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सनातन धर्म की रक्षा के लिए शंकराचार्य ने किया सनातन बोर्ड का ऐतिहासिक गठन किया

प्रयागराज(एस पी न्यूज़)। महाकुंभ से पहले ही ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सनातन धर्म की रक्षा और मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के उद्देश्य से श्सनातन संरक्षण परिषदश् और श्सनातन बोर्डश् का गठन कर सनातन धर्म के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया है। इस ऐतिहासिक फैसले ने धार्मिक और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। 12 जनवरी को परम धर्म संसद में इस बोर्ड की घोषणा की गई, जिसमें देशभर से आए श्रद्धालुओं और धर्माचार्यों ने भाग लिया। इस बोर्ड में 54 सदस्य शामिल होंगे, जिनमें 36 प्रमुख धर्माचार्य और 18 विषय विशेषज्ञ होंगे। इसका मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा, मठ-मंदिरों की स्वतंत्रता और धार्मिक परंपराओं को बनाए रखना है। बोर्ड में चारों पीठों के शंकराचार्य, जगद्गुरु रामानुजाचार्य, जगद्गुरु निंबार्काचार्य, जगद्गुरु वल्लभाचार्य और 13 अखाड़ों के प्रमुखों के साथ-साथ राम जन्मभूमि ट्रस्ट, हनुमानगढ़ी मंदिर, तिरुपति, तिरुमला धाम और उत्तराखंड के चार धामों के प्रमुखों को भी शामिल किया गया है। केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को भी इस बोर्ड में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया गया है।

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने स्पष्ट किया कि कई संस्थाएं सनातन धर्म के नाम पर कार्य करती हैं, लेकिन वे वेदों और शास्त्रों के अनुरूप नहीं चलतीं। इसलिए ऐसे संगठनों को इस परिषद में स्थान नहीं दिया गया है। सनातन धर्म की रक्षा और उसकी गरिमा को बनाए रखने के लिए एक संगठित प्रयास की आवश्यकता थी, जिसे इस बोर्ड के माध्यम से पूरा किया जाएगा। परिषद के सदस्य उनके धार्मिक योगदान और विशेषज्ञता के आधार पर चुने गए हैं, ताकि हर निर्णय संतुलित और प्रभावी हो। धर्म संसद में इस प्रस्ताव के पारित होते ही धार्मिक समुदाय में इस फैसले की व्यापक सराहना हो रही है। यह निर्णय मठ-मंदिरों की स्वतंत्रता और सनातन संस्कृति की रक्षा की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है।

27 जनवरी को महाकुंभ में होने वाली धर्म संसद में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और प्रसिद्ध कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करेंगे। हालांकि, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पहले ही सनातन बोर्ड के गठन की घोषणा कर अपनी अग्रणी भूमिका स्पष्ट कर दी है। इस कदम ने अन्य धार्मिक संगठनों में हलचल मचा दी है और अब सभी की निगाहें 27 जनवरी की धर्म संसद पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी धर्म संसद में इस पर क्या रुख अपनाया जाता है। सनातन बोर्ड का गठन निश्चित रूप से सनातन धर्म की रक्षा, मठ-मंदिरों की स्वतंत्रता और धार्मिक परंपराओं को बनाए रखने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इस निर्णय से देशभर के धार्मिक समुदायों में नई चेतना का संचार होगा और सनातन संस्कृति को सशक्त बनाने में यह बोर्ड महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

सनातन बोर्ड का गठन केवल धार्मिक उद्देश्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता को भी मजबूत करना है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का मानना है कि सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक उच्च परंपरा है, जिसमें समाज के हर वर्ग का कल्याण समाहित है। इसी सोच के तहत बोर्ड में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों को शामिल किया गया है, जो सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सुधार के लिए काम करेंगे। यह बोर्ड सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों पर आधारित नीतियों का निर्माण करेगा और सरकार से मठ-मंदिरों पर से नियंत्रण हटाने की दिशा में प्रभावी पहल करेगा। शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि सनातन धर्म की रक्षा केवल धार्मिक अनुष्ठानों से नहीं, बल्कि व्यावहारिक कदमों से होगी। यह बोर्ड उन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, जो सनातन संस्कृति और परंपराओं के समक्ष खड़ी हैं।

सनातन बोर्ड के गठन से देश में धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता को नया आयाम मिलेगा। यह बोर्ड न केवल मठ-मंदिरों की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा, बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों को दूर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह पहल समाज में नई ऊर्जा और विश्वास का संचार करेगी। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का यह कदम निश्चित ही सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की मजबूती की दिशा में एक ऐतिहासिक परिवर्तन लाएगा।

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