नई दिल्ली(स्वाती गुप्ता)। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सभी पार्टियाँ अपनी सियासी तैयारियों में जुटी हुई हैं। इस बीच, जाटों को लुभाने की कोशिशें तेज हो गई हैं, और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर पहली बार मुखर होकर अपनी बात रखी है। उन्होंने हाल ही में कहा था कि केंद्र सरकार की ओबीसी सूची में दिल्ली का जाट समाज शामिल नहीं है, जबकि राजस्थान के जाट समाज का नाम इस सूची में है। यह बयान दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर हो रहे आरोप-प्रत्यारोप के बीच आया है, और इसके राजनीतिक परिणाम भी हो सकते हैं।
जाट समाज के प्रभाव वाली विधानसभा सीटों पर दोनों प्रमुख दलों की नजरेंः दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से करीब 10 सीटों पर जाटों का प्रभाव देखा जाता है। इन सीटों में महरौली, नजफगढ़, बिजवासन, पालम, मटियाला, विकासपुरी, नांगलोई जाट, नरेला, रिठाला और मुंडका शामिल हैं। इन क्षेत्रों में जाट मतदाताओं की संख्या अधिक है और इनकी एकजुटता चुनाव परिणामों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेष रूप से पश्चिमी और बाहरी दिल्ली के जाट बहुल इलाकों में, जाट समुदाय की बड़ी संख्या को देखते हुए राजनीतिक दलों ने इन सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंकी हुई है।

राजनीतिक विश्लेषक नवीन गौतम ने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ तीसरी बार सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। जाटों की संख्या दिल्ली के पश्चिमी और बाहरी इलाकों में काफी अधिक है, जिनकी एकजुटता चुनाव परिणाम पर बड़ा असर डालती है। उन्होंने आगे बताया कि आम आदमी पार्टी को जाट वोटों का खींचाव पिछली बार अच्छा रहा था, खासकर 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में। लेकिन, अब लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले अच्छे परिणामों के बाद आम आदमी पार्टी को इस समुदाय के समर्थन का डर सताने लगा है।
अजय माकन ने जाटों के आरक्षण के मुद्दे पर उठाई आवाज़ः इस बार आम आदमी पार्टी के खिलाफ भाजपा ने अपनी ओर से जाट नेताओं को मैदान में उतारा है। भाजपा ने जाट नेता प्रवेश वर्मा को दिल्ली के नई दिल्ली विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल पर तंज कसते हुए कहा कि केजरीवाल ने जाटों के ओबीसी सूची में शामिल होने के मुद्दे पर गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि पिछले दस सालों में केजरीवाल ने कई बार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया, लेकिन जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने का कोई प्रस्ताव पास नहीं किया। उनका यह आरोप है कि केजरीवाल की नीयत ही सही नहीं है।

केजरीवाल की जाटों के लिए पहलः अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने जाटों के आरक्षण का मुद्दा गंभीरता से उठाया है। उन्होंने दिल्ली में जाट समाज को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि उन्होंने इस समुदाय के लिए जो भी कदम उठाए हैं, वह उनकी सरकार के पहले से किए गए विकास कार्यों से मेल खाते हैं। केजरीवाल के बयान को विभिन्न पार्टियाँ एक रणनीति के रूप में देख रही हैं, जिससे वे चुनावी मैदान में जाट वोटों का समर्थन हासिल कर सकें। आम आदमी पार्टी के लिए ये जाट बहुल सीटें हमेशा से ही अहम रही हैं। पार्टी ने इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें पिछले चुनावों में जाट नेताओं को टिकट देना और जाट समाज के मामलों को अपनी प्राथमिकता में रखना शामिल है। 2015 और 2020 के चुनावों में आम आदमी पार्टी ने इन 10 जाट बहुल सीटों में से सभी सीटें जीतने में सफलता हासिल की थी, और भाजपा को कोई भी सीट नहीं मिल पाई थी।
राज डबास जैसे जाट नेता भी मानते हैं कि जाट मतदाता लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में गए थे, और अब इस वोट बैंक को फिर से अपनी ओर खींचने के लिए आम आदमी पार्टी ने जाट आरक्षण का मुद्दा उठाया है। वहीं भाजपा भी इस मुद्दे को लेकर सख्त है और उन्हें लगता है कि केजरीवाल ने केवल वोट बैंक की राजनीति के तहत जाटों का आरक्षण मुद्दा उठाया है। इस चुनावी दौड़ में कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी सभी अपने-अपने रास्ते पर चलते हुए दिल्ली के जाट समुदाय को रिझाने में जुटे हुए हैं। इन राजनीतिक दलों के बीच जाट समाज के वोटों को लेकर तगड़ी प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है, और अब देखना यह है कि दिल्ली की जाट बहुल सीटों पर किसका पलड़ा भारी रहेगा।