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रामनगर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की सियासी रणनीतियां बन सकती हैं सिरदर्द

रामनगर(एस पी न्यूज़)। नगर पालिका चुनाव ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी चयन को लेकर जंग तेज हो गई है, और इसका असर चुनावी मैदान में दिखाई दे रहा है। भाजपा से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार बने नरेंद्र शर्मा पार्टी के लिए सिरदर्द बनते नजर आ रहे हैं। भाजपा में पुराने कार्यकर्ता होने के कारण नरेंद्र के पक्ष में भी समर्थन जुटता दिख रहा है, जो पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है। सूत्रों की मानें तो भाजपा को भीतरघात की चिंता सता रही है और पार्टी के आला नेता इस मसले को सुलझाने में जुटे हुए हैं। भाजपा को डर है कि रामनगर में पिछले नगर पालिका चुनाव जैसा नतीजा फिर से सामने न आ जाए, इसलिए पार्टी ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। कई भाजपा दिग्गज नेता और समीपवर्ती विधानसभा के विधायक प्रचार में जुटे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का दौरा भी प्रस्तावित बताया जा रहा है।

वहीं, कांग्रेस की स्थिति भी कम पेचीदा नहीं है। कांग्रेस ने इस बार ओपन सीट रखने का फैसला लिया है, जो पार्टी के भीतर गुटबाजी का कारण बन सकता है। कांग्रेस के अंदर की यह खींचतान अब स्थानीय चुनावों में भी असर दिखा रही है। रणजीत रावत और हरीश रावत के बीच मतभेद, कांग्रेस के चुनावी समीकरण को गड़बड़ कर सकते हैं। ओपन सीट के कारण कांग्रेस के मतों का ध्रुवीकरण होना तय है, जिससे दोनों गुटों के बीच वोटों का बंटवारा होगा। यह स्थिति कांग्रेस के लिए न सिर्फ चुनौतीपूर्ण, बल्कि नुकसानदेह भी साबित हो सकती है। कांग्रेस की दुविधा यह है कि उसे यह नहीं समझ आ रहा कि क्या यह कदम सही है या नहीं, क्योंकि मतदाताओं का रुझान अब दो हिस्सों में बंटने की संभावना है।

नरेंद्र शर्मा और भुवन डंगवाल जैसे भाजपा विरोधी निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं। इन दोनों का मतदाता वर्ग भाजपा के लिए परेशानियां खड़ी कर सकता है। खासकर भुवन डंगवाल, जो एक पूर्व सैनिक हैं, उनकी लोकप्रियता से भाजपा को नुकसान हो सकता है। इसके अतिरिक्त, भुवन पांडेय जैसे प्रत्याशी भी पर्वतीय क्षेत्रों से संबंधित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेंगे, जो भाजपा के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह स्थिति भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है, क्योंकि पार्टी को लगता है कि इन निर्दलीय उम्मीदवारों के आने से उसका वोट बैंक डिवाइड हो सकता है।

कांग्रेस में भी स्थिति कोई बेहतर नहीं है। मोहम्मद अकरम और भुवन पांडेय जैसे उम्मीदवारों के मैदान में आने से कांग्रेस के वोट एक साथ नहीं आ पा रहे हैं, बल्कि दोनों उम्मीदवारों के बीच विचारधारा के मतदाता बंटने का खतरा बना हुआ है। कांग्रेस के भीतर की यह फूट, चुनावी परिणामों पर भारी असर डाल सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इस चुनौती से कैसे निपटती है और क्या दोनों गुटों की खींचतान कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित होती है।

फिलहाल, रामनगर नगर पालिका चुनाव के परिणामों का अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों की रणनीतियों में कहीं न कहीं कमजोरियां हैं। भाजपा को अपने भीतरघात को संभालने और निर्दलीय उम्मीदवारों से निपटने की आवश्यकता है, जबकि कांग्रेस को अपनी गुटबाजी को सुलझाने और ओपन सीट के फैसले के प्रभाव को समझने की जरूरत है। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि क्या भाजपा का प्रत्याशी चयन गलत था या कांग्रेस का ओपन सीट रखना भारी पड़ा।

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