नैनीताल। उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता, इसकी वादियों में बसे तीर्थस्थल, पावन नदियों का कलकल प्रवाह और दिव्यता से ओतप्रोत पर्वत इसे धार्मिक आस्था का केंद्र बनाते हैं। यहां साल भर देश-विदेश के श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक स्थलों पर दर्शन हेतु पहुंचते हैं। इनमें चारधाम यात्रा सबसे प्रमुख है, जो छह महीने तक संचालित होती है और भारी संख्या में भक्तजन भाग लेते हैं। दूसरी ओर, नैनीताल जनपद में स्थित बाबा नीम करोली महाराज का कैंची धाम भी भक्तों की अगाध श्रद्धा का प्रतीक बनकर उभरा है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन को पहुंचते हैं। वर्तमान समय में उत्तराखंड के इन धार्मिक स्थलों पर बढ़ती सुविधाओं के कारण श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन चारधाम यात्रा को लेकर तीर्थ पुरोहित महापंचायत ने कुछ गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। उनका मानना है कि व्यवस्थाओं के असंतुलन के कारण चारधाम में श्रद्धालु घट रहे हैं और कैंची धाम में तेजी से वृद्धि हो रही है।
चारधाम तीर्थ पुरोहित महापंचायत के महासचिव डॉ बृजेश सती ने अपने शोध के आधार पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने कैंची धाम और चारधाम यात्रा के आंकड़ों की तुलना की है। उनके अनुसार चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या में गिरावट देखी जा रही है, जबकि कैंची धाम में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। इस तुलना में उन्होंने बताया कि वर्ष 2023 में चारधाम यात्रा में कुल 54 लाख 42 हजार तीर्थयात्री पहुंचे थे, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर 46 लाख 20 हजार पर आ गई, जो कि लगभग 16 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है। इसके विपरीत, कैंची धाम में वर्ष 2023 में 8 लाख श्रद्धालु पहुंचे थे, वहीं 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 24 लाख हो गया, जो कि लगभग 300 प्रतिशत की उछाल है। डॉ सती का तर्क है कि यह अंतर सरकार द्वारा की जा रही व्यवस्थाओं में भेदभाव को उजागर करता है।
डॉ बृजेश सती के अनुसार, चारधाम यात्रा की प्रकृति, समयसीमा और भूगोल इसकी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ जैसे तीर्थस्थलों की यात्रा केवल छह महीनों के लिए संभव होती है, जबकि कैंची धाम सालभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। जब उन्होंने प्रतिदिन के आधार पर श्रद्धालुओं की संख्या का अध्ययन किया, तो यह सामने आया कि चारधाम में रोजाना औसतन 6,416 यात्री दर्शन करते हैं, जबकि कैंची धाम में यह संख्या 6,666 है। माहवार विश्लेषण में भी यह स्पष्ट होता है कि चारधाम में औसतन 7 लाख 70 हजार यात्री पहुंचते हैं, जबकि कैंची धाम में यह संख्या 2 लाख के करीब है। इसके अतिरिक्त, चारधाम में सबसे अधिक यात्री केदारनाथ पहुंचते हैं, उसके बाद बदरीनाथ, फिर गंगोत्री और अंत में यमुनोत्री आते हैं।

चारधाम तीर्थ पुरोहित महापंचायत द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, यमुनोत्री में प्रतिदिन औसतन 3,970, गंगोत्री में 4,545, केदारनाथ में 9,177 और बदरीनाथ में 7,974 श्रद्धालु पहुंचते हैं। डॉ सती का यह भी कहना है कि सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए कुल यात्री आंकड़ों में एक ही श्रद्धालु को चार बार गिना जाता है, जिससे वास्तविक संख्या से अधिक आंकड़े सामने आते हैं। उनका दावा है कि लगभग 40 से 45 प्रतिशत श्रद्धालु केवल एक या दो धामों के दर्शन करते हैं, जबकि पूर्ण चारधाम यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या इससे कम है। उनके अनुसार, केदारनाथ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को अन्य तीन धामों में जोड़कर समग्र संख्या प्रस्तुत की जाती है।
चारधाम तीर्थ पुरोहित महासंघ का यह भी आरोप है कि सरकार कैंची धाम को विशेष प्राथमिकता देकर चारधाम के साथ भेदभाव कर रही है। जहां एक ओर कैंची धाम में सड़क, यातायात, ठहरने और प्रचार-प्रसार की व्यवस्था को लगातार बेहतर किया जा रहा है, वहीं चारधाम में अव्यवस्था, अनियमित रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, यात्री सुविधाओं की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के कारण यात्रियों की संख्या प्रभावित हो रही है। महासचिव डॉ सती का मानना है कि चारधाम को मिलने वाली उपेक्षा के कारण श्रद्धालु अब सुविधाजनक और प्रचारित स्थलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, और इसमें कैंची धाम एक प्रमुख उदाहरण बनकर उभरा है।
इस विषय पर बदरी-केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने तीर्थ पुरोहित महापंचायत के दावों का खंडन किया है। उनके अनुसार चारधाम यात्रा में यात्रियों की संख्या में गिरावट नहीं बल्कि निरंतर वृद्धि हो रही है। उन्होंने कहा कि चारधाम की भौगोलिक स्थितियां अन्य किसी भी धाम की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण हैं। कैंची धाम जैसी यात्राओं की तुलना चारधाम यात्रा से करना अनुचित है। हेमंत द्विवेदी का कहना है कि यहां मौसम की मार, प्राकृतिक आपदाओं की संभावना और सीमित समय-सीमा के कारण प्रशासन को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। फिर भी सरकार चारधाम यात्रा को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है।

