रामनगर(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लागू करने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है, और राज्य सरकार ने इसके लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं। यह कानून अब राज्य के सभी नागरिकों के लिए एक समान व्यवस्था लाने के उद्देश्य से लागू किया जाएगा, जो राज्य के भीतर और बाहर रहने वाले उत्तराखंडवासियों पर समान रूप से प्रभावी होगा। हालांकि, कुछ विशेष श्रेणियों को इससे बाहर रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 342 और अनुच्छेद 366 (25) के तहत अनुसूचित जनजातियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है। इसी तरह, जो व्यक्ति या समुदाय संविधान के भाग ग्ग्प् के तहत संरक्षित प्राधिकार और अधिकारों का पालन करते हैं, उन्हें भी इस कानून का पालन नहीं करना पड़ेगा। इस प्रकार, यूनिफॉर्म सिविल कोड से कुछ विशेष वर्गों को बाहर रखा गया है, लेकिन इसके लागू होने से समाज में एक नई कानूनी व्यवस्था का निर्माण होगा, जो समानता और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुख्य उद्देश्य विवाह जैसी व्यक्तिगत विधियों को सुव्यवस्थित करना है, ताकि समाज में सभी वर्गों के लोगों के बीच समानता और सामाजिक समरसता बढ़ सके। इस कानून के तहत विवाह के लिए एक सरल और स्पष्ट प्रक्रिया तय की गई है, जिससे नागरिकों को विवाह संबंधी कानूनी मुद्दों का हल आसानी से मिल सके। खासतौर पर विवाह के लिए यह प्रावधान किया गया है कि केवल वही व्यक्ति विवाह कर सकते हैं, जिनके पास पहले से कोई जीवित जीवनसाथी न हो, और दोनों मानसिक रूप से इस निर्णय को लेने में सक्षम हों। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि विवाह के लिए पुरुष की आयु कम से कम 21 वर्ष और महिला की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। यह नियम उन लोगों के लिए भी लागू होगा, जो निषिद्ध संबंधों से बाहर हों, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवाह की प्रक्रिया कानूनी और स्वस्थ रहे।
इसके अलावा, विवाह के अनुष्ठान को धार्मिक रीति-रिवाजों या विधिक प्रावधानों के तहत संपन्न किया जा सकता है, लेकिन इस अधिनियम के लागू होने के बाद सभी विवाहों का पंजीकरण 60 दिनों के भीतर अनिवार्य होगा। यदि विवाह 26 मार्च, 2010 के बाद हुआ है, तो उसका पंजीकरण छह महीने की अवधि में करना होगा। यह कानून विशेष रूप से उन विवाहों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनका पंजीकरण पहले नहीं हुआ था, और जो लोग पहले से पंजीकरण करवा चुके हैं, उन्हें नए सिरे से पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं होगी। इसके बजाय, उन्हें अपने पूर्व पंजीकरण की अभिस्वीकृति देनी होगी, जिससे यह साबित हो सके कि उनका विवाह कानूनी रूप से मान्य है। इस पहल का उद्देश्य विवाह के रिकार्ड को व्यवस्थित और सुरक्षित बनाना है, जिससे समाज में पारदर्शिता और कानूनी व्यवस्था स्थापित हो सके।
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि विवाह पंजीकरण को लेकर कोई भी आवेदन प्राप्त होने के बाद उप-रजिस्ट्रार को 15 दिनों के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है। यदि इस समय सीमा के भीतर कोई निर्णय नहीं लिया जाता, तो आवेदन सीधे रजिस्ट्रार के पास ट्रांसफर हो जाएगा, और यदि किसी विवाह पंजीकरण की अभिस्वीकृति में कोई विलंब होता है, तो यह खुद ही स्वीकृत माना जाएगा। इस प्रकार, पूरे पंजीकरण और अभिस्वीकृति प्रक्रिया को समयबद्ध और पारदर्शी बनाया गया है। साथ ही, यदि पंजीकरण आवेदन अस्वीकृत होता है, तो उस व्यक्ति को अपील करने का अधिकार होगा, जिससे उनकी शिकायत का समाधान किया जा सके। इस नए प्रावधान से विवाह पंजीकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता और तत्परता को बढ़ावा मिलेगा, जो उत्तराखंड में कानून के पालन को सुदृढ़ करेगा।
पंजीकरण प्रक्रिया को और भी सुगम बनाने के लिए यह विकल्प भी प्रदान किया गया है कि आवेदन ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही तरीकों से किया जा सकता है। राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटल बनाने की योजना बनाई है, ताकि नागरिक आसानी से अपनी शादी को पंजीकरण के तहत ला सकें। इस तरह के उपायों से विवाह पंजीकरण प्रक्रिया को पारदर्शी, सुविधाजनक और समयबद्ध बनाया गया है। राज्य सरकार ने इसके लिए महानिबंधक, निबंधन और उप निबंधक की नियुक्ति की है, जो विवाह पंजीकरण से संबंधित सभी रिकॉर्ड्स का ध्यान रखेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि हर विवाह कानूनी रूप से मान्य हो। इस पहल से उत्तराखंड के नागरिकों को एक नई और सरल कानूनी व्यवस्था का लाभ मिलेगा, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा होगी और समाज में समानता का संदेश जाएगा।
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने से समाज में एक नई उम्मीद जगी है, जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेंगे। इस कानून के माध्यम से जहां एक ओर कानूनी प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह समाज में सामूहिक समरसता और समानता को बढ़ावा देगा। अब विवाह पंजीकरण को लेकर कोई भ्रम नहीं रहेगा और लोग बिना किसी दुविधा के अपने विवाह को कानूनी रूप से मान्यता दिला सकेंगे। यह कानून न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।