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बर्फीली आफत के बीच चमोली माणा में चला जीवन बचाने का संघर्ष, सेना और प्रशासन ने किया अद्भुत रेस्क्यू ऑपरेशन

मौत की बर्फ़ से जंग: सेना का अद्भुत बचाव अभियान, चमोली माणा में ज़िंदगी की जंग जीतने की कहानी

चमोली। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित माणा गांव एक भीषण त्रासदी का साक्षी बना जब 28 फरवरी की सुबह घातक एवलॉन्च ने इस क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया। इस तबाही के दौरान सीमा सड़क संगठन (BRO) के ठेकेदार के अंतर्गत काम कर रहे 54 मजदूर बर्फीले तूफान में फंस गए। इस विनाशकारी घटना के बाद प्रशासन और सेना ने तत्परता दिखाते हुए तुरंत राहत अभियान शुरू किया। तीन दिनों तक चले इस कठिन अभियान के अंत में 46 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया, जबकि 8 मजदूरों की इस आपदा में मृत्यु हो गई। उनके शव भी रेस्क्यू टीम द्वारा खोज लिए गए हैं।

28 फरवरी की सुबह करीब 4 बजे इस क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही मची। मौसम विभाग और डिफेंस जियोइन्फॉर्मेटिक्स रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (DGRE) चंडीगढ़ ने पहले ही इस खतरे की आशंका जताई थी और उत्तराखंड के कई जिलों में येलो अलर्ट जारी किया था। परंतु इसके बावजूद यह त्रासदी टल नहीं सकी। चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले में भी खतरे का अलर्ट दिया गया था।

इस प्राकृतिक आपदा के दौरान BRO के 54 मजदूर हाईवे पर बर्फ हटाने का काम कर रहे थे और 8 कंटेनर तथा एक शेड में ठहरे हुए थे। जब एवलॉन्च आया, तब सभी मजदूर गहरी नींद में थे और बर्फीले तूफान में दब गए। घटना की सूचना प्रशासन को सुबह 10:30 बजे मिली, जिसके तुरंत बाद आईटीबीपी और सेना के जवानों ने बचाव अभियान शुरू किया। अत्यधिक बर्फबारी के कारण स्थानीय प्रशासन मौके पर नहीं पहुंच सका, जिससे सेना और आईटीबीपी को ही मुख्य भूमिका निभानी पड़ी। दोपहर 11:30 बजे तक सेना ने 15 मजदूरों को सुरक्षित निकाला। इसी बीच देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक महत्वपूर्ण बैठक कर राहत कार्यों की समीक्षा की। खराब मौसम के चलते हेलीकॉप्टर सेवा तुरंत नहीं मिल सकी, लेकिन शाम 4:30 बजे तक 10 मजदूरों को अस्पताल भेजा गया। रात 5 बजे तक कुल 32 मजदूरों को बर्फ से बाहर निकाल लिया गया और इनका प्राथमिक उपचार सेना के कैंप में किया गया। इस दिन के अंत तक सेना ने 33 मजदूरों को बचा लिया था।

1 मार्च को मौसम ने राहत दी और रेस्क्यू ऑपरेशन को मजबूती मिली। हेलीकॉप्टरों की मदद से बचाव कार्य तेज कर दिया गया। सुबह होते ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्थिति की जानकारी दी। रेस्क्यू किए गए मजदूरों को तुरंत जोशीमठ जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका इलाज शुरू हुआ। इस अभियान में एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें भी शामिल हुईं। 10:30 बजे मुख्यमंत्री धामी ने घटनास्थल का हवाई सर्वेक्षण किया और राहत अभियान में तेजी लाने के निर्देश दिए। दोपहर तक 49 मजदूरों को बचा लिया गया, लेकिन इस दौरान 4 मजदूरों की मौत की पुष्टि भी हुई। दोपहर के बाद सेना ने BRO के कंटेनरों को खोजने का प्रयास किया, जिससे और मजदूरों तक पहुंचने की उम्मीद बढ़ी। शाम होते-होते बचाए गए मजदूरों की संख्या 50 पहुंच गई।

2 मार्च को बचाव अभियान का अंतिम और सबसे कठिन दिन था। सेना और अन्य रेस्क्यू टीमों ने बचे हुए मजदूरों को खोजने के लिए फिर से ऑपरेशन शुरू किया। सुबह 11:30 बजे एक मजदूर का शव बर्फ में दबा मिला, जिसके बाद दोपहर को दो और शव बरामद किए गए। इस तरह मृतकों की संख्या 7 हो गई। शाम 5 बजे एक और शव मिलने के बाद इस दुखद घटना में मरने वालों की कुल संख्या 8 हो गई। इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में सेना के 6 हेलीकॉप्टर शामिल थे, जिसमें भारतीय सेना के तीन चीता हेलीकॉप्टर, वायुसेना के दो हेलीकॉप्टर और एक किराए पर लिया गया हेलीकॉप्टर शामिल था। मजदूरों को प्राथमिक उपचार के बाद हेलीकॉप्टर से सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।

इस भयानक त्रासदी के बीच भारतीय सेना और प्रशासन का यह प्रयास बेहद सराहनीय रहा। सेना ने इस अभियान की सेटेलाइट तस्वीरें और वीडियो जारी किए, जिसमें जवानों को भारी बर्फबारी के बीच कंधों पर मजदूरों को उठाकर सुरक्षित स्थानों तक ले जाते हुए देखा जा सकता है। यह नज़ारा दिल दहलाने वाला था, लेकिन जवानों की मेहनत और दृढ़ संकल्प से कई जिंदगियां बच सकीं।

रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान तापमान माइनस 12 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, लेकिन सेना की आइबेक्स ब्रिगेड और अन्य जवानों ने विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य का पालन किया। तीन दिनों की अथक मेहनत और साहसिक प्रयासों के बाद अंततः इस भीषण आपदा में 46 मजदूरों को जिंदा बचा लिया गया। यह अभियान न केवल एक ऐतिहासिक रेस्क्यू ऑपरेशन के रूप में याद किया जाएगा, बल्कि यह भी दर्शाएगा कि भारतीय सेना और प्रशासन किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

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