रामनगर(सुरेन्द्र कुमार)। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले के दौरान हुए भीषण हादसे ने धार्मिक समारोहों में बार-बार होने वाली भगदड़ की भयावह सच्चाई को उजागर कर दिया है। बीती रात त्रिवेणी संगम पर पवित्र स्नान के लिए उमड़ी लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच भगदड़ मचने से कई लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। प्रशासन द्वारा किए गए तमाम सुरक्षा इंतजामों के बावजूद इस त्रासदी को टाला नहीं जा सका।
धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। इससे पहले भी ऐसे कई हादसे हो चुके हैं जिनमें हजारों लोगों की जान जा चुकी है। जनवरी 2025 में ही आंध्र प्रदेश के तिरुमला मंदिर में भगदड़ की घटना में छह लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले जुलाई 2024 में उत्तर प्रदेश में एक प्रसिद्ध बाबा के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ में मची भगदड़ में 121 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। 2022 में वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ की वजह से 12 लोग मारे गए थे, जबकि 2013 में मध्य प्रदेश में एक धार्मिक उत्सव के दौरान 115 श्रद्धालुओं की जान चली गई थी। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक स्थलों पर भीड़ नियंत्रण की व्यवस्थाएं अभी भी अपर्याप्त हैं।

अगर ऐतिहासिक घटनाओं पर नजर डालें तो पाएंगे कि वैष्णो देवी मंदिर में 2008 में हुए भीषण हादसे में 150 से ज्यादा श्रद्धालुओं की जान चली गई थी। वहीं, कुंभ मेले जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में भी कई बार भगदड़ के भयावह दृश्य देखने को मिले हैं। 1954 में हरिद्वार में आयोजित कुंभ मेले में नदी में डुबकी लगाने के दौरान अचानक उमड़ी भीड़ के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद 1986 के हरिद्वार कुंभ में 200 श्रद्धालुओं की भगदड़ के कारण जान चली गई थी। वर्ष 2003 में नासिक कुंभ मेले में भी यही स्थिति बनी, जब भीड़ को नियंत्रित करने में प्रशासन नाकाम रहा और 39 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से अधिक श्रद्धालु घायल हो गए।
2010 के कुंभ मेले के दौरान हरिद्वार में साधुओं और श्रद्धालुओं के बीच झड़प के बाद अचानक भगदड़ मच गई थी, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी और 15 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इसी तरह, 2013 में इलाहाबाद में आयोजित कुंभ मेले के दौरान रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से कम से कम 36 लोगों की जान चली गई थी। हजारों तीर्थयात्री ट्रेनों की ओर भागने लगे, जिससे स्टेशन पर स्थिति बेकाबू हो गई और भयावह भगदड़ का रूप ले लिया।

महाराष्ट्र में भी धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं। अक्टूबर 2004 में दशहरा उत्सव के दौरान नासिक के प्रसिद्ध कलाराम मंदिर में हुए हादसे में करीब 300 श्रद्धालु मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। उस समय शाम की आरती चल रही थी, जब अचानक भीड़ में अफरातफरी मच गई और यह दर्दनाक हादसा हो गया। बिहार के पटना में भी 2012 में गांधी मैदान में दशहरा उत्सव के दौरान भगदड़ मच गई थी, जिसमें 30 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए थे।
इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि भारत में धार्मिक आयोजनों के दौरान भीड़ नियंत्रण अब भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। हर साल लाखों श्रद्धालु इन आयोजनों में भाग लेने आते हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम अक्सर नाकाफी साबित होते हैं। प्रशासन द्वारा भले ही सुरक्षा इंतजाम किए जाते हों, लेकिन भीड़ के प्रबंधन में चूक और अव्यवस्था के कारण ऐसी घटनाएं बार-बार दोहराई जाती हैं।
महाकुंभ जैसे आयोजनों में भीड़ का नियंत्रण और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना सरकार और प्रशासन के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। ऐसे आयोजनों में टेक्नोलॉजी का अधिकतम उपयोग, आपातकालीन निकासी मार्गों का विस्तार, वॉलंटियर की तैनाती और लोगों को सही दिशा-निर्देश देना अत्यंत आवश्यक है। अगर इन घटनाओं से सबक नहीं लिया गया तो भविष्य में भी इसी तरह की त्रासदियों से बचना मुश्किल होगा। धार्मिक आस्था से जुड़े इन आयोजनों में श्रद्धालुओं की सुरक्षा को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि हर कोई सुरक्षित रहकर अपनी श्रद्धा प्रकट कर सके और ऐसी भयावह घटनाओं से बचा जा सके।