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कुमाऊं परिक्षेत्र में प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन का सघन निरीक्षण दौरा, वन्यजीव संरक्षण को मिली नई दिशा

रामनगर। उत्तराखंड में वन एवं वन्यजीव संरक्षण को लेकर सरकार और प्रशासन का रवैया अब और अधिक सख्त और सक्रिय होता नजर आ रहा है। इसी क्रम में सोमवार को प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक (वन्य जीव एवं संरक्षित क्षेत्र) धनंजय मोहन ने कुमाऊं परिक्षेत्र का एक दिवसीय निरीक्षण दौरा किया, जिसने पूरे क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी। इस अवसर पर उनके साथ मुख्य वन संरक्षक, कुमाऊं धीरज पांडे, प्रभागीय वन अधिकारी, रामनगर दिगंत नायक, एसडीओ अंकित बडोला, वन क्षेत्राधिकारी देचौरी ललित जोशी, वन क्षेत्राधिकारी कोटा रमेश चंद्र ध्यानी, और कोटा एवं देचौरी रेंज के अन्य वनकर्मी भी उपस्थित रहे। यह निरीक्षण सिर्फ एक औपचारिकता नहीं था, बल्कि इसमें वन्यजीव संरक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष निवारण, वनाग्नि प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था की गहन समीक्षा की गई।

निरीक्षण का शुभारंभ प्रातः 6 बजे सीताबनी क्षेत्र से हुआ, जहाँ से एक सघन 11 किलोमीटर लंबी पैदल गश्त की गई। यह ट्रेक अपने आप में चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि यह मार्ग दुर्गम पहाड़ियों, गहराई से भरे जंगलों और जैवविविधता से समृद्ध क्षेत्रों से होकर गुजरता है। पैदल गश्त का उद्देश्य न केवल इलाके की सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन करना था, बल्कि यह भी देखना था कि जमीनी स्तर पर वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा को लेकर क्या काम हो रहा है और किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। इस गश्त ने क्षेत्रीय कर्मचारियों की कार्यक्षमता, तत्परता और प्रतिबद्धता को भी परखा।

इस दौरान खिवड़ी नदी के समीप वनकर्मियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में श्री मोहन ने जमीनी अनुभवों के आधार पर कर्मचारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए और क्षेत्रीय चुनौतियों के समाधान के लिए रणनीति साझा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि जंगलों की सुरक्षा केवल औपचारिकता नहीं बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है, और इसमें छोटी से छोटी चूक भी विनाशकारी हो सकती है। उन्होंने वनकर्मियों को टीम भावना से कार्य करने, जंगलों की निगरानी बढ़ाने और स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय बनाने की सलाह दी।

विशेष रूप से बर्ड वॉचिंग (पक्षी अवलोकन) को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने क्षेत्रीय स्टाफ को प्रशिक्षण भी प्रदान किया। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य केवल पक्षियों की पहचान करना नहीं, बल्कि इसके माध्यम से वन्यजीवों की उपस्थिति और गतिविधियों पर निगरानी बनाए रखना है। श्री मोहन का मानना है कि बर्ड वॉचिंग न केवल जैव विविधता को समझने में सहायक है, बल्कि यह पर्यटन की संभावनाओं को भी बल देती है। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि तो होगी ही, साथ ही क्षेत्र के प्रति उनकी संवेदनशीलता भी बढ़ेगी।

इसके पश्चात कोसी, कोटा और देचौरी रेंज के भीतर आने वाले प्रमुख वन क्षेत्रों के रास्तों की सुरक्षा स्थिति का निरीक्षण किया गया। इन क्षेत्रों को उन्होंने वन और वन्यजीवों के संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण करार दिया। उन्होंने इन ट्रेक्स की भौगोलिक स्थिति, संवेदनशीलता और वन्यजीव गतिविधियों का विस्तृत आंकलन किया और साथ ही इन मार्गों पर भविष्य में निगरानी बढ़ाने की बात कही। वन क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर नजर रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हर वनकर्मी को जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी निभानी होगी।

निरीक्षण कार्यक्रम के अंत में नगर वन क्षेत्र का दौरा किया गया, जहाँ उन्होंने संबंधित स्टाफ से मुलाकात की और क्षेत्रीय परिस्थितियों की जानकारी ली। निरीक्षण के दौरान उन्होंने मौके पर ही कई निर्देश जारी किए, जिसमें गश्त की आवृत्ति बढ़ाने, सीमावर्ती क्षेत्रों की निगरानी तेज करने, तथा स्थानीय निवासियों को जागरूक करने के निर्देश शामिल थे। श्री मोहन ने इस बात पर भी जोर दिया कि वन कर्मियों को आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए कार्य करना चाहिए जिससे कि कार्यक्षमता बढ़े और परिणाम भी प्रभावी हों।

प्रमुख वन संरक्षक (वन्य जीव एवं संरक्षित क्षेत्र) धनंजय मोहन ने कुमाऊं परिक्षेत्र के निरीक्षण के दौरान मीडिया से बातचीत में कहा कि यह दौरा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत को समझने और क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए किया गया एक ठोस प्रयास है। उन्होंने बताया कि वन्यजीव संरक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने, वनाग्नि नियंत्रण और सुरक्षा उपायों को सशक्त करने के लिए फील्ड में आकर स्वयं स्थिति का आंकलन करना बेहद आवश्यक है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की जैवविविधता अपार है और इसे संरक्षित रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। क्षेत्रीय वनकर्मियों को उन्होंने पर्यावरणीय शिक्षा, बर्ड वॉचिंग और आधुनिक तकनीकों के प्रयोग को लेकर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गश्त, निगरानी और स्थानीय समुदाय के सहयोग से ही वन्यजीवों और जंगलों की रक्षा की जा सकती है। मोहन ने कहा कि कुमाऊं क्षेत्र के संरक्षण के लिए हर आवश्यक कदम तेजी से उठाए जाएंगे।

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