नई दिल्ली(स्वाती गुप्ता)। दिल्ली की सत्ता में पिछले दस वर्षों से काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार को इस विधानसभा चुनाव में जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है और भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंप दी है। दिल्ली में अब डबल इंजन सरकार बनने जा रही है, जिससे उम्मीद की जा रही है कि राजधानी की परिवहन व्यवस्था को मजबूती मिलेगी। खासकर, बस सेवा जो दिल्ली की लाइफलाइन कही जाती है, उसमें सुधार की बड़ी चुनौती सामने खड़ी है। राजधानी की सड़कों पर चलने वाली 7400 बसों में प्रतिदिन 41 लाख से अधिक यात्री सफर करते हैं, लेकिन इन बसों की स्थिति चिंताजनक है। हर रोज सैकड़ों बसें चलते-चलते खराब हो जाती हैं, जिससे यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली में बसों की कमी के कारण लोगों को घंटों तक बस स्टैंड पर इंतजार करना पड़ता है। वहीं, बसों को चला रहे कर्मचारी भी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। नई सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि वह इस परिवहन संकट को कैसे हल करेगी। दिल्ली की बसों की खस्ताहाल स्थिति इस बार विधानसभा चुनाव में एक अहम मुद्दा बनी थी।
आम आदमी पार्टी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, रोजाना 41 लाख लोग दिल्ली की बसों में सफर करते हैं, जिनमें महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त है। दिल्ली की सड़कों पर फिलहाल 7400 बसें दौड़ रही हैं, जिनमें 2000 इलेक्ट्रिक बसें शामिल हैं, जबकि बाकी सीएनजी बसें हैं। दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (डीटीसी) और दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टीमॉडल ट्रांजिट सिस्टम (डिम्ट्स) के अधीन चल रही सीएनजी बसों की हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। इन्हें विशेष अनुमति के आधार पर चलाया जा रहा है, लेकिन ये बसें यात्रियों और सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों के लिए खतरा बनी हुई हैं। आए दिन कई बसें बीच रास्ते में खराब हो जाती हैं, जिससे यात्री परेशान होते हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान यात्रियों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था और सरकार की परिवहन व्यवस्था पर अपनी नाराजगी जताई थी।

आम आदमी पार्टी ने 2025 के अंत तक दिल्ली में 10,480 बसें लाने का लक्ष्य रखा था, जिनमें 80 प्रतिशत इलेक्ट्रिक बसें होनी थीं। हालांकि, अभी तक सिर्फ 2000 इलेक्ट्रिक बसें आई हैं। अब जब भाजपा की सरकार बनने जा रही है, तो उसके सामने अगले एक साल में 8000 से अधिक बसें लाने की चुनौती होगी। यह काम आसान नहीं होगा, क्योंकि इसके लिए भारी वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी। आम आदमी पार्टी की सरकार ने इलेक्ट्रिक बसों को खरीदने के बजाय अनुबंध के तहत कंपनियों को संचालन की जिम्मेदारी दी थी। कंपनियों को प्रति किलोमीटर के आधार पर भुगतान किया जाता था और वे अपने खुद के ड्राइवर रखती थीं। इस मॉडल की वजह से डीटीसी में संविदा चालकों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगा था, जिसके चलते कर्मचारी लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे। अब भाजपा की सरकार बनने से कर्मचारियों को उम्मीद जगी है कि डीटीसी का निजीकरण नहीं होगा और उनकी नौकरियां बची रहेंगी।
डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन वर्ष 2018 से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रही है। चुनाव से पहले यूनियन ने बसों का चक्का जाम किया था, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री आतिशी ने कर्मचारियों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं का समाधान निकालने का आश्वासन दिया था। हालांकि, कई मांगें सिर्फ फाइलों तक ही सीमित रह गईं। डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के अध्यक्ष ललित चौधरी और अन्य पदाधिकारियों ने आम आदमी पार्टी नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी, लेकिन जब चुनाव नतीजे आए, तो यही पदाधिकारी भाजपा की जीत पर झंडा लहराते दिखे। ललित चौधरी का कहना है कि उनकी यूनियन भाजपा नेता कपिल मिश्रा के संपर्क में थी। कपिल मिश्रा और सांसद मनोज तिवारी ने भरोसा दिलाया था कि भाजपा की सरकार बनने पर यूनियन की सभी मांगें पूरी की जाएंगी। अब कर्मचारियों को उम्मीद है कि भाजपा सरकार डीटीसी में सुधार लाएगी, संविदा कर्मचारियों की नौकरियां सुरक्षित होंगी और नई बसें भी आएंगी।
आम आदमी पार्टी सरकार में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बसों में मार्शल तैनात किए गए थे। दिसंबर 2023 में 10,000 से अधिक बस मार्शलों को नौकरी से हटा दिया गया था, जिसके बाद वे लगातार आंदोलन कर रहे थे। भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच इस मुद्दे को लेकर खूब टकराव हुआ था। आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार बस मार्शलों को दोबारा नौकरी पर रखने की अनुमति नहीं दे रही, जबकि भाजपा ने इसे केजरीवाल सरकार की विफलता बताया। इस विवाद के कारण बस मार्शल भी आम आदमी पार्टी के खिलाफ हो गए और कई ने विधानसभा चुनाव में खुलकर विरोध किया। अब जब भाजपा सत्ता में आ रही है, तो बस मार्शलों को उम्मीद है कि उनकी नौकरी बहाल होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा सरकार इन उम्मीदों पर कितना खरी उतरती है।
आम आदमी पार्टी सरकार में परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत थे। सितंबर 2024 में वह आम आदमी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्हें दिल्ली के परिवहन विभाग की पूरी जानकारी है, जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि भाजपा उन्हें दोबारा परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप सकती है। अगर ऐसा होता है, तो कैलाश गहलोत को डीटीसी सुधार और नई बसों की व्यवस्था के लिए बड़े फैसले लेने होंगे।
दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को लेकर आम आदमी पार्टी लगातार उपराज्यपाल पर आरोप लगाती रही है। उसका कहना था कि उपराज्यपाल भाजपा के थे, जिसके कारण वह दिल्ली में अच्छे काम नहीं कर पा रही थी। अब जबकि दिल्ली और केंद्र, दोनों जगह भाजपा की सरकार है, तो यह देखना होगा कि क्या डबल इंजन की सरकार दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में तेजी से सुधार कर पाती है या नहीं।