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मालधन चौड़ में महिलाओं का फूटा ज्वालामुखी शराब नहीं इलाज चाहिए आंदोलन से कांप उठा प्रशासन

सरकार की बेरुखी के खिलाफ गांव की नारी शक्ति सड़कों पर, इलाज की मांग और शराब दुकान बंद कराने को छेड़ा जोरदार जनआंदोलन

रामनगर। शांत पहाड़ी वादियों के बीच बसे रामनगर के ग्राम मालधन चौड़ में इन दिनों ग़ुस्से और बदलाव की ऐसी आँधी चल रही है, जिसने गांव की शांत सरहदों को हिला डाला है। गोपाल नगर नंबर 6 में जब से अंग्रेज़ी शराब की दुकान ने अपने दरवाज़े खोले हैं, तब से गांव की महिलाओं में जैसे लावा फूट पड़ा है। ये महज़ एक दुकान का विरोध नहीं है, बल्कि वर्षों से उपेक्षित पड़े विकास और बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी के खिलाफ जनसैलाब का वो उफान है, जिसमें हर आवाज़ एक साथ सरकार की प्राथमिकताओं पर सीधा प्रहार कर रही है। ग्रामीणों का आक्रोश कह रहा है कि जहां जीवन रक्षक इलाज की बुनियादी सुविधा नहीं, वहां नशे की दुकानों की मौजूदगी किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। इन नाराज़गी भरे स्वर को जब गांव की महिलाओं ने मिलकर एकजुटता की चट्टान में बदला, तो मालधन चौड़ का आंदोलन राज्यभर के लिए एक प्रेरणा बन गया।

गांव की गलियों में अब सन्नाटा नहीं, बल्कि निर्णय की दृढ़ता गूंज रही है। महिला एकता मंच के नेतृत्व में जब सैकड़ों महिलाएं एकजुट होकर व्यापार मंडल कार्यालय की ओर कूच कर गईं, तो हर आंख ने देखा कि यह कोई साधारण विरोध नहीं था। मंच की तेज़तर्रार पदाधिकारी सरस्वती जोशी ने पत्रकारों से आंखों में आंखें डालकर कहा कि “हम इलाज मांगते हैं, नशा नहीं।” यह एक वाक्य नहीं, बल्कि गांव की वेदना का सार था। जब किसी गांव की महिला कहती है कि “बुखार चढ़े तो दवा नहीं, डॉक्टर नहीं, पर शराब की बोतल जरूर मिल जाती है,” तो सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खुद-ब-खुद खड़े हो जाते हैं। सरस्वती जोशी ने साफ कहा कि मुख्यमंत्री ने खुद कहा था कि नशे की नई दुकानें बंद की जाएंगी, लेकिन यहां तो विरोध के बावजूद फिर से दुकान खोल दी गई। यह इशारा किसकी ओर है? जनता अब जानना चाहती है।

इस पूरे आंदोलन में सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि 3 मई को जब ग्रामीणों ने चक्का जाम कर पूरे मालधन चौड़ को ठहराया, तब जाकर प्रशासन की नींद टूटी और एसडीएम प्रमोद कुमार गांव पहुंचे। भारी विरोध के बाद जब उन्होंने दुकान को अस्थायी रूप से बंद कराया, तो गांववालों में थोड़ी राहत की सांस दिखाई दी। लेकिन हैरानी की पराकाष्ठा तब हुई जब महज़ दो दिन बाद वही दुकान फिर से खोल दी गई, जैसे किसी ने लोगों की आवाज़ को मज़ाक समझ लिया हो। इससे गांव में आक्रोश की आग फिर भड़क उठी और अब तो महिलाएं खुलकर कह रही हैं कि अबकी बार बात धरने-प्रदर्शन से आगे जाएगी। 9 मई को एसडीएम कार्यालय, रामनगर में जबर्दस्त प्रदर्शन की योजना तैयार हो चुकी है, और यदि उनकी मांगों को दरकिनार किया गया, तो 13 मई को फिर एक बार मालधन चौड़ में चक्का जाम कर दिया जाएगा।

मालधन चौड़ की ये आवाज़ उस भारत की तस्वीर को सामने लाती है, जहां अब गांववाले सिर्फ सड़क, बिजली और पानी की नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन की भी मांग कर रहे हैं। महिला एकता मंच ने इस बार साफ कर दिया है कि उनका विरोध किसी राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित नहीं, बल्कि गांव के बच्चों, बुज़ुर्गों और बीमारों के भविष्य की खातिर है। वे कहती हैं, “जब तक ये शराब की दुकान बंद नहीं होती, हम नहीं रुकेंगे।” और अब उनका यह प्रण महज़ गांव तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे ज़िले और राज्य की प्रशासनिक मशीनरी तक जा पहुंचा है। आंदोलनकारी महिलाएं कह चुकी हैं कि अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो वे जिलाधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक जाएंगी और तब तक चौन से नहीं बैठेंगी, जब तक न्याय नहीं मिल जाता।

जिस इलाके में आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों की तैनाती नहीं, आवश्यक उपकरणों की भारी कमी है, वहां सरकार द्वारा शराब की दुकान को प्राथमिकता देना हर उस व्यक्ति के ज़हन में सवाल खड़े कर रहा है जो यह मानता था कि विकास का मतलब जनसेवा है, न कि नशे का प्रसार। मालधन चौड़ के ग्रामीणों ने यह साबित कर दिया है कि यदि शासन और प्रशासन जनभावनाओं के विरुद्ध जाकर निर्णय लेंगे, तो जनता अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने से भी नहीं हिचकेगी। अब यह आंदोलन एक चेतावनी है कृ या तो सरकार जनमत को समझे और शराब की दुकान को बंद करे, या फिर उसे उस जनक्रांति के लिए तैयार रहना होगा जो अब गांव की सीमाएं लांघकर पूरे प्रदेश में गूंजने को तैयार है।

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