काशीपुर(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड सरकार के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन (वर्चुअल रजिस्ट्री) को लेकर काशीपुर बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं में जबरदस्त आक्रोश है। वकीलों का मानना है कि इस नई व्यवस्था से न केवल उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है, बल्कि इससे उनकी आजीविका भी खतरे में पड़ गई है। सरकार द्वारा बेनामे, वसीयत, विवाह पंजीकरण सहित अन्य रजिस्ट्रेशन प्रक्रियाओं को डिजिटल करने का आदेश जारी किया गया है, जिससे वकीलों के पेशे पर सीधा असर पड़ने वाला है। अधिवक्ताओं ने इस आदेश को अपने अस्तित्व पर सीधा प्रहार करार दिया है और इसे वापस लेने की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन छेड़ दिया है।
वकीलों का कहना है कि इस कदम से 90% से अधिक अधिवक्ताओं के साथ-साथ उनके सहायक, लिपिक, कातिब और अन्य कर्मचारियों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ जाएगी। अधिवक्ता समाज को केवल न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों के कानूनी मार्गदर्शक के रूप में भी देखा जाता है। यदि इस डिजिटल व्यवस्था को लागू किया जाता है, तो न केवल वकील बेरोजगार होंगे, बल्कि आम जनता भी भारी संकट में फंस जाएगी। कई लोग कानूनी प्रक्रियाओं और डिजिटल तकनीकों से अनभिज्ञ होते हैं, जिससे वे आसानी से साइबर अपराधियों, भू-माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों के जाल में फंस सकते हैं।
अधिवक्ताओं का मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और अन्य डिजिटल माध्यमों का दुरुपयोग कर फर्जी उपस्थिति दर्ज कराकर बड़े पैमाने पर भूमि हड़पने की साजिशें रची जा सकती हैं। इससे भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी और गैर-सरकारी संपत्तियों का दुरुपयोग संभव होगा। खासतौर पर कम पढ़े-लिखे और तकनीकी रूप से कमजोर नागरिकों को इसका बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा, क्योंकि वे डिजिटल धोखाधड़ी को पकड़ने में असमर्थ होंगे। अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि सरकार की यह योजना कानूनी प्रक्रिया को कमजोर करेगी और रजिस्ट्री घोटालों को बढ़ावा देने का माध्यम बनेगी।
इस फैसले के विरोध में काशीपुर बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं ने हड़ताल कर दी और न्यायिक कार्यों का बहिष्कार किया। इस दौरान अध्यक्ष अवधेश कुमार चौबे, उपाध्यक्ष अनूप शर्मा, सचिव नृपेंद्र कुमार चौधरी, उपसचिव सूरज कुमार, कोषाध्यक्ष सौरभ शर्मा, ऑडिटर हिमांशु बिश्नोई, पुस्तकालय अध्यक्ष सतपाल सिंह बल, प्रेस प्रवक्ता दुष्यंत चौहान, महिला उपाध्यक्ष रश्मि पाल, तहसील उपाध्यक्ष विजय सिंह, कार्यकारी सदस्य कामिनी श्रीवास्तव, नरेश कुमार पाल, अर्पित कुमार सौदा, अमित कुमार गुप्ता, अमृत पाल सिंह, अमितेश सिसोदिया, अविनाश कुमार, नरदेव सिंह सैनी सहित कई वरिष्ठ अधिवक्तागण मौजूद रहे।
बार एसोसिएशन ने सरकार को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि यदि ऑनलाइन रजिस्ट्री व्यवस्था को तुरंत वापस नहीं लिया गया, तो विरोध प्रदर्शन को राज्यव्यापी आंदोलन में बदला जाएगा। अधिवक्ताओं का मानना है कि यह कदम कानूनी पेशे को नष्ट करने और आम जनता को ठगों के हवाले करने के समान है। इस आदेश के लागू होने से वकीलों के साथ-साथ जनता का भी शोषण होगा, क्योंकि डिजिटल माध्यमों के जरिये बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा होने की आशंका है।
विरोध प्रदर्शन में बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड के सदस्य हरि सिंह नेगी, मनोज जोशी, सनत कुमार पैगिया, पूर्व अध्यक्ष उमेश जोशी, आनंद रस्तोगी, प्रदीप सक्सेना, राजीव प्रजापति, सुनील कुमार, विकास कुमार, राकेश प्रजापति, रोहित अरोड़ा, उस्मान मालिक, अनिल कुमार, नीरज खुराना, नितिन यादव, जितेंद्र कुमार, लवी ढिल्लों, प्रभजोत कालरा, पवन कुमार, शादाब हुसैन, संजय भारद्वाज, मनोज चंद्र जोशी, विकास बुढ़ाकोटी, सुधीर चौहान, मोहम्मद फुरकान, सुमित राठी, ऐनुल हक़, राजेंद्र सक्सेना, राजेंद्र सैनी, ओमपाल सिंह, अशोक कुमार, अज़हरुद्दीन, पूनम मेहरोत्रा, नेहा कुरैशी, आलमगीर, नवनीश कुमार, नूर अहमद, मोहम्मद सलीम, जावेद सिद्दीकी, सलीम अहमद, अजय पाल चौहान, ज़ुबैर सिद्दीकी सहित सैकड़ों अधिवक्ता शामिल हुए।
अधिवक्ताओं ने साफ कर दिया है कि यदि सरकार ने उनकी मांगों को अनदेखा किया, तो यह आंदोलन और भी उग्र हो सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार अधिवक्ताओं की अहम भूमिका को नजरअंदाज कर रही है, जो न्यायिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं। यदि सरकार ने यह फैसला वापस नहीं लिया, तो बार एसोसिएशन राज्यभर के वकीलों को एकजुट कर मुख्यमंत्री आवास और विधानसभा का घेराव करने तक का कदम उठा सकता है।
इस हड़ताल ने सरकार पर जबरदस्त दबाव बना दिया है, क्योंकि अधिवक्ताओं के बिना न्यायिक प्रक्रिया ठप हो गई है। आम जनता भी इस फैसले के दुष्परिणामों को लेकर चिंतित नजर आ रही है। सरकार के इस कदम के खिलाफ देशभर के वकीलों से समर्थन जुटाने की रणनीति भी बनाई जा रही है, जिससे यह विरोध जल्द ही एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।
इस ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन ने सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तराखंड सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है—क्या वह वकीलों के विरोध को दरकिनार कर इस डिजिटल व्यवस्था को लागू करेगी, या अधिवक्ताओं की मांग को मानकर ऑनलाइन रजिस्ट्री को वापस ले लेगी?