रामनगर(एस पी न्यूज़)। रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया को ऊर्जा संकट की गहराईयों में धकेल दिया, जिसका असर भारत के पहाड़ी राज्य उत्तराखंड पर भी साफ दिखाई दिया। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गैस निर्यातक देश रूस पर लगे प्रतिबंधों और यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति प्रभावित हुई। भारत भी इस ऊर्जा संकट से अछूता नहीं रहा। खासतौर पर उत्तराखंड, जहां गैस आधारित बिजली संयंत्र पूरी तरह ठप पड़ गए थे, वहां हालात और भी गंभीर हो गए। ऊर्जा की कमी ने राज्य की अर्थव्यवस्था और आम जनता दोनों पर गहरा असर डाला। उत्तराखंड में निजी क्षेत्र के दो गैस आधारित बिजली संयंत्र काशीपुर में स्थित हैं। इनमें से एक संयंत्र 400 मेगावाट और दूसरा 225 मेगावाट क्षमता का है। युद्ध के चलते रूस से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बाधित हो गई, जिससे इन संयंत्रों का संचालन पूरी तरह से बंद हो गया। इससे प्रदेश में 500 से 600 मेगावाट बिजली की कमी हो गई, जिसने राज्य में ऊर्जा संकट को और बढ़ा दिया। इस संकट का असर औद्योगिक विकास, घरेलू आपूर्ति और विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ा, जिससे राज्य की आर्थिक गतिविधियाँ धीमी पड़ गईं।
भारत सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि अब प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में सुधार हुआ है और प्रभावित संयंत्रों ने फिर से उत्पादन शुरू कर दिया है। इससे उत्तराखंड में बिजली की स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। भारत सरकार ने अन्य देशों जैसे कतर, ऑस्ट्रेलिया और नार्वे से गैस की आपूर्ति बढ़ाने के लिए समझौते किए, जिससे आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत किया गया। उत्तराखंड में सर्दियों के मौसम में बिजली की मांग चरम पर होती है। पिछले दो वर्षों से राज्य को भारी दबाव का सामना करना पड़ा, लेकिन इस बार स्थिति बेहतर है। ऊर्जा सचिव ने बताया कि इस बार सर्दी में बिजली की उपलब्धता संतोषजनक रही है और मांग के अनुसार आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है। इसका मुख्य कारण प्राकृतिक गैस की बेहतर आपूर्ति और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल रहा।
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते केवल गैस आधारित संयंत्र ही नहीं, बल्कि थर्मल पावर से मिलने वाली बिजली भी प्रभावित हुई। राज्य सरकार को बिजली की मांग पूरी करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हालांकि, भारत सरकार के प्रयासों से अब प्राकृतिक गैस की आपूर्ति सुधरी है, जिससे बिजली उत्पादन में वृद्धि हो रही है। सरकार ने कोयला और सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्रोतों पर भी जोर दिया, जिससे आपूर्ति में स्थिरता आई। इस ऊर्जा संकट के बीच उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) ने बिजली दरों में 12ः बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया है। इसके अलावा, राज्य की अन्य विद्युत कंपनियाँ न्श्रटछस् और पिटकुल भी दरों में बढ़ोतरी की मांग कर रही हैं। कुल मिलाकर बिजली दरों में 29ः बढ़ोतरी का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग के समक्ष रखा गया है। हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय आयोग द्वारा लिया जाएगा। इस प्रस्ताव का उद्देश्य ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करना और भविष्य में ऐसी आपात स्थितियों से निपटने के लिए फंड एकत्र करना है।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में गैस की मांग वृद्धि दर 8.5ः रही है। देश में 24.9 गीगावाट गैस आधारित बिजली संयंत्र या तो बंद होने की कगार पर थे या अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे थे। भारत अपनी गैस की जरूरतों को कतर, ऑस्ट्रेलिया और नार्वे जैसे देशों से भी पूरा करता है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखला को गंभीर रूप से प्रभावित किया। इससे ऊर्जा सेक्टर में अस्थिरता बढ़ी और लागत में इजाफा हुआ। उत्तराखंड के ऊर्जा क्षेत्र में इस संकट का प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया गया। हालांकि, भारत सरकार और राज्य सरकार की संयुक्त कोशिशों से अब स्थिति में सुधार हो रहा है। प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बेहतर होने से बिजली उत्पादन में तेजी आई है और राज्य में ऊर्जा संकट पर काबू पाया जा रहा है। इसके अलावा, सरकार ने ऊर्जा संरचना को मजबूत करने और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है। उत्तराखंड में ऊर्जा संकट ने यह साबित कर दिया कि वैश्विक घटनाओं का प्रभाव दूरदराज के इलाकों तक पहुंचता है। अब जब बिजली उत्पादन सामान्य हो रहा है, राज्य सरकार को दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी स्थितियों से बेहतर तरीके से निपटा जा सके। ऊर्जा आत्मनिर्भरता और स्थायी विकास के लिए राज्य को नवाचार और निवेश को प्राथमिकता देनी होगी।