काशीपुर। चौहान सभा समिति को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता दिखाई दे रहा है। आगामी 20 अप्रैल को प्रस्तावित द्विवर्षीय कार्यकारिणी के चुनाव को लेकर अब मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। चौहान समाज की प्रतिष्ठित संस्था के भीतर आंतरिक असहमति और नियमों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए चौहान सभा समिति के संस्थापक वीरेंद्र कुमार चौहान ने प्रेस वार्ता करते हुये विधायक आदेश चौहान पर गंभरी आरोप लगाये। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि समिति के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए जबरदस्ती चुनाव अधिकारी नियुक्त कर दिए गए, जबकि अभी तक आम सभा की कोई अंतरीक बैठक तक नहीं बुलाई गई थी।
वीरेंद्र कुमार चौहान, जो चौहान सभा के संस्थापक सदस्यों में से एक माने जाते हैं और तीन दशकों से संस्था के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत हैं, ने यह आरोप भी लगाया कि कुछ व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए संस्था के मूल सिद्धांतों और उसके बायलॉज को ताक पर रखकर यह कदम उठाया गया है। उनका कहना है कि संस्था की गरिमा और मर्यादा को ठेस पहुंचाने वाले इन कृत्यों के खिलाफ सख्त विरोध दर्ज कराया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि चुनाव पूरी पारदर्शिता के साथ हों।
इस पूरे घटनाक्रम पर समिति के वर्तमान कार्यकारिणी सदस्य एडवोकेट अमित चौहान ने भी अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि चौहान सभा समिति के नियमों के अनुसार, कार्यकारिणी का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही आम सभा की बैठक बुलाकर नए चुनाव की प्रक्रिया आरंभ की जानी चाहिए थी। परंतु इस बार सारे नियमों को दरकिनार कर मनमाने ढंग से नई कार्यकारिणी के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जिसे किसी भी स्तर पर उचित नहीं ठहराया जा सकता।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रकार की गैरकानूनी कार्यवाही संस्था की साख को गहरा आघात पहुंचा रही है। अमित चौहान का यह भी कहना है कि संस्था के बायलॉज न केवल एक मार्गदर्शक दस्तावेज हैं, बल्कि संस्था की आत्मा हैं, जिनकी अनदेखी संस्था को भीतर से खोखला कर सकती है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह प्रक्रिया नहीं रोकी गई और नियमों का पालन नहीं किया गया, तो वे कानूनी रास्ता अपनाने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
जब इस प्रकरण पर चौहान सभा समिति के अध्यक्ष राम कुँवर सिंह ने खुद को चुनाव प्रभारी के नियुक्ती को लेकर पूरी तरह अनभिज्ञ बताया। उनका कहना था कि न तो उनके द्वारा किसी नई कार्यकारिणी के गठन की अनुमति दी गई है और न ही उन्हें इस संबंध में कोई सूचना दी गई है। अध्यक्ष का यह बयान यह दर्शाता है कि संस्था के भीतर संवादहीनता और आपसी समन्वय की भारी कमी है, जो भविष्य में और अधिक टकराव का कारण बन सकती है। अगर संस्था के मुखिया को ही ऐसे गंभीर फैसलों की जानकारी नहीं है, तो यह न केवल संगठनात्मक ढांचे की विफलता है बल्कि पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। संस्था के अध्यक्ष का यह रवैया यह भी संकेत करता है कि या तो उनके अधिकारों को दरकिनार किया जा रहा है या फिर अंदरूनी स्तर पर कोई और ही शक्ति केंद्र बन चुका है, जो संस्था के फैसले ले रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने चौहान सभा समिति के भीतर गुटबाजी और सत्ता संघर्ष को एक बार फिर उजागर कर दिया है। जहां एक ओर पुराने और समर्पित सदस्यों को दरकिनार कर निर्णय लिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए संस्था को निजी हितों का मंच बनाया जा रहा है। काशीपुर जैसी सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से समृद्ध भूमि पर चौहान सभा समिति की यह स्थिति न केवल चिंताजनक है बल्कि समाज के लिए भी एक नकारात्मक संदेश है। अगर जल्द ही इस विवाद को सुलझाकर पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया को अपनाया नहीं गया, तो यह संस्था अपने मूल उद्देश्य से भटक कर आपसी विवादों की भेंट चढ़ सकती है। अब देखना यह होगा कि क्या संस्था के वरिष्ठ सदस्य और वर्तमान पदाधिकारी आपसी मतभेदों को सुलझाकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हैं या फिर यह विवाद आगे और गहराता है।