नई दिल्ली(स्वाती गुप्ता)। राजधानी के पूर्वी हिस्सों में दूषित और बदबूदार पानी की आपूर्ति को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान स्थिति इतनी गंभीर नजर आई कि मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली जल बोर्ड को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने अधिकारियों से सख्त लहजे में कहा कि जब तक न्यायालय कोई निर्देश नहीं देता, तब तक आप लोगों को खुद जाकर ज़मीनी हालात देखने की भी ज़रूरत नहीं समझ आती। न्यायालय की यह तीखी टिप्पणी तब आई जब याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि योजना विहार समेत कई कॉलोनियों में नागरिकों को ऐसा पानी पीने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो सीवर से मिश्रित है और पूरी तरह से अस्वास्थ्यकर है। अदालत ने इस बात पर भी गहरा आक्रोश जताया कि एक संवेदनशील मुद्दे पर भी जिम्मेदार विभाग की गंभीरता नदारद है।
दिल्ली के पूर्वी हिस्से के योजना विहार इलाके को लेकर जब याचिकाकर्ता द्वारा अदालत का ध्यान खींचा गया तो न्यायालय ने बिना देरी किए जल बोर्ड को निर्देश जारी किए कि पुरानी पाइपलाइनों को तत्काल बदला जाए। इसके साथ ही अदालत ने जल बोर्ड के अधिकारियों को चेतावनी भी दी कि यदि इस कार्य में लापरवाही बरती गई तो इसे हल्के में नहीं लिया जाएगा। अदालत ने कहा कि यह अत्यंत शर्मनाक है कि नागरिकों को ऐसा पानी मुहैया कराया जा रहा है जिसमें सीवर का पानी मिला हुआ है। यह सुनकर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि देश की राजधानी में लोग पीने के पानी के लिए भी तरस रहे हैं और उन्हें जहरीला पानी पीने पर मजबूर किया जा रहा है।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यह मामला अब भी पूर्वी दिल्ली तक ही सीमित रहेगा और पूरे शहर को मामले में शामिल करने की मांग अस्वीकार कर दी गई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि पूरे शहर को निगरानी में लेना शुरू किया गया तो अदालत के लिए उसकी निगरानी कर पाना व्यावहारिक रूप से असंभव होगा। इसके साथ ही अदालत ने जल बोर्ड को निर्देशित किया कि वह योजना विहार समेत प्रभावित क्षेत्रों में जाकर खुद पानी की स्थिति की जांच करे और जांच रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करे। अदालत ने जोर देकर कहा कि पीने के पानी का रंग तक बदला हुआ है और यह साफ-साफ प्रदूषण की स्थिति को दर्शाता है।
न्यायालय ने अधिकारियों से यह भी कहा कि वे कागजी कार्रवाई से आगे बढ़ें और क्षेत्र में घर-घर जाकर पानी की जांच करें। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने तल्ख लहजे में सवाल किया कि क्या अधिकारियों ने कभी खुद यह पानी देखा है जो लोग पीने को मजबूर हैं? यदि देखा होता तो आज यह मामला यहां तक न पहुंचता। अदालत ने जल बोर्ड को यह स्पष्ट रूप से निर्देशित किया कि घर-घर जाकर पानी का सैंपल लिया जाए और उसकी गुणवत्ता की जांच करके विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए, ताकि स्थिति का वास्तविक अंदाजा लगाया जा सके और शीघ्र समाधान हो सके।
उल्लेखनीय है कि यह याचिका पेशे से अधिवक्ता ध्रुव गुप्ता द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने योजना विहार, आनंद विहार, जागृति एन्क्लेव और उसके आसपास के क्षेत्रों में नागरिकों को दूषित पेयजल की आपूर्ति की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया था। याचिकाकर्ता के अनुसार इन इलाकों में सप्लाई होने वाले पानी में सीवर का पानी भी मिल रहा है, जिससे यहां के लोग गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि शिकायतों के बावजूद दिल्ली जल बोर्ड ने स्थिति को सुधारने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिससे अब लोग हाईकोर्ट की शरण में जाने को मजबूर हुए हैं।
दिल्ली जैसे शहर में, जहां तकनीकी संसाधनों की कोई कमी नहीं है, इस प्रकार की मूलभूत समस्याएं न केवल प्रशासनिक असफलता का परिचायक हैं, बल्कि जनता की सुरक्षा और स्वास्थ्य के प्रति संवेदनहीन रवैये को भी उजागर करती हैं। इस प्रकरण ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि योजनाएं और नीतियां तभी सार्थक होती हैं जब उनका क्रियान्वयन ज़मीन पर पूरी निष्ठा और जवाबदेही के साथ हो। अब देखना होगा कि दिल्ली जल बोर्ड अदालत के निर्देशों का कितना गंभीरता से पालन करता है और कब तक राजधानी की जनता को शुद्ध जल का अधिकार वापस मिलता है।