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डिजिटल जंग में उतरे प्रत्याशी, एआई से चमकाई चुनावी किस्मत

रामनगर(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड में निकाय चुनाव का माहौल पूरी तरह बदल चुका है। पहले जहां प्रचार का तरीका पोस्टर-बैनर और घर-घर दस्तक तक सीमित था, वहीं अब चुनावी रणनीति में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डिजिटल तकनीक ने क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है। प्रत्याशी डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर अपने प्रचार को न केवल प्रभावी बना रहे हैं, बल्कि खर्च को भी काफी हद तक नियंत्रित कर रहे हैं। सोशल मीडिया, व्हाट्सएप कॉल्स और डिजिटल कैंपेन के जरिए प्रत्याशी सीधे वोटरों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं।

लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तर्ज पर अब निकाय चुनावों में भी प्राइवेट एजेंसियों का दबदबा देखा जा रहा है। ये एजेंसियां प्रत्याशियों के प्रचार अभियान की पूरी जिम्मेदारी संभाल रही हैं। देहरादून, हल्द्वानी और उत्तरकाशी जैसे शहरों में विभिन्न एजेंसियां प्रत्याशियों की छवि निर्माण से लेकर ग्राउंड लेवल प्रचार तक का कार्य कर रही हैं। मेयर से लेकर पार्षद पद के प्रत्याशी तक डिजिटल मैनेजमेंट के लिए इन एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं। इस वजह से शहरों में पारंपरिक बैनर और झंडों की जगह डिजिटल प्रचार ने ले ली है। प्रत्याशी वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर ही जनता से संपर्क साध रहे हैं।

इन एजेंसियों द्वारा प्रत्याशियों की प्रोफाइल को आकर्षक और प्रभावी बनाने का कार्य किया जा रहा है। उनके अब तक किए गए कार्यों, पारिवारिक पृष्ठभूमि और भविष्य की योजनाओं को हाईलाइट किया जाता है। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर दिन में कई बार प्रचार सामग्री साझा की जाती है। व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर लगातार वीडियो और संदेश भेजे जाते हैं, जिससे प्रत्याशी सीधे वोटरों के साथ जुड़े रहते हैं। साथ ही, एजेंसियां ऑडियो कॉल्स और मैसेजेस के जरिए मतदाताओं से सीधा संवाद स्थापित कर रही हैं। एक प्रत्याशी के साथ अब सिर्फ प्रचारक ही नहीं, बल्कि फोटोग्राफर, स्क्रिप्ट राइटर और रणनीतिकार भी जुड़े होते हैं। ये सभी मिलकर प्रत्याशी की छवि को निखारने का कार्य करते हैं। एजेंसियां जनता का मूड जानने के लिए भी फीडबैक सिस्टम का उपयोग कर रही हैं, ताकि प्रत्याशी जनता की जरूरतों और समस्याओं से अवगत हो सके। इससे प्रत्याशी अपने भाषणों और जनसभाओं में सीधे उन मुद्दों पर बात कर सकें, जो जनता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

प्रचार एजेंसियां मतदान के दिन भी प्रत्याशियों की मदद करती हैं। ये एजेंसियां डिजिटल वोटर स्लिप तैयार कर सीधे वोटरों तक पहुंचाती हैं, जिससे वोटरों को अपने नाम और मतदान केंद्र की जानकारी आसानी से मिल सके। साथ ही, ये एजेंसियां क्षेत्र में जाकर स्थानीय समस्याओं का विश्लेषण करती हैं और उनके समाधान पर आधारित स्क्रिप्ट तैयार कर प्रत्याशी को देती हैं। इससे प्रत्याशी जनसभाओं में प्रभावी ढंग से जनता से जुड़ पाते हैं।

डिजिटल प्रचार की इस रणनीति ने चुनावी माहौल को पूरी तरह बदल दिया है। अब मतदाता सिर्फ रैलियों और सभाओं में ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी प्रत्याशियों की योजनाओं और विचारों से रूबरू हो रहे हैं। इससे न केवल प्रचार का खर्च कम हुआ है बल्कि प्रत्याशी कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचा पा रहे हैं। उत्तराखंड के निकाय चुनाव में डिजिटल प्रचार की यह नई लहर चुनावी रणनीति में एक बड़ा बदलाव साबित हो रही है।

आने वाले समय में डिजिटल प्रचार का यह प्रभाव और भी गहराएगा, जिससे चुनावी रणनीतियों में और अधिक नवाचार देखने को मिलेंगे। प्रत्याशी और पार्टियां अब तकनीक का भरपूर उपयोग कर चुनावी मैदान में मजबूती से उतर रही हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में चुनावी प्रचार का तरीका पूरी तरह से डिजिटल हो जाएगा, जहां तकनीक ही जीत का सबसे बड़ा हथियार होगी।

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