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क्या रामनगर में साजिश के तहत ग्रामीणों को आपस में लड़ाने की हो रही है कोशिश?

तराई पश्चिमी वन प्रभाग के डीएफओ पीसी आर्य की भूमिका संदेह के घेरे में, जांच की मांग तेज

रामनगर। क्या तराई पश्चिमी वन प्रभाग में ग्रामीणों को आपस में लड़ाने की साजिश रची जा रही है? क्या प्रशासनिक स्तर पर निहित स्वार्थों को साधने के लिए षड्यंत्र रचा जा रहा है? इन सवालों ने रामनगर में हलचल मचा दी है। मामला चांदनी पर्यटन जोन खोलने का है, जिसका ग्रामीणों द्वारा लगातार विरोध किया जा रहा है। लेकिन अब इस विरोध के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया हैकृक्या प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) पीसी आर्य ने पर्यटन जोन के समर्थन में खड़े होने के लिए रिजॉर्ट और खनन कारोबारियों को उकसाया? क्या प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर जनभावनाओं को कुचलने की कोशिश हो रही है? इन गंभीर सवालों के जवाब खोजने के लिए उच्च स्तरीय जांच की मांग उठने लगी है।

तराई पश्चिमी वन प्रभाग द्वारा बिना किसी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय अध्ययन के चांदनी पर्यटन जोन खोले जाने की प्रक्रिया ने ग्रामीणों को नाराज कर दिया है। स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों की राय लिए बिना, प्रशासन ने पर्यटन जोन की घोषणा कर दी, जिसके बाद ग्रामीण उग्र विरोध कर रहे हैं। लगातार धरना, प्रदर्शन और पंचायतों के जरिए लोग एकजुट हो रहे हैं, और इस आंदोलन को राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों का भी समर्थन मिल रहा है।

चांदनी पर्यटन जोन के खिलाफ 24 मार्च 2025 को प्रभागीय वनाधिकारी कार्यालय के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया गया, जिसमें सैकड़ों ग्रामीण, महिलाएं, पुरुष, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता शामिल हुए। प्रदर्शन के दौरान जब डीएफओ पीसी आर्य अपने कार्यालय में नहीं थे, तो आंदोलनकारियों ने एसडीओ तराई पश्चिमी वन प्रभाग को ज्ञापन सौंपा। लेकिन जैसे ही ग्रामीण प्रदर्शन खत्म कर बाहर निकले, तभी एक चौंकाने वाली घटना घटीकृ रिजॉर्ट और खनन कारोबारियों का एक समूह कार्यालय के बाहर पहले से ही मौजूद था। सवाल यह उठता है कि उन्हें वहां किसने बुलाया? क्यों बुलाया? और इस पूरी घटना के पीछे असली मंशा क्या थी? क्या यह ग्रामीणों को आपस में बांटने और आंदोलन को कमजोर करने की रणनीति थी?

सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि जब विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी कार्यालय से बाहर आए, ठीक उसी समय रामनगर विधायक के पुत्र जगमोहन सिंह बिष्ट पर्यटन जोन के समर्थकों के साथ कार्यालय के भीतर दाखिल हुए। और आश्चर्यजनक रूप से डीएफओ पीसी आर्य, जो अब तक ष्बाहरष् थे, अचानक अपने कार्यालय में प्रकट हो गए! यह सिर्फ संयोग था या पहले से रची गई रणनीति? इस बैठक में कथित तौर पर विरोध कर रहे ग्रामीणों के लिए आपत्तिजनक और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन एक पक्ष की ही सुन रहा है? और क्या दूसरे पक्ष को जानबूझकर दबाने की कोशिश हो रही है?

रामनगर में हालिया घटनाक्रम के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है। स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह पूरी घटना एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा थी? क्या दो पक्षों को जानबूझकर आमने-सामने लाने की कोशिश की गई? ऐसी स्थिति में प्रशासन की भूमिका को लेकर भी गंभीर संदेह जताए जा रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह सब प्रशासन की मिलीभगत से हुआ, या फिर कुछ अधिकारियों की निष्क्रियता का परिणाम था? इस पूरे मामले की गहराई से जांच की आवश्यकता है ताकि सच्चाई सामने आ सके। जिला प्रशासन, पुलिस और खुफिया विभाग को इस प्रकरण की तत्काल निष्पक्ष जांच करनी चाहिए। विशेष रूप से, डीएफओ पीसी आर्य की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह किसी विशेष वर्ग के समर्थन में पक्षपात कर रहे हैं और आंदोलन को कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं। क्या उनकी नीतियां तटस्थ हैं, या फिर वह किसी गुट के प्रति झुकाव रखते हैं? यह जांच से ही स्पष्ट होगा। प्रशासन को पारदर्शिता और निष्पक्षता दिखानी होगी ताकि लोगों का विश्वास बना रहे। यदि किसी अधिकारी की भूमिका संदिग्ध पाई जाती है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। निष्पक्ष जांच से ही रामनगर में शांति और सौहार्द कायम रह सकता है।

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रधान महासचिव और राज्य आंदोलनकारी प्रभात ध्यानी ने इस पूरे मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह केवल पर्यटन जोन तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी साजिश काम कर रही है। उनके अनुसार, यह साजिश न केवल आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश है, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों को बांटने और आपस में भिड़ाने की सुनियोजित चाल भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन और कुछ शक्तिशाली तत्व मिलकर आंदोलन को विफल करने और ग्रामीणों के बीच विभाजन की खाई गहरी करने का षड्यंत्र रच रहे हैं।

ध्यानी ने राज्य सरकार और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों से इस मामले पर तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। उन्होंने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, डीजीपी, वन विभाग के प्रमुख अधिकारियों, कुमाऊं मंडल के आयुक्त और नैनीताल जिला प्रशासन से इस गंभीर प्रकरण पर संज्ञान लेने का अनुरोध किया है। उनका कहना है कि यदि समय रहते इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की गई और दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आंदोलन व्यापक रूप ले सकता है और हालात और बिगड़ सकते हैं। उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया कि वह तटस्थता और पारदर्शिता बनाए रखते हुए कार्रवाई करे, ताकि जनता का भरोसा बना रहे और इस संवेदनशील मामले का समाधान जल्द से जल्द निकाला जा सके।

अब सवाल यह है कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर कब तक चुप्पी साधे रखेगा? क्या मुख्यमंत्री इस मामले में दखल देंगे? क्या डीएफओ के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी? क्या पुलिस प्रशासन इस साजिश की गहराई से जांच करेगा? रामनगर के ग्रामीण अब अपने हक की लड़ाई को और तेज करने की रणनीति बना रहे हैं। यदि सरकार जल्द इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।

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