सागर(एस पी न्यूज़)। बुंदेलखंड का ऐतिहासिक पटनेश्वर मंदिर एक बार फिर भगवान शिव के भक्तों के लिए आस्था और उल्लास का केंद्र बन गया है। यहां हर साल महाशिवरात्रि से पहले भगवान शिव के विवाह उत्सव की भव्य परंपरा शुरू होती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु जुटते हैं। इस वर्ष भी बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर भगवान शिव के तिलक उत्सव के साथ इस दिव्य आयोजन की शुरुआत हुई। अब महाशिवरात्रि तक पटनेश्वर मंदिर में भक्ति और उल्लास की धारा बहती रहेगी, जहां दिन-प्रतिदिन विविध धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाएंगे।
पटनेश्वर मंदिर, जो कि बुंदेलखंड की पवित्र धरोहरों में से एक है, इसकी स्थापना लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व मराठा रानी लक्ष्मीबाई खैर ने करवाई थी। इतिहास के पन्नों में दर्ज इस मंदिर का उल्लेख गजेटियर में भी मिलता है। मान्यता है कि रानी लक्ष्मीबाई खैर के सपने में स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए थे और उनके आदेशानुसार इस दिव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां हर साल भगवान शिव के विवाह की प्राचीन परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें सबसे पहले तिलक उत्सव संपन्न होता है। इस अनुष्ठान में श्रद्धालु और स्थानीय लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और इसे दिव्य आयोजन का आरंभ मानते हैं। भगवान शिव के विवाह की यह अनूठी परंपरा बुंदेलखंड के इस मंदिर में सौ वर्षों से अधिक समय से चली आ रही है। यह परंपरा बसंत पंचमी से आरंभ होकर महाशिवरात्रि तक अनवरत चलती रहती है। इस उत्सव की खासियत यह है कि भगवान शिव के विवाह की प्रत्येक रस्म का आयोजन विधिपूर्वक किया जाता है, जैसे कि किसी मानव दंपत्ति के विवाह में किया जाता है। पहले तिलक उत्सव संपन्न होने के बाद, महादेव की हल्दी और मेंहदी की रस्में भी निभाई जाती हैं। इन रस्मों में श्रद्धालु भाव-विभोर होकर भाग लेते हैं और भक्ति भाव से भगवान शिव की महिमा का गुणगान करते हैं।
रामराम महाराज की पावन तपोभूमि माने जाने वाले इस मंदिर से कई चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि ब्रिटिश शासनकाल के दौरान यहां तैनात रामराम महाराज नामक एक सैनिक भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। एक बार मंदिर के पुजारी अनुपस्थित थे, तब रामराम महाराज ने स्वयं भगवान शिव की पूजा-अर्चना की और अपने कर्तव्यों में इतने लीन हो गए कि उन्हें समय का भान ही नहीं रहा। जब वे अपनी ड्यूटी के लिए पहुंचे, तो वहां के अधिकारियों ने यह कहकर उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया कि वे तो पूरे समय ड्यूटी पर थे और उनकी हाजिरी भी दर्ज हो चुकी थी। यह चमत्कार सुनकर वे भगवान शिव की भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित हो गए और अपने जीवन को शिव साधना में लगा दिया। यह घटना आज भी भक्तों के बीच श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक बनी हुई है। बसंत पंचमी से आरंभ हुए इस भव्य आयोजन में अगले सात दिनों तक भक्तगण विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते रहेंगे। इस उत्सव के दौरान विशेष रूप से रुद्र यज्ञ, महादेव का महाअभिषेक, सहस्त्र अर्जन और भव्य महाआरती का आयोजन किया जाता है। इन धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए न केवल स्थानीय भक्तगण, बल्कि दूर-दराज से आए श्रद्धालु भी उत्साहपूर्वक मंदिर प्रांगण में एकत्र होते हैं। इस आयोजन की भव्यता अपने चरम पर तब पहुंचती है जब महाशिवरात्रि के पावन दिन भगवान शिव का विवाह संपन्न होता है।
पटनेश्वर मंदिर के इस विवाहोत्सव की विशेषता यह है कि यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। बुंदेलखंड की परंपराओं के अनुसार, इस अवधि के दौरान होने वाले विवाहों की रस्में भी इसी मंदिर में निभाई जाती हैं। यह आयोजन श्रद्धालुओं को न केवल भगवान शिव की महिमा से जोड़ता है, बल्कि उन्हें अपनी प्राचीन संस्कृति और परंपराओं से भी अवगत कराता है। हर वर्ष इस आयोजन को देखने और इसका हिस्सा बनने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं, जिससे यहां मेले जैसा वातावरण बन जाता है। भजन-कीर्तन, धार्मिक प्रवचन और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम इस आयोजन की भव्यता को और अधिक बढ़ा देते हैं। इस बार भी भक्तगण इस अद्भुत धार्मिक यात्रा में भाग लेने के लिए उत्साहित हैं और भगवान शिव के दिव्य विवाह समारोह का साक्षी बनने के लिए बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। यह आयोजन बुंदेलखंड की धार्मिक परंपराओं का जीवंत प्रमाण है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराता है।