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उत्तराखंड में नकल विरोधी कानून के बावजूद समीक्षा अधिकारी परीक्षा रद्द, सरकार पर उठे सवाल

भर्ती परीक्षाओं में लापरवाही से गुस्से में युवा, रिजल्ट रद्द होने से टूटी उम्मीदें, सरकार की नीतियों पर उठे सवाल, पारदर्शिता की मांग जोर पकड़ रही।

देहरादून। उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं को लेकर एक बार फिर असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। हाल ही में घोषित समीक्षा अधिकारी (RO) परीक्षा का परिणाम सरकार ने अचानक निरस्त कर दिया, जिससे सैकड़ों उम्मीदवारों के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल छा गए हैं। इस फैसले से अभ्यर्थियों में गहरा आक्रोश है, वहीं विपक्ष ने भी इसे लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है।

उत्तराखंड सरकार ने भले ही राज्य में नकल विरोधी कानून लागू कर रखा हो, लेकिन जब बिना किसी स्पष्ट कारण के घोषित परीक्षा परिणाम को रद्द कर दिया जाता है, तो यह कानून खुद सवालों के घेरे में आ जाता है। राज्य सरकार की छवि लगातार धूमिल होती जा रही है और यह संदेश जा रहा है कि या तो प्रशासन में गंभीर त्रुटियां हैं या फिर भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी है। अभ्यर्थियों के अनुसार, जब परीक्षा और मूल्यांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद रिजल्ट जारी कर दिया गया था, तो फिर इसे रद्द करने की नौबत क्यों आई?

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि राज्य में कड़ा नकल विरोधी कानून लागू है और इसी कारण गलतियों को सुधारा जा रहा है। लेकिन विपक्ष का सवाल है कि जब इतनी सख्ती है, तो फिर रिजल्ट जारी करने के बाद ऐसी गलती क्यों हुई? और अगर गलती हुई है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है?

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. उपाध्याय ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि परीक्षा परिणाम जारी होने के बाद उसे निरस्त कर देना हजारों युवाओं के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि किन अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? जब छात्रों को नकल के लिए दंडित किया जा सकता है, तो लापरवाह अधिकारियों के लिए भी सख्त कानून होना चाहिए।

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यह सिर्फ एक परीक्षा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सरकार की अक्षमता को दर्शाता है। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) की प्रतिष्ठित पीसीएस (PCS) परीक्षा का भी उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि 2016 से 2021 तक की परीक्षाएं वर्षों तक लंबित रही थीं। सरकार ने छह वर्षों के बाद बड़ी मुश्किल से परीक्षा कराई, लेकिन उसका परिणाम अभी तक घोषित नहीं किया गया है।उन्होने कहा कि डॉ. उपाध्याय ने कहा कि उत्तराखंड की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा पीसीएस (PCS) की बात करें, तो 2021 में हुई परीक्षा का परिणाम आज तक नहीं आया है। अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार को इस परीक्षा का परिणाम जारी करने में भी 18 से 24 महीने तक का समय लग सकता है। इससे राज्य के हजारों प्रतियोगी छात्र जो वर्षों से तैयारी कर रहे हैं, उनके भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है।

डॉ. उपाध्याय ने कहा कि प्रदेश में हालात यह हैं कि लोक सेवा आयोग के कई पद खाली पड़े हैं, जिससे नई भर्तियों की प्रक्रिया बाधित हो रही है। बावजूद इसके, सरकार परीक्षा प्रणाली को सुधारने के बजाय सिर्फ घोषणाएं करने में व्यस्त है। अभ्यर्थी बार-बार परीक्षा कैलेंडर जारी करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार केवल अपने कामकाज की पीठ थपथपाने में व्यस्त है।उन्होने कहा कि निरस्त किए गए परीक्षा परिणामों और लंबित भर्तियों के कारण हजारों परिवार मानसिक तनाव में हैं। जिन अभ्यर्थियों ने अपनी पूरी मेहनत लगाकर परीक्षा पास की थी, उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया गया है। उनके माता-पिता और परिवारजन भी इस स्थिति से दुखी हैं, क्योंकि वे वर्षों से अपने बच्चों को तैयारी करवा रहे थे।

अभ्यर्थियों का कहना है कि जब भी कोई सरकारी परीक्षा आयोजित की जाती है, तो उसकी निष्पक्षता, पारदर्शिता और समय पर परिणाम घोषित करने की पूरी जिम्मेदारी सरकार और संबंधित भर्ती आयोग की होती है। लेकिन उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं को लेकर लगातार अनियमितताएं सामने आ रही हैं। कई बार परीक्षा सफलतापूर्वक संपन्न हो जाने के बाद भी या तो उसका परिणाम जारी करने में वर्षों की देरी की जाती है या फिर अचानक उसे रद्द कर दिया जाता है। इससे न केवल अभ्यर्थियों के सपनों पर आघात पहुंचता है, बल्कि उनके करियर पर भी संकट खड़ा हो जाता है। लंबे समय से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं का कहना है कि सरकार की लापरवाही और प्रशासनिक विफलताओं के कारण उनकी मेहनत पर पानी फिर रहा है, जिससे वे मानसिक तनाव और असमंजस की स्थिति में आ गए हैं।

इस पूरे मामले पर कांग्रेस ने सरकार को घेरते हुए कहा कि अगर इस तरह परीक्षाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा, तो उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की कोई उम्मीद ही नहीं रह जाएगी। डॉ. उपाध्याय ने कहा कि सरकार सिर्फ नाम बदलने और दिखावटी सुधार करने में लगी है, लेकिन जब तक प्रशासन में जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता रहेगा। कांग्रेस ने मांग की है कि सरकार को तुरंत परीक्षा परिणाम बहाल करना चाहिए या फिर इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा, पीसीएस और अन्य लंबित परीक्षाओं के परिणाम जल्द से जल्द जारी किए जाने चाहिए ताकि युवाओं को उनका हक मिल सके।

उत्तराखंड के युवाओं के लिए यह समय बेहद कठिन साबित हो रहा है। सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता और समयबद्ध प्रक्रिया की जरूरत है, ताकि बेरोजगार युवाओं को न्याय मिल सके। यदि सरकार इसी तरह लापरवाह बनी रही, तो यह राज्य के लिए गंभीर समस्या बन सकती है। अभ्यर्थियों ने मांग की है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद इस मामले में हस्तक्षेप करें और यह सुनिश्चित करें कि आगे से कोई भी परीक्षा इस तरह के विवादों में न फंसे। सरकार को चाहिए कि वह भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाए और यह गारंटी दे कि जो परीक्षाएं आयोजित की जा रही हैं, उनका परिणाम बिना किसी देरी और विवाद के जारी किया जाएगा।

अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है। क्या यह मामला भी अन्य विवादित परीक्षाओं की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा, या फिर सरकार इसे गंभीरता से लेते हुए आवश्यक सुधार करेगी? यह समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल उत्तराखंड के युवाओं के लिए यह एक और निराशाजनक स्थिति है।

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