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प्रयागराज महाकुंभ भगदड़ पर बवाल संतों की नाराजगी योगी के इस्तीफे की मांग तेज

महाकुंभ भगदड़ में 30 की मौत, संत समाज दो धड़ों में बंटा, धर्म संसद में योगी के इस्तीफे की मांग, सरकार पर लापरवाही के गंभीर आरोप

प्रयागराज(सुरेन्द्र कुमार)। महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ ने संतों और समाज में तीखी बहस छेड़ दी है। हादसे के बाद संत समाज दो गुटों में बंटता नजर आ रहा है। एक ओर जहां संत कैलाशानंद गिरी और अवधेशानंद गिरि ने इस घटना पर शोक व्यक्त करते हुए सरकार के समर्थन में खड़े रहने की बात कही, वहीं दूसरी ओर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस्तीफे की मांग कर दी है। इससे पहले समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव और सांसद चंद्रशेखर आजाद भी मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर चुके हैं। इस भगदड़ में अब तक 30 लोगों की मौत हो चुकी है और 60 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। हालांकि प्रशासन ने मृतकों और घायलों की संख्या को आधिकारिक रूप से देर शाम घोषित किया, जिससे लोगों में रोष फैल गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस हादसे को पहले अफवाह करार दिया और संतों व श्रद्धालुओं से संयम बनाए रखने की अपील की। उनके इस बयान के बाद संत समाज के कई प्रमुख लोगों में नाराजगी देखने को मिली। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर एक संदेश जारी कर जनता से अफवाहों पर ध्यान न देने का आग्रह किया और प्रशासन द्वारा स्थिति को नियंत्रित करने का दावा किया। लेकिन घटना के चश्मदीदों का कहना है कि हालात सरकार के दावों के उलट थे।

धर्म संसद के दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस पूरी घटना को सरकार और प्रशासन की भारी लापरवाही बताया और मुख्यमंत्री के इस्तीफे का प्रस्ताव रखा। उनका कहना था कि इस भगदड़ की भयावहता को छिपाने के लिए सरकार ने मृतकों और घायलों के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक करने में देर की। इस प्रस्ताव को धर्म संसद में मौजूद संतों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया, जिससे यह मामला और गरमा गया। संत समाज के भीतर इस मुद्दे को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि सरकार ने जनता और संतों के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने कहा कि जब भगदड़ की खबरें आई थीं, तब संत समाज ने सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी और स्नान न करने का विचार किया था, लेकिन सरकार ने इसे महज अफवाह बताकर संतों को गुमराह किया। उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि संत समाज को बिना मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किए ही शाही स्नान करना पड़ा। इससे संतों और श्रद्धालुओं को गहरा आघात पहुंचा है। शंकराचार्य ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने घटना की सच्चाई को दबाने का प्रयास किया और संतों को सही जानकारी से वंचित रखा।

शंकराचार्य का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को इस घटना का संज्ञान लेकर तत्काल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके पद से हटाना चाहिए। उनका कहना है कि प्रशासन भीड़ को संभालने में पूरी तरह विफल रहा है और अभी भी स्थिति नियंत्रण में नहीं है। लाखों श्रद्धालु महाकुंभ में आने वाले हैं, और अगर सरकार ने अपनी लापरवाही जारी रखी, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। उन्होंने प्रशासन पर केवल लीपापोती करने का आरोप लगाया और कहा कि अब संत समाज इस तरह की घटनाओं को अनदेखा नहीं करेगा। इस भगदड़ के बाद सरकार पर सवालों की बौछार हो रही है। धार्मिक समुदाय और विपक्ष लगातार सरकार की जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैं। इस बीच, प्रयागराज में हुई धर्म संसद में मृतकों की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। इस दौरान सांसदों और संतों ने प्रस्ताव पास किया कि इस घटना की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए। इसके अलावा, यह भी मांग की गई कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार एक ठोस नीति बनाए।

महाकुंभ के इस दर्दनाक हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार के दावे और जनता के अनुभवों में बड़ा अंतर देखा जा रहा है। शंकराचार्य और अन्य संतों की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर आक्रामक हो गया है और सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है। सवाल यह है कि क्या सरकार इन आरोपों से बच पाएगी, या फिर उसे इस हादसे की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी?

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