रामनगर(एस पी न्यूज़)। तराई पश्चिमी वन प्रभाग के बैलपड़ाव रेंज के छोई क्षेत्र में प्रस्तावित नए पर्यटन जोन के खिलाफ रविवार को स्थानीय ग्रामीणों ने महापंचायत का आयोजन किया। इस महापंचायत में ग्रामीणों ने यह स्पष्ट किया कि वे इस प्रस्तावित पर्यटन जोन के निर्माण का कड़ा विरोध करते हैं। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में जिप्सियों और पर्यटकों के आगमन से वन्य जीवों के प्राकृतिक वास स्थलों पर मानवीय हस्तक्षेप बढ़ेगा, जिससे ये जानवर आबादी की ओर रुख करेंगे। इस प्रकार, मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जो न केवल वन्य जीवन के लिए खतरे का कारण बनेगी, बल्कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा के लिए भी गंभीर परिणाम ला सकती है। ग्रामीणों का मानना है कि पर्यटन के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवों की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यदि यह प्रस्तावित पर्यटन जोन शुरू होता है, तो इसके स्थानीय जीवन और वन्यजीवों पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे, वे बहुत खतरनाक हो सकते हैं। इस मुद्दे को लेकर ग्रामीणों ने प्रशासन से सख्त कदम उठाने की अपील की है और चेतावनी दी है कि यदि यह प्रस्ताव वापस नहीं लिया गया तो वे उग्र आंदोलन करेंगे और उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे।
रामनगर वन विभाग के तहत आने वाली बैलपड़ाव रेंज में चांदनी नामक नया पर्यटन जोन बनाने का प्रस्ताव है। यह पर्यटन जोन जिप्सियों के माध्यम से चांदनी और छोई क्षेत्र के ग्रामीण इलाके से होकर गुजरेगा। हालांकि, जैसे ही यह प्रस्ताव सामने आया, स्थानीय ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। उनके अनुसार, जिप्सियों और पर्यटकों के बढ़ते आगमन के कारण, वन्य जीवों को अपने प्राकृतिक निवास स्थान से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इन वन्य जीवों का रुख अब गांवों की ओर होगा, जो ग्रामीणों के लिए बड़ी समस्या का कारण बनेगा। गांववाले पहले ही इस समस्या का सामना कर रहे हैं, क्योंकि पिछले कुछ समय से जंगली जानवरों ने गांवों में घुसकर मवेशियों और पालतू जानवरों को नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा, शाम होते ही इन हिंसक जानवरों की आवाजें सुनाई देने लगती हैं, जिससे स्थानीय लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं। अब गांववाले जंगल में जाने से भी डरने लगे हैं, क्योंकि इन जंगली जानवरों का व्यवहार आक्रामक हो सकता है। उनका मानना है कि यदि यह पर्यटन जोन खोला गया तो यह समस्या और बढ़ जाएगी, जिससे वन्य जीवों के हमलों में इजाफा हो सकता है और इंसान और जानवरों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
महापंचायत में यह भी कहा गया कि काशीपुर में लगातार नए पर्यटन जोन खोले जा रहे हैं, जिससे वन्य जीवों का अपना स्वाभाविक वातावरण छिनता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यह क्षेत्र वन्य जीवों के लिए एक प्राकृतिक आवास है और यहां से उनका बाहर आना स्थानीय लोगों के लिए खतरे का कारण बन सकता है। इसके अलावा, पर्यटकों और जिप्सियों के आगमन से स्थानीय वातावरण पर भी दबाव पड़ेगा। इससे पहले भी कई पर्यटन जोन खोले गए हैं, लेकिन उनका असर केवल वन्य जीवों पर ही नहीं, बल्कि स्थानीय निवासियों पर भी पड़ा है। इन पर्यटन स्थलों के चलते जंगलों से बाहर आकर वन्य जीव गांवों में आ जाते हैं और मवेशियों के साथ-साथ इंसान तक को निशाना बनाते हैं। इस मुद्दे को लेकर ग्रामीणों ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर प्रशासन ने इस पर्यटन जोन के प्रस्ताव को वापस नहीं लिया तो वे उग्र आंदोलन करेंगे और इस मामले में न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाएंगे।
इसके बावजूद, रामनगर तराई पश्चिमी के डीएफओ प्रकाश आर्य ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा और कहा कि कुछ लोग ग्रामीणों को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस पर्यटन जोन को खोलने से पहले वन विभाग द्वारा पूरे इलाके का तकनीकी सर्वे किया गया था। इस सर्वे में यह पाया गया कि यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से और केयरिंग कैपेसिटी के हिसाब से फिट है। प्रकाश आर्य का कहना था कि विभाग ने पर्यावरणीय प्रभाव का भी आकलन किया है और वह स्वीकार्य पाया गया है। इसके अलावा, वन विभाग का यह भी दावा है कि पर्यटन क्षेत्र के निर्माण से वन्य जीवन को नुकसान नहीं होगा, क्योंकि यह केवल निर्धारित रास्तों पर होगा और यहां पर्यटकों को नियंत्रित किया जाएगा। विभाग का कहना है कि वन्य जीवन की सुरक्षा को लेकर उनके पास पर्याप्त उपाय हैं और किसी भी प्रकार के खतरे से निपटने के लिए वे पूरी तरह तैयार हैं। हालांकि, इन दावों के बावजूद स्थानीय ग्रामीणों का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है।
यह विवाद इस बात का संकेत देता है कि क्या इस प्रकार के पर्यटन जोन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के बीच संतुलन बना सकते हैं। क्या यह निर्णय वन्य जीवों के अधिकारों और स्थानीय निवासियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है? यह एक गंभीर सवाल है, जिसे हर पक्ष को ध्यान में रखते हुए हल किया जाना चाहिए। इस प्रकार के निर्णयों में स्थानीय निवासियों की राय और उनके अनुभवों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है। जंगलों के भीतर पर्यटन का विस्तार विकास के प्रतीक हो सकता है, लेकिन इससे जुड़ी संवेदनाओं और खतरों को समझना और उनका समाधान करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए प्रशासन और वन विभाग को एक मजबूत और सामंजस्यपूर्ण समाधान की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि काशीपुर का विकास और वन्य जीवन दोनों की सुरक्षा की जा सके।
अब देखना होगा कि क्या प्रशासन और वन विभाग इस मुद्दे को समझते हुए कोई ठोस समाधान निकाल पाएंगे, जिससे स्थानीय निवासियों, पर्यटकों और वन्य जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।