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दिल्ली विधानसभा के 30 साल के चुनावी इतिहास में कभी भी 10 से ज्यादा महिला विधायक नहीं पहुंचीं

महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टियां कर रही हैं जोरदार घोषणाएं, बढ़ी महिला उम्मीदवारों की संख्या

नई दिल्ली(स्वाती गुप्ता)। दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ ही राजनीति में महिलाओं को लेकर हो रही घोषणाओं की लहर अब तेज़ हो गई है। आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल महिलाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नई योजनाओं की पेशकश कर रहे हैं। मुफ्त बिजली, पानी, महिला सम्मान राशि और महिला समृद्धि योजना जैसी घोषणाओं के साथ-साथ कांग्रेस ने अपनी प्यारी दीदी योजना भी लॉन्च की है। हालांकि, पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली में लगातार दो बार काबिज होने वाली आम आदमी पार्टी महिलाओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत बनाने में सबसे आगे है। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के वोटों को अपनी ओर खींचना है, ताकि दिल्ली में सत्ता पर पूरी तरह से काबिज हो सके। लेकिन, इस चुनाव में महिलाओं को टिकट देने के मामले में आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों ही 9-9 महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतार चुकी हैं। वहीं, कांग्रेस ने 70 सीटों में से सिर्फ 8 महिलाओं को ही उम्मीदवार बनाया है।

दिल्ली विधानसभा में अब तक का इतिहास यह बताता है कि महिलाओं की विधानसभा में भागीदारी हमेशा सीमित रही है। 1993 से लेकर 2020 तक हुए सभी चुनावों में कभी भी 9 से ज्यादा महिलाएं विधानसभा में नहीं पहुंच पाई हैं। दिल्ली की राजनीति में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक 9 महिला विधायक 1998 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। इस बार भी महिलाओं के लिए टिकटों की संख्या अधिकतम 9 ही रखी गई है। आम आदमी पार्टी ने जिन 9 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया है, उनमें से 6 मौजूदा महिला विधायक हैं, जबकि केवल 3 नई महिलाओं को टिकट दिया गया है। चुनाव विश्लेषक अजय पांडेय के मुताबिक, दिल्ली में अब तक हुए सभी विधानसभा चुनावों में महिला विधायकों की संख्या कभी भी 9 से अधिक नहीं हुई। उनका कहना है कि दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

दिल्ली विधानसभा में महिलाओं का चुनावी सफर 1993 से शुरू हुआ था, जब पहली बार तीन महिला विधायकों ने विधानसभा में प्रवेश किया था। इसके बाद 1998 में विधानसभा चुनाव में 9 महिला प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंची, जो अब तक का सबसे अधिक संख्या में महिलाएं थीं। इसके बाद 2003, 2008 और 2013 के चुनावों में महिला विधायकों की संख्या घटकर 7 पर आ गई, और 2015 के चुनाव में 6 महिला विधायक निर्वाचित हुईं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या फिर बढ़कर 8 हो गई थी। दिल्ली विधानसभा के अब तक के चुनावों में कुल 34 महिलाएं ही विधायक बन सकी हैं। 1993 में कांग्रेस की कृष्णा तीरथ, ताजदार बाबर और भाजपा की पूर्णिमा सेठी ने विधानसभा में प्रवेश किया था। 1998 में सबसे ज्यादा 9 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची, जिसमें कांग्रेस की शीला दीक्षित, भाजपा की सुषमा स्वराज और अन्य महिलाएं शामिल थीं।

दिल्ली में महिला मतदाताओं की संख्या भी पिछले कुछ चुनावों में लगातार बढ़ी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले केवल थोड़ा कम था। महिला मतदाताओं की संख्या 71.73 लाख है, जो कुल मतदाताओं का करीब 46 प्रतिशत है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 62.5 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया था, जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत 62.6 था। इस आंकड़े को देखते हुए सभी राजनीतिक दल महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए घोषणाएं कर रहे हैं। इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में 96 महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। दिल्ली में 70 विधानसभा सीटों के लिए कुल 699 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिसमें 603 पुरुष प्रत्याशी और 96 महिला प्रत्याशी शामिल हैं। दिल्ली में इस बार महिला उम्मीदवारों की संख्या काफी अधिक है, जिससे यह साफ़ संकेत मिलता है कि राजनीतिक दल अब महिलाओं को चुनावी राजनीति में मजबूत भूमिका देने की ओर अग्रसर हैं। महिला मतदाता अब चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं, और यही कारण है कि राजनीतिक दल उनके समर्थन को अपनी जीत के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं।

चुनाव आयोग की ओर से जारी मतदाता सूची के अनुसार दिल्ली में कुल 1,55,24,858 मतदाता हैं, जिनमें से 83,49,645 पुरुष और 71,73,952 महिलाएं हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली के चुनावों में महिला मतदाताओं की संख्या भी बहुत बड़ी है और सभी पार्टियां अब उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए गंभीर प्रयास कर रही हैं। इस चुनाव में महिला मतदाताओं के लिए विशेष योजनाओं की घोषणा की गई है, जो उनकी शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए होंगी। पार्टी हो या उम्मीदवार, सभी महिलाओें को चुनावी वादों के जरिए लुभाने में जुटे हैं। इस बार दिल्ली विधानसभा में महिला प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या यह साबित करती है कि महिलाओं का राजनीति में प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और वे अब चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाने लगी हैं।

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