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रूसी साध्वी की कठोर साधना बनी आस्था का केंद्र, मां गर्जिया मंदिर में खड़ी होकर कर रही उपासना

रामनगर। देवभूमि उत्तराखंड की पावन धरा संतों और साधकों की तपस्या का केंद्र रही है। नवरात्र के पावन अवसर पर भक्तजन अनूठे रूप से देवी की साधना में लीन हैं, लेकिन इस बार रामनगर के प्रसिद्ध मां गर्जिया देवी मंदिर में एक विदेशी साध्वी सबके आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। रूस की मूल निवासी शंबुरोबा ने नाथ संप्रदाय की दीक्षा लेकर अपना नाम अन्नपूर्णा नाथ रख लिया है। अब वे नवरात्रि के दौरान कठोर खडेश्वरी साधना कर रही हैं, जिसमें साधक लगातार खड़े रहकर देवी की आराधना करता है। रूस में जन्मी शंबुरोबा को भारतीय अध्यात्म की ओर बचपन से ही आकर्षण था। करीब 15 साल पहले उन्होंने नाथ संप्रदाय को अपनाकर साधना के पथ पर कदम बढ़ाया। प्रयागराज में हाल ही में संपन्न हुए महाकुंभ के दौरान उनकी भेंट प्रसिद्ध नाथ योगी मयंक नाथ उर्फ साइरन बाबा से हुई, जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने मां गर्जिया मंदिर में साधना करने का निर्णय लिया।

रूसी साध्वी अन्नपूर्णा नाथ ने 9 मार्च से मौन व्रत धारण कर रखा है, और नवरात्रि के प्रथम दिन से उन्होंने कठोर खडेश्वरी साधना शुरू कर दी। यह साधना अत्यंत कठिन मानी जाती है, जिसमें साधक पूरे समय केवल खड़े रहकर उपासना करता है। इस दौरान उन्हें अत्यधिक मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाए रखना होता है। उनकी इस कठोर तपस्या को देखकर श्रद्धालु न केवल विस्मय में हैं, बल्कि गहरी श्रद्धा भी प्रकट कर रहे हैं। भक्तजन उनकी साधना को आध्यात्मिक शक्ति का अद्वितीय उदाहरण मान रहे हैं। यह साधना केवल तप और समर्पण ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक दृढ़ता की भी परीक्षा होती है। मां गर्जिया मंदिर में उनकी इस साधना ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है और वे श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।

उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक मां गर्जिया मंदिर में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं। इस बार यहां एक विदेशी साध्वी की कठोर तपस्या और आध्यात्मिक समर्पण चर्चा का विषय बना हुआ है। श्रद्धालु उनकी साधना से प्रेरित होकर उनसे आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। नाथ संप्रदाय के योगी दीपक नाथ ने बताया कि अन्नपूर्णा नाथ ने भारतीय अध्यात्म को पूरी तरह आत्मसात कर लिया है और वे संप्रदाय के सभी नियमों का कठोरता से पालन कर रही हैं। साइरन बाबा ने कहा कि उनकी साधना में अडिग आस्था और अद्वितीय समर्पण है, जो सभी के लिए प्रेरणास्रोत बन रहा है।

रूसी संन्यासिनी मां गर्जिया मंदिर में तपस्या में लीन

रूस की मूल निवासी शंबुरोबा का आध्यात्मिक सफर न केवल अनूठा है बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा को भी दर्शाता है। वे यूरोप में ही योग और ध्यान का अभ्यास करती थीं, लेकिन भारत आने के बाद उन्होंने नाथ संप्रदाय की दीक्षा लेकर आधिकारिक रूप से संन्यास धारण कर लिया। साध्वी बनने के बाद उन्होंने अपना नया नाम ‘अन्नपूर्णा नाथ’ रखा और पूरी तरह साधना में लीन हो गईं। उनका मानना है कि भारतीय अध्यात्म की शक्ति विश्वभर के लोगों को आकर्षित करती है और वे इसी शक्ति की अनुभूति के लिए भारत आई हैं।

मां गर्जिया मंदिर समिति के अध्यक्ष कुबेर सिंह अधिकारी ने बताया कि मंदिर परिसर में इस प्रकार की कठिन साधना के लिए कोई विशेष स्थान निर्धारित नहीं किया गया है। हालांकि, प्रशासन को इस विषय की पूरी जानकारी दे दी गई है। मंदिर समिति का कहना है कि साधना के नियमों और अनुशासन को बनाए रखने के लिए प्रशासन की सतर्कता आवश्यक है। प्रशासन इस पूरी प्रक्रिया पर बारीकी से नजर बनाए हुए है ताकि किसी भी तरह की अव्यवस्था न हो। आवश्यकतानुसार दिशा-निर्देश भी जारी किए जा सकते हैं। अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, इसलिए वहां किसी भी गतिविधि को संयम और अनुशासन में रखा जाना चाहिए। प्रशासन और मंदिर समिति मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि साध्वी की साधना निर्विघ्न रूप से संपन्न हो।

अन्नपूर्णा नाथ की साधना यह प्रमाणित करती है कि आस्था, श्रद्धा और तपस्या की कोई सीमा नहीं होती। भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं की शक्ति केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोगों को आकर्षित कर रही है। मां गर्जिया मंदिर में उनकी तपस्या से यह संदेश मिलता है कि ईश्वर की उपासना में कोई बंधन नहीं हैकृचाहे वह जाति, धर्म, देश या भाषा का हो। उनकी कठोर साधना न केवल श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा बनी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सच्ची भक्ति में कोई भी भौगोलिक सीमा मायने नहीं रखती।

नवरात्रि का यह पावन अवसर आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है, और इसी अवसर पर रूसी साध्वी अन्नपूर्णा नाथ का समर्पण हमें एक गहरी सीख देता है। जब आत्मा की पुकार होती है, तो धर्म, देश, भाषा और भौतिक सीमाओं का कोई बंधन नहीं रहता। उनकी कठोर खडेश्वरी साधना, जिसमें वे नवरात्रि के दौरान खड़े रहकर मां की आराधना कर रही हैं, यह दर्शाती है कि सच्ची भक्ति किसी भी परिस्थिति में अडिग रहती है। मां गर्जिया मंदिर में गूंजती घंटियों और श्रद्धालुओं की भक्ति के बीच उनकी तपस्या एक नई आध्यात्मिक ऊंचाई स्थापित कर रही है। श्रद्धालु न केवल उनकी साधना से प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि उनकी दृढ़ता और समर्पण को देखकर नई प्रेरणा भी प्राप्त कर रहे हैं। उनका यह आध्यात्मिक सफर विश्वभर के भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक बन गया है।

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