काशीपुर(एस पी न्यूज़)। प्रदेश सरकार द्वारा बैनामा, वसीयत, विवाह आदि के पंजीकरण को ऑनलाइन किए जाने के आदेश के खिलाफ अधिवक्ताओं में गहरा असंतोष है। इस आदेश के विरोध में प्रदेशभर की बार एसोसिएशनें हड़ताल का आयोजन कर रही हैं। इसी क्रम में काशीपुर बार एसोसिएशन ने भी 14 फरवरी 2025 को न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया है। एसोसिएशन की कार्यकारिणी द्वारा इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया है।
बार एसोसिएशन के अनुसार, सरकार का यह निर्णय अधिवक्ताओं के व्यवसाय को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। वकीलों के अलावा उनके साथ कार्य करने वाले लिपिक, कातिब और अन्य कर्मचारियों की भी रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो जाएगा। अधिवक्ताओं का कहना है कि इस निर्णय से लगभग 90% से अधिक वकील और उनके सहयोगी बेरोजगार हो सकते हैं। वकीलों का मानना है कि दस्तावेजों के पंजीकरण की प्रक्रिया को ऑनलाइन कर देने से न केवल उनके व्यवसाय को नुकसान होगा, बल्कि आम जनता के लिए भी यह प्रणाली घातक सिद्ध हो सकती है। खासकर वे लोग जो कानून की जटिलताओं और डिजिटल प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं, वे साइबर ठगों के शिकार हो सकते हैं।
बार एसोसिएशन का कहना है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रणाली आम जनता के हित में नहीं है। इस प्रणाली से लोग साइबर ठगों और समाज में सक्रिय आपराधिक तत्वों के झांसे में आ सकते हैं। डिजिटल माध्यम से फर्जी पहचान और दस्तावेज तैयार कर भू-माफिया सरकारी और गैर-सरकारी संपत्तियों पर कब्जा कर सकते हैं। कम पढ़े-लिखे या तकनीकी रूप से कमजोर लोगों के लिए यह व्यवस्था अत्यधिक जटिल साबित हो सकती है। बार एसोसिएशन का तर्क है कि भूमि, विवाह, वसीयत और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों के पंजीकरण में कानूनी विशेषज्ञता आवश्यक होती है, जो केवल अनुभवी अधिवक्ता ही प्रदान कर सकते हैं।

अधिवक्ताओं का कहना है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रणाली के माध्यम से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का दुरुपयोग किया जा सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल कर फर्जी उपस्थिति दिखाकर कई लोगों की संपत्तियों को हड़पने की घटनाएं हो सकती हैं। भू-माफिया, साइबर अपराधी और अन्य असामाजिक तत्व मिलीभगत कर सरकारी और निजी संपत्तियों पर अवैध कब्जा कर सकते हैं। बार एसोसिएशन के अनुसार, यदि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन व्यवस्था लागू हुई तो कई कानूनी विसंगतियां उत्पन्न हो सकती हैं। भूमि से जुड़े फर्जीवाड़े में वृद्धि होने की आशंका है, जिससे न केवल आम जनता बल्कि सरकार को भी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है।
प्रदेशभर में इस आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है। विभिन्न बार एसोसिएशनों द्वारा इसे लेकर रोष व्यक्त किया जा रहा है। काशीपुर बार एसोसिएशन ने भी इस आदेश के विरोध में 14 फरवरी 2025 को न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया है। बार एसोसिएशन ने अधिवक्ताओं से अपील की है कि वे इस निर्णय के दुष्प्रभावों को लेकर अपने अनुभव, सुझाव और विचार लिखित रूप में प्रदान करें। इसके लिए अधिवक्ताओं से कहा गया है कि वे अपने हस्ताक्षर और सील सहित लिखित सुझाव 14 फरवरी 2025 को दोपहर 3 बजे तक काशीपुर बार एसोसिएशन के कार्यालय में जमा करें।
बार एसोसिएशन का कहना है कि सभी अधिवक्ताओं और संबंधित कर्मचारियों से प्राप्त सुझावों और आपत्तियों को संकलित कर सरकार को ज्ञापन सौंपा जाएगा। ज्ञापन में सरकार से मांग की जाएगी कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को वापस लिया जाए और वर्तमान प्रणाली को यथावत रखा जाए, ताकि अधिवक्ताओं के साथ-साथ आम जनता के हितों की रक्षा हो सके। बार एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। अधिवक्ताओं का कहना है कि वे अपनी कानूनी प्रक्रिया और रोजगार की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
इस फैसले के खिलाफ वकीलों में गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। अधिवक्ताओं के साथ-साथ कातिब, लिपिक और अन्य न्यायिक सहयोगी भी इस निर्णय से नाखुश हैं। उनका कहना है कि ऑनलाइन पंजीकरण की जटिल प्रक्रिया के कारण न केवल उनकी रोजी-रोटी पर संकट आएगा, बल्कि आम लोगों के लिए भी कानूनी प्रक्रियाएं और कठिन हो जाएंगी। काशीपुर बार एसोसिएशन ने सभी अधिवक्ताओं से एकजुट होकर इस निर्णय का विरोध करने की अपील की है। एसोसिएशन ने कहा कि यदि समय रहते सरकार ने इस आदेश को वापस नहीं लिया तो अधिवक्ता सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होंगे।
सरकार के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन आदेश के खिलाफ वकीलों का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह फैसला केवल उनके व्यवसाय के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी घातक साबित होगा। साइबर अपराध, फर्जी दस्तावेज और भू-माफियाओं के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अधिवक्ताओं ने सरकार से इस निर्णय को तत्काल वापस लेने की मांग की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस विरोध को लेकर क्या रुख अपनाती है। यदि सरकार इस आदेश को वापस नहीं लेती है, तो अधिवक्ताओं का आंदोलन और भी व्यापक हो सकता है। 14 फरवरी को होने वाली हड़ताल के बाद इस मामले में आगे की रणनीति तय की जाएगी।