इसके साथ ही, हेमंत द्विवेदी ने यह भी स्पष्ट किया कि चारधाम यात्रा में यात्रियों के पंजीकरण की प्रक्रिया अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल यात्रियों की सुरक्षा के लिए जरूरी है, बल्कि आपातकालीन स्थिति में यात्रियों की सटीक जानकारी रखना भी प्रशासन के लिए सहायक होता है। तीर्थ पुरोहित महापंचायत द्वारा रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को लेकर जताई गई असहमति को उन्होंने गैरजिम्मेदाराना करार दिया और कहा कि किसी भी आपदा या विपरीत परिस्थिति में यह प्रक्रिया यात्रियों के लिए संजीवनी बन सकती है।
राजनीतिक स्तर पर भी यह विषय गर्माया हुआ है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने तीर्थ पुरोहित महापंचायत के आरोपों का समर्थन करते हुए कहा कि चारधाम यात्रा में अव्यवस्था चरम पर है और राज्य सरकार की लापरवाही का परिणाम है कि यहां श्रद्धालुओं की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। करन माहरा ने दावा किया कि उन्होंने स्वयं चारधाम यात्रा के दौरान पैदल भ्रमण किया है और वहां की व्यवस्था को लेकर निराशा व्यक्त की। उन्होंने यह भी कहा कि कैंची धाम में लगातार बढ़ती भीड़ के पीछे ट्रैफिक की असुविधा और प्रचार-प्रसार का बड़ा योगदान है, जबकि चारधाम में भीड़ प्रबंधन की समुचित व्यवस्था न होने से यात्री हतोत्साहित हो रहे हैं।
यदि दूरी की दृष्टि से देखें, तो कैंची धाम चारधाम की तुलना में दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र के श्रद्धालुओं के लिए अधिक सुलभ है। यमुनोत्री की दूरी दिल्ली से 400 किलोमीटर से अधिक, गंगोत्री की 525 किलोमीटर, केदारनाथ की 450 किलोमीटर और बदरीनाथ की 543 किलोमीटर है। दूसरी ओर कैंची धाम दिल्ली से मात्र 340 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसमें से केवल 40 किलोमीटर का रास्ता ही पहाड़ी है। यही कारण है कि मैदानी इलाकों के लोग अधिक संख्या में कैंची धाम की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जबकि चारधाम यात्रा का रास्ता कठिन और समय लेने वाला है, जिसमें अधिक श्रम और समय की आवश्यकता होती है।
कैंची धाम की लोकप्रियता में तकनीकी और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है। बाबा नीम करोली महाराज के अनुयायियों की सूची में एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के निर्माता मार्क जुकरबर्ग और हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स जैसे वैश्विक नाम शामिल हैं। इन प्रसिद्ध हस्तियों की जीवन यात्रा में बाबा की कृपा का उल्लेख युवा पीढ़ी को गहराई से प्रभावित करता है। आधुनिक युग में सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों से फैली इन कहानियों ने कैंची धाम को विश्वपटल पर एक विशिष्ट स्थान दिलाया है, जिससे वहां श्रद्धालुओं की भीड़ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
चारधाम यात्रा के ऐतिहासिक आंकड़े इस बात को प्रमाणित करते हैं कि यह यात्रा पहले भी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर चुकी है। वर्ष 2013 की भीषण आपदा के बाद यह यात्रा लगभग ठप हो गई थी, लेकिन सरकार के प्रयासों और पुनर्निर्माण कार्यों के बाद 2015 से यात्रा ने दोबारा रफ्तार पकड़ी। 2015 में 8 लाख, 2016 में 14 लाख, 2017 में 23 लाख, 2018 में 27 लाख, 2019 में 34 लाख से अधिक श्रद्धालु चारधाम पहुंचे। कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 में भी 3 लाख से अधिक श्रद्धालु आए। 2021 में 5 लाख, 2022 में 46 लाख और 2023 में यह संख्या बढ़कर 56 लाख हो गई। हालांकि 2024 में इसमें गिरावट दर्ज की गई और 48 लाख श्रद्धालु ही चारधाम यात्रा पर पहुंचे।
उत्तराखंड सरकार द्वारा तीर्थ स्थलों पर यात्री सुविधाएं बढ़ाने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है, यह आंकड़े और विरोधाभासी दावे स्पष्ट कर देते हैं। पर्यटन सचिव धीराज गर्ब्याल ने कहा है कि राज्य सरकार कैंची धाम, नैना देवी मंदिर और गर्जिया देवी मंदिर जैसे तीर्थों में सुविधाएं लगातार बढ़ा रही है और आने वाले समय में इनके विकास के लिए विशेष योजनाएं तैयार की जा रही हैं। उनका कहना है कि जिस प्रकार केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में पुनर्निर्माण के बाद तीर्थाटन का अनुभव बदला है, उसी तरह अन्य धार्मिक स्थलों को भी विश्व स्तरीय सुविधाओं से युक्त किया जाएगा।
अब यह देखने वाली बात होगी कि सरकार चारधाम यात्रा को लेकर उठ रही चिंताओं को कितना गंभीरता से लेती है। श्रद्धा और विश्वास के केंद्र रहे चारधाम को क्या वही प्राथमिकता मिलेगी जो अन्य तीर्थस्थलों को मिल रही है, या फिर यह बहस महज आंकड़ों और दावों तक ही सीमित रह जाएगी। वक्त आ गया है कि उत्तराखंड की सरकार देवभूमि की पहचान को अक्षुण्ण रखने के लिए चारधाम यात्रा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे और श्रद्धालुओं को एक बार फिर निर्बाध और दिव्य अनुभव प्रदान करे।