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मध्यम वर्ग की आर्थिक बेड़ियाँ: कब मिलेगा वित्तीय न्याय?

आर्थिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष: भारत के मेहनती मध्यम वर्ग के लिए न्याय कब?

रामनगर। भारत का मेहनती मध्यम वर्ग, जो सीमित संसाधनों में भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात संघर्ष करता है, आज वित्तीय न्याय से वंचित हो रहा है। मौजूदा आर्थिक व्यवस्था और क्रेडिट स्कोर प्रणाली इस वर्ग की आर्थिक प्रगति में बाधक बनी हुई है। एक ओर जहां उच्च वर्ग को सरकारी और बैंकिंग संस्थानों से विशेष लाभ और कर्ज माफी जैसी सुविधाएँ मिलती हैं, वहीं मध्यम वर्ग को सख्त नियमों की बेड़ियों में जकड़ दिया जाता है। बढ़ती महंगाई, रोजगार की अस्थिरता और स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थितियाँ कई बार मध्यम वर्ग के लोगों को कर्ज लेने पर मजबूर कर देती हैं। लेकिन यदि वे किसी कारणवश समय पर ऋण की किश्त अदा नहीं कर पाते, तो उनके क्रेडिट स्कोर (CIBIL स्कोर) पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एक बार गिरा हुआ CIBIL स्कोर उन्हें भविष्य में किसी भी प्रकार के लोन, क्रेडिट कार्ड या वित्तीय सुविधा प्राप्त करने से रोक देता है। यहाँ तक कि जब ये लोग आर्थिक रूप से मजबूत हो जाते हैं और अपनी पुरानी देनदारियाँ चुका देते हैं, तब भी उन्हें नए लोन लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह एक प्रकार का वित्तीय अन्याय है, जिससे मध्यम वर्ग की आर्थिक वृद्धि बाधित हो रही है।

दूसरी ओर, बड़े उद्योगपति और उच्च वर्ग के लोग करोड़ों रुपये के कर्ज लेकर भी निश्चिंत रहते हैं, क्योंकि उन्हें सरकारी राहत योजनाओं, ऋण पुनर्गठन और कर्ज माफी जैसी विशेष सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। बैंक और सरकारी संस्थाएँ उनके लिए लोन की शर्तें आसान कर देती हैं, जबकि मध्यम वर्ग के लोग कर्ज लेने के लिए कई तरह की औपचारिकताओं और जटिल प्रक्रियाओं से गुजरने को मजबूर होते हैं। यह असमानता मध्यम वर्ग की वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित करती है और उन्हें एक दुष्चक्र में धकेल देती है, जिससे निकलना कठिन हो जाता है।

अब समय आ गया है कि सरकार और वित्तीय संस्थाएँ इस असमानता को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाएँ। सबसे पहले, CIBIL स्कोर पुनर्निर्माण योजना लागू की जानी चाहिए, जिससे मध्यम वर्गीय ईमानदार करदाता और नियमित रूप से ऋण चुकाने वाले लोगों को अपने क्रेडिट स्कोर को सुधारने का अवसर मिले। यह व्यवस्था इस प्रकार बनाई जानी चाहिए कि किसी एक गलती की सजा जीवनभर न झेलनी पड़े। यदि कोई व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार चुका है, तो उसे नए ऋण लेने और अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने का मौका दिया जाना चाहिए। साथ ही, इस प्रक्रिया को पारदर्शी और सुगम बनाया जाना चाहिए, ताकि आम लोग बिना किसी अतिरिक्त दबाव के इसका लाभ उठा सकें।

इसके अलावा, बैंक और वित्तीय संस्थानों को अधिक लचीली नीतियाँ अपनाने की आवश्यकता है। मध्यम वर्ग के लिए कर्ज माफी भले ही न दी जाए, लेकिन उनके लिए आसान पुनर्भुगतान योजनाएँ (Loan Restructuring) लाई जानी चाहिए। पारदर्शी ऋण पुनर्गठन व्यवस्था लागू हो, ताकि जरूरतमंद लोगों को न्याय मिले और वे बिना किसी अवरोध के अपनी वित्तीय यात्रा जारी रख सकें। इस प्रक्रिया में सरकार को भी भूमिका निभानी चाहिए, जिससे बैंक और वित्तीय संस्थाएँ जनहित को ध्यान में रखते हुए निर्णय लें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान क्रेडिट स्कोरिंग प्रणाली में बदलाव की सख्त जरूरत है। केवल ऋण चुकाने के इतिहास के आधार पर किसी व्यक्ति की वित्तीय विश्वसनीयता तय करना अन्यायपूर्ण है। इसके बजाय, व्यक्ति की कुल आय, संपत्ति, कर भुगतान की स्थिति और वित्तीय सुधार को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस नए मॉडल से अधिक से अधिक लोगों को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच मिलेगी और मध्यम वर्ग को उसका उचित अधिकार प्राप्त होगा।

इसके साथ ही, सरकार को एक ऐसी नीति पर काम करना चाहिए जो मध्यम वर्ग के लिए विशेष वित्तीय सहायता योजनाओं की शुरुआत करे। इसके तहत, बैंकिंग प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाए और न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाए। मध्यम वर्ग के लोगों को उनके आर्थिक योगदान और कर भुगतान के आधार पर कुछ विशेष लाभ दिए जाने चाहिए। इससे उनकी आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित होगी और वे देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि मेहनती मध्यम वर्ग को आर्थिक अवसरों से वंचित न किया जाए। यदि ‘सबका विकास’ सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि एक वास्तविकता बनाना है, तो आर्थिक नीतियों में समावेशिता जरूरी है। भारत का मध्यम वर्ग ही इस देश की असली ताकत है, और इसकी प्रगति सुनिश्चित करना देश की समृद्धि की गारंटी है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि नीति निर्माताओं की सोच बदले और वे मध्यम वर्ग की वित्तीय जरूरतों को प्राथमिकता दें। यदि सरकार और बैंकिंग संस्थाएँ इस दिशा में गंभीर कदम उठाती हैं, तो निश्चित रूप से भारत के मध्यम वर्ग को नया आर्थिक आयाम मिलेगा और देश आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। इस बदलाव के लिए समाज के सभी वर्गों को मिलकर प्रयास करना होगा, जिससे आर्थिक न्याय की नई परिभाषा लिखी जा सके और प्रत्येक व्यक्ति को वित्तीय अवसरों तक समान पहुँच मिल सके।

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