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धर्मनगरी में लिव इन रिलेशनशिप का बढ़ता चलन तीर्थ-पुरोहितों और नेताओं में मचा हड़कंप

यूसीसी लागू होने के बाद हरिद्वार में 9 लिव इन रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन ने मचाई हलचल, धार्मिक छवि पर सवाल, संत समाज में गहरी चिंता

हरिद्वार। धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं की धरोहर मानी जाने वाली हरिद्वार नगरी इन दिनों एक ऐसे विषय को लेकर चर्चा में है, जिसे सुनकर पहली बार में शायद किसी को यकीन न हो। लेकिन सच्चाई यही है कि इस तीर्थनगरी में अब आधुनिक रिश्तों की झलक भी दिखाई देने लगी है। उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के अंतर्गत जहां पूरे प्रदेश में हजारों लोग शादी, तलाक और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों के रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं, वहीं हरिद्वार जैसे धार्मिक जिले से अब लिव इन रिलेशनशिप के आवेदन सामने आना कई सवाल खड़े कर रहा है। यूसीसी पोर्टल के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि अब हरिद्वार में भी आधुनिक सहजीवन की परंपरा अपनी जगह बना रही है। 5176 लोगों ने जहां विवाह के लिए रजिस्ट्रेशन किया, वहीं 9 जोड़ों ने बिना विवाह के साथ रहने के लिए आवेदन किया है, जिससे तीर्थ-पुरोहितों और संत समाज में चिंता की लहर दौड़ गई है।

गंगा की पावन धारा से जुड़े हरिद्वार की पहचान अब बदलती नजर आ रही है। उत्तराखंड सरकार द्वारा शुरू किए गए यूसीसी पोर्टल के जरिए पूरे प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामलों को लेकर आवेदन कर रहे हैं, जो कि जागरूकता का संकेत है। लेकिन जब हरिद्वार जैसे धार्मिक नगर से लिव इन रिलेशनशिप के 9 आवेदन सामने आते हैं, तो यह एक नई सामाजिक बहस को जन्म देता है। आंकड़ों की बात करें तो जहां तलाक के सिर्फ एक मामले का रजिस्ट्रेशन हुआ है और 75 उत्तराधिकारियों के लिए आवेदन हुए हैं, वहीं लिव इन रिलेशनशिप के आंकड़े तीर्थनगरी की पारंपरिक छवि पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। जिलाधिकारी डॉक्टर कर्मेंद्र सिंह का कहना है कि लगातार समीक्षा की जा रही है और यह भी प्रयास किया जा रहा है कि प्रदेश के हर कोने में यूसीसी की जानकारी पहुंचे, ताकि लोग इस पोर्टल का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकें।

राज्य सरकार के प्रयासों की बदौलत अब तक पूरे उत्तराखंड में 94 हजार से अधिक आवेदन यूसीसी पोर्टल पर किए जा चुके हैं, जिसमें 73,093 विवाह पंजीकरण से संबंधित हैं और 19,956 लोग अपने पुराने विवाह की जानकारी अपडेट करने के लिए आवेदन कर चुके हैं। 430 लोगों ने उत्तराधिकारी के तौर पर वसीयतनामा पंजीकृत करवाया है, जबकि 136 तलाक के आवेदन हुए हैं। लेकिन खास बात ये है कि प्रदेशभर में लिव इन रिलेशनशिप के लिए अब तक 46 आवेदन हुए हैं, जिनमें से कुछ को अस्वीकृत भी किया गया है। गृह सचिव शैलेश बगोली का कहना है कि शासन स्तर से इस पूरे अभियान पर निगरानी रखी जा रही है और हर पंचायत व हर वर्ग के व्यक्ति को इस व्यवस्था से जोड़ा जा रहा है, ताकि यूसीसी का प्रभाव हर नागरिक तक पहुंचे। लेकिन धार्मिक भावनाओं की दृष्टि से हरिद्वार में इस तरह की प्रवृत्तियों का सामने आना अब विचारणीय विषय बनता जा रहा है।

हरिद्वार में लिव इन रिलेशनशिप के बढ़ते मामलों ने जहां शासन-प्रशासन को आंकड़ों के आधार पर अपनी उपलब्धि गिनवाने का अवसर दिया है, वहीं तीर्थ-पुरोहितों के मन में बेचौनी भी पैदा कर दी है। उज्ज्वल पंडित जैसे प्रतिष्ठित तीर्थ पुरोहित का कहना है कि जब धर्मनगरी में ऐसे रिश्ते पनपने लगें, तो यह समाज को गलत संदेश देता है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर कौन लोग हैं जो इस धार्मिक आस्था की भूमि में विवाह के बिना साथ रहने का निर्णय ले रहे हैं? गंगा के तट पर बसी इस नगरी को लेकर अब यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं इसका धार्मिक स्वरूप बदल न जाए। तीर्थनगरी की सीमाएं भले ही उत्तर प्रदेश से लगती हों, लेकिन इसकी आत्मा तो गंगा और संस्कारों में ही रची-बसी है। इसलिए लिव इन के रुझान को लेकर तीर्थ-पुरोहित समाज की चिंता स्वाभाविक है।

राजनीतिक हलकों में भी इस मुद्दे ने गर्मी बढ़ा दी है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और हरिद्वार की पूर्व मेयर अनीता शर्मा ने सरकार से इस पर पुनर्विचार करने की अपील की है। उनका मानना है कि यदि अभी से इस पर रोक नहीं लगाई गई तो भविष्य में लिव इन रिलेशनशिप का चलन और भी तेजी से बढ़ेगा। अनीता शर्मा का कहना है कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से हरिद्वार के लिए यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे न केवल सामाजिक ताना-बाना प्रभावित होगा बल्कि धर्मनगरी की पहचान को भी धक्का लगेगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि राज्य सरकार को यह तय करना चाहिए कि हरिद्वार जैसे स्थानों की सांस्कृतिक गरिमा को ध्यान में रखते हुए इस तरह के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाए। धर्म और आधुनिकता के इस टकराव में फिलहाल इतना जरूर तय है कि हरिद्वार में लिव इन रिलेशनशिप का यह विषय न केवल धार्मिक जगत बल्कि राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर भी चर्चा का केंद्र बन गया है।

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