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हरिद्वार कुंभ में भी प्रयागराज जैसा हादसा, 1986 की भगदड़ में 52 श्रद्धालुओं की जान गई थी

हरिद्वार में आयोजित कुंभ और महाकुंभ के दौरान भगदड़ की घटनाओं में सैकड़ों श्रद्धालु अपनी जान गंवा चुके हैं।

हरिद्वार(सुरेन्द्र कुमार)। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले में एक बार फिर आस्था के सैलाब में दर्दनाक हादसा हो गया। मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे थे, लेकिन इसी बीच आधी रात को भगदड़ मच गई। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण स्थिति बेकाबू हो गई और कई लोग इस हादसे का शिकार हो गए। इस भगदड़ में कई श्रद्धालुओं की जान चली गई, जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए। यह पहली बार नहीं है जब कुंभ मेले में इस तरह की घटना हुई हो। इतिहास गवाह है कि हरिद्वार और प्रयागराज में लगने वाले कुंभ मेलों में पहले भी भगदड़ के कारण सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके बावजूद प्रशासन द्वारा इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

कुंभ मेले की शुरुआत से ही यह विवादों से घिरा रहा है। पहले कुंभ की शुरुआत संतों के बीच स्नान को लेकर होने वाले झगड़ों से होती थी। हर अखाड़ा सबसे पहले स्नान करना चाहता था, जिसके कारण कई बार खूनी संघर्ष हुए। समय के साथ अखाड़ा परिषद के गठन के बाद यह झगड़े तो खत्म हो गए, लेकिन कुंभ में होने वाली भगदड़ ने एक अलग ही संकट खड़ा कर दिया। बार-बार होने वाली इन घटनाओं के बावजूद, प्रशासन ने इससे कोई सबक नहीं लिया। हरिद्वार में लगने वाले कुंभ मेले का इतिहास देखें तो यह लगभग हर बार किसी न किसी हादसे का गवाह रहा है। प्रशासन पिछले कई वर्षों से इस बात पर ध्यान देने का दावा करता रहा है कि भीड़ को नियंत्रित कैसे किया जाए और आम जनता तथा संतों को अलग-अलग मार्गों से कैसे ले जाया जाए। लेकिन बावजूद इसके, इस बार भी प्रयागराज के कुंभ में भीषण भगदड़ मच गई और कई निर्दाेष लोगों की जान चली गई।

कुंभ मेले में भगदड़ की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो साल 1912 में हरिद्वार कुंभ में भगदड़ से 7 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 1954 में प्रयागराज कुंभ में हुई भगदड़ में 800 लोगों की मौत हो गई, जबकि 200 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। 1966 में हरिद्वार कुंभ में सोमवती अमावस्या के स्नान के दौरान 12 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। 1986 में भी हरिद्वार कुंभ में भगदड़ से 52 लोग मारे गए। साल 1996 में सोमवती स्नान के दौरान भगदड़ में 22 लोगों की मौत हुई। इसके बाद 2010 में हरिद्वार कुंभ में भगदड़ से 7 लोगों की जान चली गई, जबकि 11 लोग घायल हो गए। 2011 में आयोजित गायत्री कुंभ में भी भगदड़ ने 20 लोगों की जान ले ली। इस तरह की घटनाएं बार-बार होने के बावजूद भी प्रशासन ने इनसे कोई सबक नहीं लिया है।

पहले प्रशासन का पूरा ध्यान अखाड़ों के शाही स्नान और वीआईपी व्यवस्थाओं पर रहता है। आम श्रद्धालु, जो आस्था की डुबकी लगाने आते हैं, उनके लिए भीड़ नियंत्रण के इंतजाम नाकाफी साबित होते हैं। 2010 तक के कुंभ मेलों में हुई भगदड़ से कोई सबक नहीं लिया गया, जिसके कारण 2011 में भी यह घटना दोहराई गई। हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित ने बताया कि उनके पूर्वजों ने कई कुंभ देखे हैं और हर बार इसी तरह की भगदड़ और जानलेवा घटनाएं हुई हैं। उनका कहना है कि कुंभ में बार-बार हो रही इन घटनाओं से लोगों के मन में भय बैठ गया है। अब लोग धार्मिक आयोजनों में जाने से डरने लगे हैं। अगर यही हालात जारी रहे तो भविष्य में आस्था का यह सबसे बड़ा पर्व सूना पड़ सकता है।

धार्मिक आयोजनों को सफल बनाने की जिम्मेदारी प्रशासन की होती है, लेकिन कुंभ में बार-बार होने वाली भगदड़ से यह साफ है कि सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से लचर है। इस बार भी प्रशासन की विफलता के कारण ही इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। कुंभ के इतिहास में दर्ज ये काले पन्ने बार-बार यही सवाल खड़ा करते हैं कि आखिर कब तक श्रद्धालु इस तरह के हादसों का शिकार होते रहेंगे? क्या प्रशासन कुंभ की महत्ता को समझते हुए इसके आयोजन में सुरक्षा के बेहतर इंतजाम करेगा या फिर हर कुंभ इसी तरह जानलेवा साबित होता रहेगा? यह सवाल न सिर्फ कुंभ में जाने वाले श्रद्धालुओं के मन में है, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन चुका है।

हरिद्वार के प्रसिद्ध तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित का कहना है कि उनके पूर्वजों ने कई कुंभ मेले देखे हैं, और लगभग हर आयोजन में किसी न किसी बड़े हादसे ने श्रद्धालुओं की आस्था को गहरा आघात पहुंचाया है। इसके बावजूद, प्रशासन और आयोजकों ने इन घटनाओं से कोई ठोस सबक नहीं लिया। बार-बार दोहराई जाने वाली ये त्रासदियां अब श्रद्धालुओं के मन में भय भर रही हैं। लोग पहले जहां उत्साह और श्रद्धा के साथ कुंभ जैसे भव्य धार्मिक आयोजनों में शामिल होते थे, वहीं अब वे डरते हुए आते हैं। धार्मिक आयोजनों में भाग लेने वालों के मन में यह चिंता गहराने लगी है कि कहीं भीड़ का हिस्सा बनकर वे किसी अनहोनी का शिकार न हो जाएं। यदि यही स्थिति बनी रही और सुरक्षा इंतजामों में लापरवाही जारी रही, तो भविष्य में कुंभ जैसे पवित्र आयोजनों में भीड़ कम हो सकती है। लोग आस्था को बोझ मानकर ऐसे आयोजनों से दूरी बना सकते हैं, जिससे तीर्थस्थल जो कभी श्रद्धालुओं से भरे रहते थे, वे खाली नजर आने लगेंगे। यह न केवल धार्मिक परंपराओं के लिए खतरा है, बल्कि प्रशासन की विफलता का भी संकेत है।

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