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आस्था के दरबार में विज्ञापन की घुसपैठ पुलिस बनी सरिया और होटल की आवाज़

गंगा की गोद में भक्तों की श्रद्धा के बीच चमकते ब्रांड्स अब बाजार की तरह बेच रहे हैं धर्म और पवित्रता की पहचान

हरिद्वार। हरिद्वार की पावन धरा पर जहां गंगा की कलकल करती धारा आत्मा को शांति और मोक्ष की अनुभूति कराती है, वहीं अब उसी धरती पर आस्था नहीं, बल्कि बाजार की चुभती हुई चमक नज़र आने लगी है। बस अड्डे से लेकर रेलवे स्टेशन और फिर वहाँ से हर की पौड़ी तक के मार्ग में जहां हर कदम पर भक्तजन गंगा मैया का स्मरण करते हैं, वहीं अब उनके सामने दिखते हैं—क्रिस्टल वर्ल्ड, राणा सरिया, अपोलो सरिया, और होटल राज मन्दिर जैसे नाम जो पहले कभी शोरूम या होर्डिंग्स पर ही सीमित थे। यह सबकुछ अब उत्तराखंड पुलिस की बैरिकेडिंग पर चिपका दिखाई देता है, जिससे यह सवाल उभरता है कि क्या पुलिस अब जनता की सुरक्षा छोड़कर ब्रांड प्रमोट करने का कार्यभार संभाल चुकी है? इस दृश्य ने श्रद्धालुओं के विश्वास और धार्मिक भावना पर ऐसी चोट की है जिसकी टीस केवल मन में नहीं, बल्कि रूह तक महसूस होती है।

कभी वह स्थान जहाँ ‘श्री गंगे नमः’ और ‘गंगा मैया की जय’ की गूंज सुनाई देती थी, वहाँ आज व्यापारिक उत्पादों का कोलाहल अधिक मुखर हो गया है। पुलिस द्वारा प्रयुक्त बैरिकेड्स, जो मूलतः सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए होते हैं, वे अब प्राइवेट कंपनियों के प्रचार का माध्यम बन चुके हैं। श्रद्धालु जब गंगा स्नान करने आते हैं तो उन्हें अब गंगा जल की ठंडक से ज्यादा सरिया और होटलों के विज्ञापन की गर्मी महसूस होती है। उत्तराखंड पुलिस का यह रवैया जैसे ये दर्शा रहा हो कि अब धर्मस्थल पुलिस के नहीं, बल्कि प्रायोजकों के अधीन हो चुके हैं। यह तस्वीर न केवल अखरने वाली है, बल्कि यह यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि क्या बाज़ार अब भगवान से भी बड़ा हो गया है?

सूत्रों की मानें तो ये बैरिकेड्स निजी कंपनियों द्वारा मुफ़्त में दिए गए हैं, लेकिन बदले में पुलिस ने उन्हें यह सुविधा दे दी कि वे अपने विज्ञापन उन पर चस्पा कर सकते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या कोई भी कंपनी इस तरह से किसी धर्मस्थल को विज्ञापन स्थल में तब्दील कर सकती है? और यदि हाँ, तो क्या राज्य पुलिस को यह अधिकार है कि वह गंगा की पवित्र धारा के तट पर व्यवसायिक ब्रांड्स को बढ़ावा देने की अनुमति दे? यह स्थिति केवल एक मामूली सी ‘प्रायोजक व्यवस्था’ नहीं है, यह तो सीधा धार्मिक स्थल की आत्मा पर हमला है, एक ऐसा हमला जो ना केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत को, बल्कि हमारी धार्मिक स्वतंत्रता को भी दूषित करता है।

धर्म की बुनियाद पर खड़ा हर की पौड़ी अब जैसे बाजार के तल पर गिरता जा रहा है। जिन पवित्र घाटों पर कभी संतों की साधना गूंजती थी, वहाँ अब होटल राज मन्दिर के नाम चमकते हैं। श्रद्धालु जिन बैरिकेड्स के सहारे चलते हैं, वे अब अपोलो सरिया और राणा सरिया का संदेश लेकर उनके सामने खड़े हैं। इस सबसे गंभीर बात यह है कि यह सबकुछ पुलिस की अनुमति से हो रहा है। पुलिस जो जनता की सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है, वह अब किसी वाटरपार्क या होटल की ऐडवर्टाइजिंग करती दिखती है। यह धार्मिक गरिमा का अपमान नहीं तो और क्या है?

जनता अब आक्रोश में है। माँ गंगा की पवित्र गोद में इस प्रकार बाज़ार का दखल वह सहन नहीं कर सकती। लोग यह पूछ रहे हैं कि आखिर हर की पौड़ी को बाजार क्यों बना दिया गया है? वहाँ जहाँ गंगाजल से आत्मा का शुद्धिकरण होता है, वहाँ अब सरिया और होटल का विज्ञापन क्यों दिख रहा है? लोगों की मांग है कि इन सभी विज्ञापनों को तुरंत हटाया जाए और इनके स्थान पर धार्मिक व स्वच्छता संबंधित संदेश लगाए जाएं। “गंगा मैया की जय”, “हर हर गंगे” जैसे उद्घोष ही इन स्थानों की पहचान हैं, न कि वाटरपार्क्स और होटलों के पोस्टर।

अब आवश्यकता है एक सख़्त और संवेदनशील निर्णय की। प्रशासन और नगर निगम को चाहिए कि वे तुरंत दिशा-निर्देश जारी करें जिससे ना सिर्फ़ हर की पौड़ी, बल्कि अन्य सभी पवित्र स्थलों की गरिमा को सुरक्षित रखा जा सके। पुलिस अगर बैरिकेडिंग उपयोग में लाना चाहती है, तो उसे बिना किसी प्रायोजक के, केवल धार्मिक भावनाओं और सुरक्षा संदेशों के साथ सजाना चाहिए। यह वही गंगा है जिसे हमने माँ कहा है, इसकी पवित्रता हमारे व्यापार से कहीं ऊपर है। इस भूमि की आत्मा को विज्ञापन की चकाचौंध से नहीं, श्रद्धा की रोशनी से प्रकाशित करना होगा।

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