प्रयागराज(सुरेन्द्र कुमार)। 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ मेले को लेकर साधु-संतों और श्रद्धालुओं में भारी उत्साह है, लेकिन इसी बीच पहला शाही स्नान (अमृत स्नान) को लेकर अखाड़ों के बीच जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। परंपरागत रूप से महानिर्वाणी अखाड़ा पहला शाही स्नान करता आया है, लेकिन इस बार सबसे बड़े अखाड़े जूना अखाड़ा ने इस अधिकार पर दावा ठोक दिया है। इस विवाद ने महाकुंभ के माहौल में हलचल मचा दी है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने कहा कि जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा है और समाज में इसका योगदान भी सबसे अधिक है। उनके अनुसार, पहले स्नान का अधिकार भी जूना अखाड़े को ही मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि परंपरा में बदलाव समय की मांग है। उन्होंने कहा कि जूना अखाड़ा समाज सेवा में सबसे आगे है और इसमें एससी, एसटी, ओबीसी, किन्नर और विदेशी संतों का भी प्रतिनिधित्व है। इसलिए यह अखाड़ा पहले अमृत स्नान का सबसे बड़ा दावेदार है।
दूसरी ओर, अखिल भारतीय श्री पंच निर्माेही अनी अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत राजेंद्र दास परंपरा में बदलाव के विरोध में डटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि वैष्णव अखाड़ों में शाही स्नान का क्रम वर्षों से चला आ रहा है और इसे किसी भी स्थिति में बदला नहीं जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी भी तरह का बदलाव होता है तो वह आपसी सहमति से ही होना चाहिए। महंत राजेंद्र दास का मानना है कि परंपराओं से छेड़छाड़ करना किसी के हित में नहीं है। प्रयागराज मेला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष विजय किरण आनंद ने साफ कर दिया है कि प्रशासन की ओर से पहले शाही स्नान के क्रम में कोई बदलाव प्रस्तावित नहीं है। उन्होंने बताया कि परंपराओं के अनुसार महानिर्वाणी अखाड़ा ही पहला अमृत स्नान करेगा। प्रशासन ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के तहत स्नान की पूरी तैयारी कर ली है।
महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत यमुना पुरी ने इस विवाद को साजिश करार देते हुए कहा कि जूना अखाड़ा महाकुंभ में सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा को बदलना चाहता है, जिसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि परंपरा को तोड़ने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।
अखाड़ा परिषद में यह टकराव महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद शुरू हुआ, जब परिषद दो धड़ों में बंट गई। निरंजनी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष बनने के बाद से ही विवाद गहराने लगा। वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों ने उनके चुनाव का बहिष्कार किया और हरिद्वार में अपनी बैठक कर अलग नेतृत्व चुन लिया। यह विवाद हाल ही में प्रयागराज मेला विकास प्राधिकरण की बैठक में भी हिंसा का कारण बना था, जहां संतों के बीच झड़प का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ।
1954 में आदि शंकराचार्य द्वारा गठित अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद साधु-संतों की सर्वाेच्च संस्था है, जो कुंभ मेलों में सरकार और संत समाज के बीच समन्वय का कार्य करती है। वर्तमान में 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं, जिनमें संन्यासी, वैष्णव और उदासीन अखाड़े शामिल हैं। इनमें जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, अटल, आह्वान और आनंद संन्यासी अखाड़े प्रमुख हैं। वैष्णव अखाड़ों में दिगंबर अनी, निर्वाणी अनी और निर्माेही अनी अखाड़े आते हैं, जबकि उदासीन अखाड़ों में बड़ा उदासीन, नया उदासीन और निर्मल अखाड़े शामिल हैं। महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर अखाड़ों के बीच यह जंग मेले की गरिमा पर कितना प्रभाव डालेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। परंपरा की रक्षा होगी या बदलाव की बयार में शाही स्नान का क्रम बदलेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। प्रशासन की कोशिशें शांति और समन्वय बनाए रखने की हैं, लेकिन अखाड़ों के बीच बढ़ता विवाद महाकुंभ की भव्यता पर कहीं नकारात्मक असर न डाले, यह सबसे बड़ा सवाल बन गया है। अब देखना यह है कि क्या अखाड़ों के बीच कोई सहमति बनती है या परंपरा और बदलाव की यह टकराहट महाकुंभ के शाही स्नान पर भारी पड़ती है। श्रद्धालु भी इस मुद्दे पर नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि कुंभ का पावन स्नान उनके लिए आस्था का विषय है। आने वाले दिनों में अखाड़ों की बैठकें और प्रशासन की रणनीति इस विवाद को किस दिशा में मोड़ती हैं, यह देखने वाली बात होगी।