाथियों के रिसोर्स यूटिलाइजेशन पैटर्न को समझने की दिशा में भी गहन अध्ययन संभव हो सकेगा। यह पता लगाया जाएगा कि किस क्षेत्र में हाथी अधिक बार जाते हैं, किस प्रकार के संसाधनों का वे उपयोग करते हैं और किन इलाकों में मानव-हाथी संघर्ष की संभावनाएं अधिक हैं। जब इन सभी सवालों का जवाब दस्तावेज़ों में दर्ज होगा, तो विभाग को ऐसी रणनीति बनाने का मौका मिलेगा जो किसी भी संघर्ष को घटाने में सहायक हो सके। कॉर्बेट के जंगलों में जहां अब तक हाथियों का मूवमेंट एक अबूझ रहस्य था, अब वहां हर कदम पर डेटा और विज्ञान की रौशनी फैलाई जाएगी।
इस अभूतपूर्व योजना की खूबसूरती इस बात में छिपी है कि यह विज्ञान को प्रयोगशालाओं से निकालकर जंगलों के भीतर, कैमरों के लेंसों और ग्रामीणों की आंखों से जोड़ती है। ‘पब्लिक साइंस प्रोजेक्ट’ केवल एक रिसर्च मिशन नहीं, बल्कि एक जनांदोलन बनने की दिशा में अग्रसर है। यह वह उदाहरण बनेगा जहां लोगों का जुड़ाव न केवल जानवरों को समझने में सहायक होगा, बल्कि उनके संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाएगा। हाथियों की पहचान अब केवल दांतों और कानों के निशानों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि हर तस्वीर, हर लोकेशन और हर टाइमस्टैम्प के माध्यम से एक जटिल और संवेदनशील पारिस्थितिकी को समझने का जरिया बनेगी। कॉर्बेट का जंगल अब खुद बोलेगा — कैमरों की जुबान में, जनता की नज़रों से।