रामनगर। प्लास्टिक आज दुनियाभर में मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। इसकी सुविधाजनक और बहुउपयोगी प्रकृति के कारण इसका उपयोग तेज़ी से बढ़ा है, लेकिन इसके गंभीर दुष्प्रभाव भी अब खुलकर सामने आने लगे हैं। विशेष रूप से जंगलों में प्लास्टिक का बढ़ता प्रभाव वन्यजीवों के लिए गंभीर संकट बन रहा है। यह चिंता का विषय है कि इंसान अपनी सहूलियत के लिए प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग कर रहा है, लेकिन इसकी असली कीमत वन्यजीव चुका रहे हैं। भोजन की तलाश में वन्यजीव गलती से प्लास्टिक खा रहे हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है और कई मामलों में उनकी मृत्यु तक हो रही है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण न केवल वन्यजीव प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि जंगलों का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है। इस गंभीर समस्या का तत्काल समाधान जरूरी है।

राज्य के संरक्षित क्षेत्रों में प्लास्टिक की बढ़ती मौजूदगी वन्यजीवों के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। जंगलों से होकर गुजरने वाले रेलवे ट्रैक और सड़कों के कारण यह समस्या और बढ़ गई है। सफर के दौरान लोग लापरवाही से खाने-पीने की वस्तुओं की पॉलिथीन जंगलों में फेंक देते हैं, जो वन्यजीवों के लिए घातक साबित हो रही है। सड़क किनारे फेंका गया कचरा भी धीरे-धीरे जंगलों तक पहुंच जाता है, जिससे वन्यजीव इसे भोजन समझकर निगल रहे हैं। प्लास्टिक के सेवन से उनके पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है, जिससे कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। यह लापरवाही न सिर्फ वन्यजीवों की जिंदगी को खतरे में डाल रही है, बल्कि जंगलों के संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित कर रही है।
वन्यजीवों की रहस्यमयी मौतों की जांच के दौरान वन विभाग को चौंकाने वाली सच्चाई पता चली। पोस्टमार्टम के दौरान कई मृत वन्यजीवों के पेट में प्लास्टिक पाया गया, जो इस बात का संकेत है कि वे खाद्य पदार्थ के साथ प्लास्टिक को भी निगल रहे थे। राजाजी टाइगर रिजर्व के पशु चिकित्सक डॉ. राकेश नौटियाल बताते हैं कि प्लास्टिक खाने के कारण वन्यजीवों के पाचन तंत्र पर गंभीर असर पड़ता है। कभी-कभी यह इतनी खतरनाक स्थिति में पहुंच जाता है कि उनकी मौत तक हो जाती है। यह केवल एक क्षेत्र की समस्या नहीं, बल्कि पूरे राज्य में फैलती जा रही एक गंभीर चुनौती है।

इस संकट से निपटने के लिए वन विभाग रेलवे के साथ मिलकर काम कर रहा है। संरक्षित क्षेत्रों में रेलवे ट्रैक से गुजरने वाले यात्रियों को प्लास्टिक फेंकने से रोकने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि कर्मचारियों को रेलवे ट्रैक और जंगलों के आसपास सफाई के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, यह समस्या इतनी व्यापक हो चुकी है कि केवल सफाई अभियान काफी नहीं होगा। इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है।
जंगलों में फेंके गए खाद्य पदार्थों की सुगंध वन्यजीवों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। यह सुगंध इतनी तीव्र होती है कि जानवर दूर से ही इसे सूंघकर जंगल से बाहर निकल आते हैं और प्लास्टिक समेत इन वस्तुओं को निगल जाते हैं। हिरण, सांभर जैसे शाकाहारी वन्यजीव जहां खाने की तलाश में जंगलों के बाहर आ रहे हैं, वहीं उनके पीछे तेंदुआ और बाघ जैसे शिकारी वन्यजीव भी मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं। इस तरह प्लास्टिक प्रदूषण न केवल वन्यजीवों की मौत का कारण बन रहा है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को भी बढ़ावा दे रहा है।
राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वाइल्डलाइफ) आरके मिश्रा बताते हैं कि वेस्ट डिस्पोजल वन्यजीवों के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। रेलवे विभाग के साथ मिलकर इस पर काम किया जा रहा है और साथ ही जन जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं। हालांकि, यह समस्या केवल सफाई अभियानों से हल नहीं होगी। जरूरत इस बात की है कि लोग प्लास्टिक को जंगलों तक पहुंचने से रोकें और अपने कचरे का उचित निपटान करें।
इंसानी लापरवाही का असर यह हो रहा है कि भालू, तेंदुआ और बाघ जैसे शिकारी वन्यजीव भी इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं। वन क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोग अक्सर कचरा और भोजन के अवशेष खुले में फेंक देते हैं, जिससे जंगली जानवर आकर्षित होते हैं। नतीजतन, शिकारी वन्यजीव भी भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर आ जाते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।

वन्यजीवों को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने के लिए कठोर कदम उठाना बेहद जरूरी है। सबसे पहले, जंगलों और संरक्षित क्षेत्रों में प्लास्टिक फेंकने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाए, ताकि लोग लापरवाही से कचरा न फेंकें। इसके साथ ही, रेलवे ट्रैक और जंगलों के किनारे रहने वाले लोगों को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए, ताकि वे इसे जंगलों में फेंकने से बचें। संरक्षित क्षेत्रों के पास कचरा निपटान केंद्र और वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम को दुरुस्त किया जाए, ताकि प्लास्टिक उचित रूप से नष्ट किया जा सके। रेलवे और वन विभाग को मिलकर नियमित सफाई अभियान चलाने चाहिए, जिससे जंगलों में जमा प्लास्टिक कचरा हटाया जा सके। सबसे अहम, जंगलों में प्लास्टिक ले जाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए, ताकि वन्यजीवों और प्रकृति की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
प्लास्टिक प्रदूषण अब केवल इंसानों की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह वन्यजीवों के जीवन पर भी घातक असर डाल रहा है। प्लास्टिक निगलने से उनकी मौत हो रही है, जबकि खाद्य पदार्थ की सुगंध उन्हें जंगलों से बाहर आने के लिए मजबूर कर रही है। यह स्थिति केवल वन्यजीवों के लिए नहीं, बल्कि इंसानों के लिए भी खतरा बन सकती है। अब समय आ गया है कि सरकार, प्रशासन और आम लोग मिलकर इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएं। यदि जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो प्लास्टिक प्रदूषण वन्यजीवों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।