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17 साल बाद कॉर्बेट पार्क में होगी भालुओं की गिनती, आधुनिक तकनीक से होगा खुलासा

भालुओं की रहस्यमयी दुनिया से उठेगा पर्दा, पहली बार होगी सटीक गिनती – जानिए कैसे बदलेगा कॉर्बेट का वन्यजीव संरक्षण का भविष्य

रामनगर। देश के सबसे प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्यों में से एक जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में 17 साल बाद पहली बार भालुओं की आधिकारिक गणना होने जा रही है। इस ऐतिहासिक सर्वेक्षण के दौरान स्लॉथ बीयर और हिमालयन ब्लैक बीयर की सटीक संख्या का पता लगाया जाएगा। यह पहली बार है जब इन दोनों प्रजातियों की गणना एक संगठित और वैज्ञानिक तरीके से की जाएगी। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन ने इस महत्वपूर्ण गणना के लिए पूरी तैयारी कर ली है। आखिरी बार 2008 में भालुओं की गिनती हुई थी, जिसमें 60 से अधिक भालू जंगल में दर्ज किए गए थे। लेकिन उसके बाद से अब तक उनकी संख्या में क्या बदलाव आया, इस पर कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। अब अत्याधुनिक कैमरा ट्रैपिंग, फील्ड सर्वे और वैज्ञानिक विश्लेषण के जरिए इस बार की गणना को और अधिक सटीक बनाया जाएगा।

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर साकेत बडोला ने कहा कि कॉर्बेट का वातावरण भालुओं के लिए बेहद अनुकूल है और जल्द ही इस गणना के लिए एक वैज्ञानिक प्रोटोकॉल तैयार किया जाएगा। इस गणना का उद्देश्य केवल भालुओं की संख्या जानना ही नहीं, बल्कि उनके व्यवहार, निवास स्थान और जंगल में उनकी वास्तविक स्थिति को समझना भी है। यह अध्ययन संरक्षण प्रयासों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार तैयार करेगा। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर साकेत बडोला ने बताया कि कॉर्बेट पार्क में दो प्रकार के भालू पाए जाते हैं। स्लॉथ बीयर (Sloth Bear) जंगल के निचले हिस्सों में रहते हैं और मुख्य रूप से फल, फूल, शहद और कीड़ों पर निर्भर होते हैं। दूसरी ओर, हिमालयन ब्लैक बीयर (Himalayan Black Bear) ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में पाए जाते हैं और सर्वाहारी होते हैं। ये भालू फल, पत्तियां, कीड़े और कभी-कभी मांस भी खाते हैं। डायरेक्टर साकेत बडोला ने बताया कि अब तक, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों और हाथियों की गिनती हर चार साल में होती रही है, लेकिन भालुओं की वास्तविक संख्या पर कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं था। इससे इनके संरक्षण की स्थिति और आवश्यक उपायों की सही जानकारी नहीं मिल पाती थी। अब पहली बार, वैज्ञानिक तरीकों से इस गणना को अंजाम दिया जाएगा, जिससे भालुओं की सटीक संख्या का खुलासा होगा और उनकी सुरक्षा के लिए प्रभावी योजनाएं बनाई जा सकेंगी।

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भालुओं की गणना के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे उनकी वास्तविक संख्या और जंगल में उनकी स्थिति का स्पष्ट आकलन किया जा सके। इस गणना में कैमरा ट्रैपिंग, फील्ड स्टडी, फुट प्रिंट एनालिसिस और डीएनए सैंपलिंग जैसी आधुनिक वैज्ञानिक विधियों को शामिल किया जाएगा। यह पहली बार है जब भालुओं की सटीक संख्या का पता लगाने के लिए इतना व्यापक और व्यवस्थित अध्ययन किया जा रहा है। इससे उनके व्यवहार, प्राकृतिक आवास और अस्तित्व से जुड़ी अहम जानकारियां मिलेंगी, जो उनके संरक्षण के लिए बेहद जरूरी हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ राजेश भट्ट ने इस पहल को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि भालुओं की गणना बहुत आवश्यक थी। इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि उनकी आबादी स्थिर बनी हुई है या घट रही है। यदि उनकी संख्या में कमी पाई जाती है, तो हमें इसके कारणों का विश्लेषण करना होगा और उनके संरक्षण के लिए नई रणनीतियां तैयार करनी होंगी। अब तक, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों और हाथियों की नियमित रूप से गणना की जाती थी, लेकिन भालुओं की स्थिति पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया था। ऐसे में यह अध्ययन ऐतिहासिक साबित हो सकता है, क्योंकि इससे न केवल भालुओं की मौजूदा संख्या का पता चलेगा, बल्कि उनके प्राकृतिक आवास में आने वाले बदलावों का भी विश्लेषण किया जा सकेगा। इस डेटा के आधार पर सरकार और वन्यजीव संरक्षण से जुड़े संगठन भालुओं के लिए विशेष सुरक्षा उपायों और प्रबंधन योजनाओं को लागू कर पाएंगे, जिससे उनके अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

गौरतलब है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व सिर्फ बाघों के लिए प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यह कई वन्यजीवों का घर है। यहां 260 से ज्यादा बाघ, 1200 से ज्यादा हाथी, 500 से अधिक पक्षी प्रजातियां, और 150 से ज्यादा तितलियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन भालुओं को लेकर अब तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था। इस नई गणना से इस महत्वपूर्ण प्रजाति की वास्तविक स्थिति का पता चलेगा और उनके संरक्षण को लेकर बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। इस सर्वेक्षण की खबर ने वन्यजीव प्रेमियों और वैज्ञानिकों के बीच उत्सुकता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह सर्वेक्षण सफल होता है, तो अन्य वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं के लिए भी नया रास्ता खुलेगा। इसके जरिए यह भी पता लगाया जाएगा कि पिछले 17 सालों में वनों की स्थिति, जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेपों ने भालुओं पर कैसा प्रभाव डाला है।

इस ऐतिहासिक गणना से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भालुओं की सटीक संख्या का पता चल सकेगा। इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि उनकी आबादी स्थिर है, बढ़ रही है या घट रही है। गणना के दौरान भालुओं के रहन-सहन, खान-पान और पर्यावरण पर उनके प्रभाव की भी महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र की जाएगी। यदि उनकी संख्या में गिरावट दर्ज होती है, तो इसके संभावित कारणों का अध्ययन कर संरक्षण के लिए जरूरी उपाय किए जाएंगे। कैमरा ट्रैपिंग और डीएनए विश्लेषण जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के जरिए उनके आवासीय क्षेत्र, गतिविधियों और व्यवहार संबंधी पैटर्न का विस्तृत रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा। यह डेटा न केवल भालुओं की सुरक्षा योजनाओं में सहायक होगा, बल्कि उनके पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में भी मदद करेगा।

यह पहली बार होगा जब कॉर्बेट पार्क में भालुओं की वैज्ञानिक और आधुनिक तकनीकों से गणना की जाएगी। इस ऐतिहासिक कदम से न सिर्फ भालुओं की स्थिति स्पष्ट होगी, बल्कि उनके संरक्षण की दिशा में भी अहम रणनीतियां बनाई जा सकेंगी। वन विभाग और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इससे उत्तराखंड के जंगलों में वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण को एक नया आयाम मिलेगा। अब सबकी नजर इस गणना पर है, जो तय करेगी कि भालू संरक्षण को लेकर उत्तराखंड कितना गंभीर है और भविष्य में इनके लिए क्या योजनाएं बनाई जा सकती हैं!

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