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स्मार्ट मीटरों का विरोध, रणजीत रावत और बीजेपी के बीच सियासी घमासान में उलझा रामनगर

रणजीत रावत और बीजेपी के बीच मीटर को लेकर गहरी सियासी खींचतान, रामनगर में विरोध की नई राजनीति और जनता की उलझन बढ़ी!

रामनगर। नगर कि फिज़ा में इन दिनों बिजली की गरमी से ज्यादा सियासी गर्मी घुली हुई है। आम जनता जहां अपने घर के बिजली बिल की रीडिंग देखने में उलझी है, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत ने स्मार्ट मीटरों को लेकर ऐसा बवाल खड़ा कर दिया है, जिसकी गूंज अब सीधे सत्ता के गलियारों में सुनाई दे रही है। दरअसल बीते गुरुवार को रणजीत रावत का गुस्सा इस कदर भड़का कि उन्होंने स्मार्ट मीटरों को न केवल अविश्वसनीय बताया, बल्कि मौके पर ही उन्हें तोड़ने का फैसला कर डाला। उनका साफ आरोप था कि ये कोई तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि ‘स्मार्ट लूट योजना’ है, जिसे डबल इंजन की सरकार ने जनता की जेब ढीली करने के लिए शुरू किया है। उनके मुताबिक ये मीटर बिजली नहीं, जनता का सब्र खा रहे हैं कृ और वो भी बिन पूछे, बिन रुके।

इस विरोध प्रदर्शन का असर उतना ही तेज़ रहा जितना खुद रणजीत रावत का गुस्सा। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। विरोध की इस चिंगारी ने राजनीतिक गलियारों में ऐसी आग लगाई कि अब बीजेपी भी मैदान में उतर आई है, लेकिन एक अलग ही मोर्चा लेकर। भाजपा नेताओं का कहना है कि लोकतंत्र में विरोध करने का हक सबको है, लेकिन मीटर तोड़ना कोई राजनीतिक बहादुरी नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादा का अपमान है। उन्होंने इस हरकत को गैर-जिम्मेदाराना करार देते हुए ऐलान किया कि अब वो रणजीत रावत के विरोध के विरोध में आंदोलन करेंगे। यानी अब रामनगर में विरोध का स्तर एक लेयर और ऊपर चला गया है कृ पहले मीटर का विरोध, फिर विरोध का विरोध, और अब शायद विरोध के समर्थन की निंदा भी आने वाली है।

इस सियासी घमासान के बीच जनता सबसे ज्यादा कन्फ्यूज़ है। वो समझ ही नहीं पा रही कि असल मुद्दा बिजली का बिल है या नेताओं के बयानों का बिल। रणजीत रावत स्मार्ट मीटरों को डाकू करार दे रहे हैं, तो बीजेपी उन्हें संविधान का दुश्मन बता रही है। दोनों पक्षों की बयानबाज़ी इतनी तेज़ हो गई है कि अब जनता को ये तय करने में मुश्किल हो रही है कि मीटर से ज्यादा नुकसानदेह बिजली है या नेता। सोशल मीडिया पर लोगों ने मीम्स की झड़ी लगा दी है, जिनमें रामनगर को ‘स्मार्ट मीटरों का कुरुक्षेत्र’ बताया जा रहा है, जहां विरोध के रण में नेता तलवार की जगह माइक और टेलीविज़न कैमरा लेकर उतर रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में ये मुद्दा और भी गर्मा सकता है, क्योंकि कांग्रेस इसे आम लोगों से जोड़कर एक बड़ा अभियान बनाने की तैयारी में है। वहीं बीजेपी इस पूरे मामले को कानून-व्यवस्था की नजर से देख रही है और रणजीत रावत के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर बिजली विभाग के बाहर प्रदर्शन की योजना बना चुकी है। अब इस विरोध के विरोध में कितने लोग जुटते हैं, ये तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल रामनगर की राजनीतिक बिजली सप्लाई 440 वोल्ट पर दौड़ रही है। दिलचस्प बात ये है कि जनता मीटरों से ज्यादा नेताओं के भाषणों की रीडिंग लेने लगी है कृ कौन कितनी बार विरोध कर रहा है, कौन किसके बयान का जवाब दे रहा है और कौन चुप रहकर सबसे तेज़ चल रहा है।

कुछ लोगों ने व्यंग्य करते हुए यहां तक कह दिया है कि आने वाले समय में एक नया स्लोगन गढ़ा जा सकता है कृ ष्जो चुप है, वही सबसे बड़ा विरोधी है।ष् यानी अब केवल बोलना या तोड़ना ही विरोध नहीं, चुप रहना भी आंदोलन का हिस्सा बन चुका है। स्थिति यह है कि रामनगर का हर नागरिक, चाहे वो बिजली उपभोक्ता हो या सियासत का दर्शक, खुद को इस ड्रामे का हिस्सा मानने लगा है। लोग कह रहे हैं कि बिल चाहे जितना बढ़े, लेकिन नेताओं की बयानबाज़ी अब मनोरंजन चौनलों को भी मात देने लगी है। ऐसे में रामनगर वालों से एक ही गुज़ारिश की जा सकती है कृ मीटर के ज़रिए घर की खपत को देखना ज़रूरी है, लेकिन इन विरोधों का वोल्टेज कौन मापेगा, इसका जवाब भी जल्द ढूंढना होगा।

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