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भारत की सनातन संस्कृति का भव्य जागरण विश्वगुरु बनने की ओर बढ़ता राष्ट्र

भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का शंखनाद, सनातन संस्कृति के वैभव से विश्वगुरु बनने की राह, अयोध्या से गूंजा विश्व बंधुत्व का संदेश, युवा पीढ़ी बनाएगी नया भारत

हरिद्वार। सनातन संस्कृति पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ने एक नए युग की शुरुआत कर दी है। इस संगोष्ठी का उद्घाटन केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने किया, जिसमें देश-विदेश के विद्वानों, शिक्षाविदों और समाजसेवियों ने भाग लिया। अपने उद्घाटन भाषण में शेखावत ने कहा कि भारत ट्रांसफार्मेशन के दौर से गुजर रहा है और सनातन संस्कृति ही भारत को विश्वगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करेगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया में कई सभ्यताएं आईं और गईं, लेकिन सनातन संस्कृति अजर-अमर रही। इस संस्कृति को समाप्त करने के अनेक प्रयास किए गए, लेकिन भारतीय सभ्यता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे मिटाना संभव नहीं। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में आत्मीयता और विश्व बंधुत्व की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है, जो इसे अन्य सभ्यताओं से अलग और श्रेष्ठ बनाती है।

शेखावत ने कहा कि जब दुनिया में सभ्यताओं का विकास हो रहा था, तब भारत में वेदों की ऋचाएं रची जा रही थीं। यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति का अतीत गौरवशाली और स्वर्णिम रहा है। उन्होंने कहा कि आज भारत सांस्कृतिक जागरण के दौर में है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण है। उन्होंने इसे भारत की सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना करार दिया और कहा कि अब पूरा विश्व भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण पर नजरें गड़ाए हुए है। शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत, सनातन संस्कृति के मूल मंत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत पर कार्य कर रहा है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दुनिया के देशों के बीच तनाव को केवल सनातन संस्कृति के सिद्धांतों के पालन से ही समाप्त किया जा सकता है

पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस अवसर पर कहा कि देवभूमि विकास संस्थान समाज में जागरूकता लाने के लिए विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान पर्यावरण सुरक्षा, रक्तदान और अब अंगदान-देहदान जैसे सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हम सनातनी हैं, और भारतीय संस्कृति का ज्ञान नई पीढ़ी तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने युवाओं को इस सांस्कृतिक जागरण में आगे आने का आह्वान किया और कहा कि आज का युवा ही सनातन संस्कृति की धरोहर को आगे बढ़ाने वाला है। उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति कभी भी किसी के प्रति भेदभाव नहीं करती। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का महान मंत्र भारत ने ही दुनिया को दिया

इस संगोष्ठी में हंस फाउंडेशन की संस्थापिका माता मंगला जी ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में नारी शक्ति को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है। उन्होंने बताया कि हंस फाउंडेशन शिक्षा, स्वास्थ्य और बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है और आज देश के 28 राज्यों में सेवा कार्यों के जरिए भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में योगदान दे रहा है। माता मंगला जी ने कहा कि भारत में शक्ति के रूप में नारी को आराध्य माना जाता है और यह भारत की संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति दुनिया में नारी सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण है

देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति चिन्मय पांड्या ने कहा कि यह संगोष्ठी भारत के जागरण की ऐतिहासिक घड़ी का निर्णायक क्षण है। उन्होंने कहा कि यह समय भारत के सांस्कृतिक वैभव, स्वाभिमान और अस्मिता के पुनर्स्थापन का समय है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति अमर और अजर है और पूरी दुनिया को केवल भारत की सनातन संस्कृति ही प्रेम, सद्भाव और मानवता का संदेश दे सकती है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति कभी भी आक्रमण और आतंक का माध्यम नहीं बनी। बल्कि यह अपनत्व और आत्मीयता का संदेश देती है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में ‘नरक को स्वर्ग बनाने’ की शक्ति है

इससे पहले केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत, देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रति कुलपति समेत अन्य गणमान्य लोगों ने दीप प्रज्वलित कर इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर हरिद्वार विधायक मदन कौशिक, मेयर किरन जैसल, हंस फाउंडेशन के संस्थापक भोले जी महाराज समेत अनेक विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री शेखावत और सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में स्थित ‘शौर्य दीवार’ पर शहीद जवानों को नमन किया और पौधरोपण भी किया। केंद्रीय मंत्री ने ‘संस्कृति, प्रकृति और प्रगति’ नामक पुस्तक का विमोचन भी किया।

संगोष्ठी के दौरान विभिन्न सत्रों का आयोजन किया गया। भारतीय संस्कृति का परिचय विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने की, जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर प्रोफेसर प्रवीन चतुर्वेदी ने अपने विचार रखे। इसके पश्चात ‘स्वास्थ्य और मानसिक शांति’ विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने की। इस सत्र में प्रोफेसर लक्ष्मी दर बेहरा (लीला पुरुषोत्तम दास), आईआईटी मंडी के निदेशक और प्रोफेसर मैक्ग्रेगर लिननौर (सर्वादिक दास) ने अपने विचार साझा किए। तीसरे सत्र में ‘आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए कार्य योजना’ विषय पर चर्चा हुई, जिसकी अध्यक्षता गोविंद पंत कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनमोहन चौहान ने की। इस सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर रोवींद्रनाथ सचदेव थे।

इस भव्य संगोष्ठी ने सनातन संस्कृति के महत्व, इसकी सार्वभौमिकता और इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के प्रयासों को एक नई दिशा दी है। इस संगोष्ठी के माध्यम से भारत की सनातन परंपराओं और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए एक सशक्त मंच तैयार हुआ है, जो भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा

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