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मोटापे की नई परिभाषा भारतीयों के लिए जोखिम और इलाज में क्रांतिकारी बदलाव

जिन व्यक्तियों के शरीर के खास हिस्सों जैसे पेट और कमर के आस-पास अधिक चर्बी जमा होती है, उन्हें स्वास्थ्य संबंधी जोखिम अधिक होते हैं।

रायपुर(डॉ0 शानू मसीह ‘सहर’)। आजकल के बदलते खानपान और जीवनशैली के कारण मोटापा एक गंभीर समस्या बन गया है, जो तेजी से बढ़ती जा रही है। अधिक वजन के कारण शरीर में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं का जन्म हो सकता है, जिससे लोग ओबेसिटी को लेकर चिंतित रहते हैं। ओबेसिटी, जिसे सामान्यत: मोटापा कहा जाता है, शरीर में अधिक फैट जमा होने के कारण होता है। इसका मुख्य कारण सही आहार की कमी और फिजिकल वर्क की कमी है। ओबेसिटी का जोखिम अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है, और इसके कारण डायबिटीज, हृदय रोग जैसे गंभीर रोगों का खतरा बढ़ सकता है। आमतौर पर ओबेसिटी का माप बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के द्वारा किया जाता है, जब किसी व्यक्ति का बीएमआई 30 से अधिक होता है तो उसे मोटा माना जाता है। हालांकि, अब ओबेसिटी को लेकर नए शोध सामने आ रहे हैं, जो इसे स्टेज के हिसाब से बांटने की बात करते हैं।

अभी हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल “The Lancet Diabetes & Endocrinology” में एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ है, जिसमें ओबेसिटी को दो स्टेजों में बांटा गया है। पहला स्टेज है “इन्नोसेंट ओबेसिटी” यानी मासूम मोटापा, और दूसरा है “ओबेसिटी विद कंसिक्वेंसेस” यानी मोटापा और उसके परिणाम। अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि अब मोटापा सिर्फ बीएमआई से मापने का तरीका नहीं रह गया है। इसमें अब पेट के आसपास जमा चर्बी को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस नए दृष्टिकोण से ओबेसिटी के सही इलाज का रास्ता साफ होगा और समय पर किसी भी गंभीर बीमारी का पता लगाकर उसका इलाज किया जा सकेगा। यह अध्ययन भारतीयों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीयों में पेट के मोटापे का खतरा अधिक है, जो अन्य देशों की तुलना में ज्यादा हानिकारक हो सकता है।

नए शोध के अनुसार, मोटापे को अब दो श्रेणियों में बांटा गया है – क्लीनिकल ओबेसिटी और प्री-क्लीनिकल ओबेसिटी। क्लीनिकल ओबेसिटी वह स्थिति है, जब मोटापे के कारण शरीर के किसी अंग की कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जबकि प्री-क्लीनिकल ओबेसिटी वह स्थिति है, जब किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर खतरा तो बढ़ रहा है, लेकिन बीमारी का कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखता। इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि मोटापे का सही पता लगाने के लिए बीएमआई के अलावा पेट की चर्बी और शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैट की स्थिति का भी माप लेना जरूरी है। इसके लिए बायोइलेक्ट्रिकल इम्पीडेंस या डीएक्सए स्कैन जैसी मशीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आमतौर पर क्लिनिकों में उपलब्ध नहीं होतीं। इस अध्ययन से मोटापे की पहचान में और अधिक सटीकता आएगी, जिससे समय पर इलाज संभव हो सकेगा।

भारत में मोटापे की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता महसूस की गई है। पहले के दिशा-निर्देशों के अनुसार, मोटापा केवल बीएमआई के आधार पर मापा जाता था, लेकिन अब शोध से यह बात सामने आई है कि केवल बीएमआई से मोटापे का सही आंकलन नहीं किया जा सकता, खासकर भारतीयों के लिए। भारतीयों में पेट की चर्बी का स्तर अधिक होता है, जो स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाने का कारण बन सकता है। इसके अलावा, पेट के आस-पास जमा चर्बी इंसुलिन प्रतिरोध जैसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है, जो अन्य बीमारियों के जोखिम को बढ़ाती है। इस नये शोध के बाद मोटापे को केवल शरीर के वजन से मापने की बजाय पेट की चर्बी और शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैट की स्थिति को भी महत्व दिया जा रहा है। इस बदलाव से मोटापे के कारण होने वाली बीमारियों के बारे में और अधिक सटीक जानकारी मिलेगी और सही समय पर इलाज किया जा सकेगा।

मोटापे की नई परिभाषा और दिशानिर्देशों के कारण भारतीयों में होने वाली बीमारियों का सही इलाज संभव हो सकेगा। नए दिशा-निर्देशों में अब पेट की चर्बी को भी मोटापे के माप के महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल किया गया है, क्योंकि यह इंसुलिन प्रतिरोध, मधुमेह, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का मुख्य कारण हो सकता है। इसके अलावा, अब मोटापे से संबंधित बीमारियों जैसे हृदय रोग, मधुमेह, और जोड़ों के दर्द को भी एक अहम मानक के रूप में परिभाषित किया गया है। यह न केवल मोटापे के सही माप को सुनिश्चित करेगा, बल्कि इससे भारतीयों में होने वाली बीमारियों के इलाज में भी सुधार होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इस शोध के परिणामस्वरूप मोटापे से जुड़ी समस्याओं को सही समय पर पहचाना जा सकेगा, जिससे गंभीर बीमारियों का समय रहते इलाज किया जा सकेगा।

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