काशीपुर। सोमवार का दिन एक भावनात्मक माहौल लेकर आया, जब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एक विशेष यात्रा के अंतर्गत यहां कदम रखा। यह दौरा सामान्य नहीं था, बल्कि यह यात्रा एक ऐसे व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने के लिए थी, जिनका नाम उत्तराखंड की राजनीति में सादगी, समर्पण और सेवा भाव का प्रतीक बन चुका है कृ स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोड़ी। गहतोड़ी जी के आवास पर पहुंचकर भगत सिंह कोश्यारी ने उनके परिजनों से भेंट की और 23 अप्रैल को मनाई जाने वाली प्रथम पुण्यतिथि से पूर्व उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। यह क्षण केवल एक राजनीतिक नेता की याद नहीं थी, बल्कि एक ऐसे जनसेवक की स्मृति में नमन था, जिन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस तक प्रदेश और समाज की सेवा की। उनके आवास पर सादगीपूर्ण माहौल में हुए इस मुलाकात में भावनाओं की गहराई साफ झलक रही थी, और उपस्थित हर व्यक्ति की आंखें उनके किए गए कार्यों की स्मृतियों से नम थीं।
बीते वर्ष एक लंबी बीमारी के चलते स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोड़ी का दुखद निधन हो गया था, और तब से लेकर अब तक उत्तराखंड की राजनीति में एक रिक्तता महसूस की जा रही है जिसे भरना असंभव प्रतीत होता है। वे न केवल उत्तराखंड सरकार में उत्तराखंड वन विकास निगम में कैबिनेट मंत्री स्तर की जिम्मेदारी निभा रहे थे, बल्कि जनता के बीच अपनी सरलता और सहजता के लिए पहचाने जाते थे। उनकी मृत्यु एक ऐसी क्षति बन गई जो सिर्फ उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि समस्त उत्तराखंडवासियों के लिए अत्यंत पीड़ादायक रही। आने वाली 23 अप्रैल को जब उनकी प्रथम पुण्यतिथि मनाई जाएगी, तब एक बार फिर लोग इस महान व्यक्तित्व को याद करते हुए भावुक हो उठेंगे। उस अवसर पर स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी काशीपुर आएंगे और गहतोड़ी जी को ससम्मान श्रद्धांजलि देंगे, जिससे यह अवसर और भी गरिमामय बन जाएगा।
भगत सिंह कोश्यारी ने मीडिया से बातचीत के दौरान स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोड़ी के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए उन्हें एक असाधारण नेता बताया। उन्होंने कहा कि गहतोड़ी जी राजनीति में उन विरले लोगों में से थे, जिनकी प्राथमिकता सत्तालोलुपता नहीं, बल्कि सेवा और त्याग थी। उन्होंने याद दिलाया कि जब वर्ष 2022 में विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पराजय का सामना करना पड़ा, तब उसी समय गहतोड़ी जी ने स्वयं आगे आकर अपनी सुरक्षित विधानसभा सीट मुख्यमंत्री के लिए खाली कर दी। यह निर्णय केवल राजनीतिक समझदारी नहीं, बल्कि एक असली जनसेवक का बड़प्पन था। यह त्याग आज भी भारतीय राजनीति में एक उदाहरण के रूप में देखा जाता है। उनकी सोच, उनका स्वभाव और उनका समर्पण आज के नेताओं को एक प्रेरणा के रूप में मार्ग दिखाता है।
उत्तराखंड की राजनीति में कई चेहरे आए और गए, लेकिन स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोड़ी उन चुनिंदा नेताओं में शामिल रहे जिन्होंने राजनीति को जनसेवा से जोड़ कर देखा। उनके निधन के बाद जिस प्रकार प्रदेश भर में शोक की लहर दौड़ी, उससे यह स्पष्ट हो गया कि वे केवल एक क्षेत्रीय नेता नहीं, बल्कि एक जननायक थे। समाज के हर वर्ग के साथ उनका जुड़ाव ऐसा था कि वे हर किसी की समस्याओं को अपनी समस्या मानते थे। उन्होंने कभी पद या प्रतिष्ठा के पीछे दौड़ नहीं लगाई, बल्कि सदैव वह पथ चुना जो जनहित में हो। यही कारण है कि उनकी पहली पुण्यतिथि को लेकर काशीपुर और पूरे उत्तराखंड में एक विशेष श्रद्धा भाव देखा जा रहा है। उनके आवास पर आने वाले प्रत्येक अतिथि का हृदय उनके प्रति आदर और श्रद्धा से भरा हुआ है, और यही भाव उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।
आने वाले मंगलवार को जब पुष्कर सिंह धामी उनके आवास पर पहुंचेंगे, तो यह केवल एक श्रद्धांजलि नहीं होगी, बल्कि एक संदेश भी होगा कि त्याग, सेवा और जनसमर्पण की राजनीति आज भी जीवित है और स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोड़ी इसका अमर प्रतीक बन चुके हैं। उत्तराखंड को ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो सत्ता के पीछे नहीं, सेवा के मार्ग पर चलें और आमजन के हित को सर्वाेपरि रखें। गहतोड़ी जी के आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रकाशस्तंभ की भांति मार्गदर्शन करेंगे। उनके योगदान को न केवल भावनाओं से बल्कि कार्यों के माध्यम से भी सम्मानित करना उत्तराखंड की राजनीति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है, और यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उस पुरुषार्थी नेता को, जिसे इस भूमि ने जन्म दिया और जिसने इस भूमि को अपनी संपूर्ण शक्ति समर्पित कर दी।