प्रयागराज(सुरेन्द्र कुमार)। महाकुंभ 2025 के दौरान एक बेहद दुखद घटना सामने आई है। बीती रात मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर पवित्र स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु संगम तट पर पहुंचे थे। अचानक हुई भगदड़ में कई श्रद्धालुओं की जान चली गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। यह हादसा संगम नोज के पास हुआ, जो महाकुंभ में पवित्र स्नान के लिए सबसे प्रमुख स्थान माना जाता है। प्रशासन के अनुसार, अत्यधिक भीड़ के कारण यह घटना हुई। हजारों भक्त अपने पवित्र स्नान के लिए संगम नोज की ओर उमड़े, जिससे वहां अव्यवस्था फैल गई और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। इस हादसे के बाद प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं। आखिरकार, संगम नोज पर ही क्यों सबसे अधिक भक्त स्नान करने आते हैं और इस स्थान की धार्मिक और भौगोलिक महत्ता क्या है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए हमें इस पवित्र स्थान के महत्व को विस्तार से समझना होगा।
महाकुंभ में पवित्र स्नान का विशेष महत्व होता है और संगम नोज को सबसे उत्तम स्नान स्थल माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संगम नोज वह स्थान है जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी का संगम होता है। यह त्रिवेणी संगम हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है, जहां स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु इसी स्थान पर डुबकी लगाना चाहते हैं। विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत, आध्यात्मिक गुरुओं और धर्माचार्यों का भी मानना है कि संगम नोज पर स्नान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है। यही वजह है कि इस स्थान पर हर महाकुंभ में सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। इस बार भी लाखों श्रद्धालु इस पवित्र अवसर पर संगम नोज पर स्नान के लिए पहुंचे थे, लेकिन अत्यधिक भीड़ ने इस श्रद्धा और आस्था के माहौल को एक दर्दनाक घटना में बदल दिया।

सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि भौगोलिक दृष्टि से भी संगम नोज एक विशेष स्थान है। संगम नोज क्षेत्र में नदी के किनारे प्राकृतिक रूप से मिट्टी और रेत का एक बड़ा टीला बना हुआ है, जो एक घाट जैसा दिखता है। इसी टीले से होकर श्रद्धालु संगम में स्नान करने जाते हैं। इस वर्ष महाकुंभ को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने इस क्षेत्र को श्रद्धालुओं की संख्या को संभालने के लिए विस्तारित भी किया था। बताया जा रहा है कि संगम नोज क्षेत्र को करीब 26 हेक्टेयर तक बढ़ाया गया, जिसमें से लगभग दो हेक्टेयर भूमि केवल संगम नोज के विस्तार के लिए जोड़ी गई थी। प्रशासन का मानना था कि इस विस्तार से भक्तों की बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और संगम नोज पर श्रद्धालुओं के लिए स्नान करना आसान हो जाएगा। लेकिन मौनी अमावस्या के इस विशेष अवसर पर भक्तों की संख्या प्रशासन के अनुमान से कहीं अधिक थी, जिसके कारण स्थिति बिगड़ गई और यह दुखद घटना घटी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार महाकुंभ 2025 के पहले अमृत स्नान और पौष पूर्णिमा के स्नान पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने संगम तट पर स्नान किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के पहले स्नान पर्व पर और 14 जनवरी को पहले अमृत स्नान के दिन तीन करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। इनमें से अधिकांश श्रद्धालु संगम नोज पर ही स्नान करना चाहते थे। ऐसा अनुमान है कि स्नान के पीक टाइम में हर घंटे तीन लाख से अधिक भक्त संगम नोज पर स्नान कर रहे थे। देर रात से ही संगम नोज पर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी थी और सुबह होते-होते यह संख्या प्रशासन के अनुमान से कई गुना बढ़ गई। अत्यधिक भीड़ के कारण अफरा-तफरी मच गई और देखते ही देखते भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। कुछ लोग भीड़ के दबाव के कारण गिर पड़े और उनके ऊपर सैकड़ों लोग चढ़ गए, जिससे कई श्रद्धालुओं की जान चली गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।

इस हादसे ने महाकुंभ के सुरक्षा इंतजामों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रशासन का कहना है कि सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गए थे, लेकिन जब लाखों की संख्या में श्रद्धालु अचानक एक ही स्थान पर उमड़ पड़ते हैं तो भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। इस घटना के बाद अब प्रशासन ने संगम नोज क्षेत्र में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है और प्रवेश व निकास मार्गों को और व्यवस्थित किया गया है। इसके अलावा, ड्रोन कैमरों और सीसीटीवी के जरिए भीड़ पर नजर रखी जा रही है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इन सब इंतजामों के बावजूद इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है? क्या प्रशासन को पहले से ही अधिक कड़े कदम नहीं उठाने चाहिए थे? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में ही मिल पाएंगे, लेकिन यह घटना निश्चित रूप से श्रद्धालुओं और प्रशासन दोनों के लिए एक बड़ी चेतावनी है।